एक दफा कुछ सिपाही किसी नक्काल को पकड़कर बहादुरशाह प्रथम के सामने लाए। बहादुरशाह ने उसकी घृणित शक्ल देखकर हुक्म दिया, “ले जाओ इसको हमारे सामने से और सुबह-सवेरे फांसी पर लटका दो। कैसी मनहूस सूरत है। इसकी ! खुदा जाने आज खाना भी नसीब हो या नहीं!” नक्काल हाथ जोड़कर बोला, “हुजूर, आज आपने मेरी सूरत देखी तो खाने के लाले पड़ गए। इस गुलाम ने हुजूर की सूरत देखी तो फांसी पाने का हुक्म मिल गया।” नक़्क़ाल की बात सुनकर बादशाह को हंसी आ गई और उसने नक़्क़ाल की रिहाई का हुक्म दे दिया।
एक दिन मशहूर भांड करेला एक महफिल में बुलाया गया। शायर ‘जुरअत’ भी मौजूद थे। करेला उनके साथ नोक-झोंक करता रहता था और जुरअत उसका बुरा न मानते थे। करेला ने यहां भी नकल की और एक हाथ में लकड़ी लेकर दूसरा हाथ अंधों की तरह आगे बढ़ा दिया। टटोलकर फिरने लगा और बोला, “सनम, सुनते हैं तेरी भी कमर है, कहां है किस तरफ़ को है, किधर है?”
फिर किसी महफ़िल में एक जच्चा का स्वांग भरा और जाहिर किया कि उसके पेट में भुतना घुस गया है। खुद सयाना बन बैठा और जिस तरह जिन्नात व सयानों में लड़ाई होती है उसी तरह झगड़ते-झगड़ते बोला, “अरे नामुराद, क्यों गरीब मां की जान का लागू हुआ है। जुरअत है तो बाहर निकल आ ताकि अभी जलाकर खाक कर दूं।