1857 की क्रांति: मई 1855 में “दिल्ली गजट” में एक लंबा लेख प्रकाशित हुआ जिसके लिए कहा गया कि वह “एक पुराने सिपाही ने लिखा था जो बीमार होकर अपनी बाकी दिन गुज़ारने अपने गांव चला गया था।” लेकिन यह जाहिर था कि वह किसी अंग्रेज़ अफसर ने लिखा था। उसमें लिखा था कि “कोई भी गांव का काबिल नौजवान उस फ़ौज में शामिल होना नहीं चाहता जो किसी वक़्त भी थल सेना से जल सेना बन सकती है।” और यह भी लिखा था कि उसका भी अंदेशा है कि फ़ौजी पेशा अब अपनी इज्ज़त और मान खो चुका है क्योंकि कंपनी ऐसे लोगों को भर्ती कर रही है जो नीची जात के हैं।
कंपनी के ऊंचे अफ़सर उन लोगों को कम परेशान करने वाला और धर्म के बंधनों से आज़ाद समझती है लेकिन फ़ौज के पहले के सिपाहियों के लिए वह ऐसे लोग हैं जिन्हें हम नहीं जानते और जिनसे गांव के 1120 लोगों में से 1000 लोग नफ़रत करते हैं। इसलिए चाहे कंपनी का नाम कितना भी ऊंचा क्यों न हो और दौलत कितनी भी ज़्यादा हो लेकिन वह जातपात के फर्क से ज़्यादा मजबूत नहीं है। जिस शख्स के यह लेख लिखने की सबसे ज़्यादा संभावना है वह था कैप्टन रॉबर्ट टाइटलर ।
टाइटलर नेटिव इंफैंट्री का पुराना तजुर्बेकार अफ़सर था जो अपने सिपाहियों के बहुत करीब था और उनकी भलाई का बहुत ख्याल रखता था और हिंदुस्तानी बहुत अच्छी तरह समझता और बोलता था। वह बहुत रहमदिल और संवेदनशील अफ़सर था। उसकी बीवी के मृत्यु हो गई थी और उसके दो छोटे बच्चे थे। हाल ही में उसने दूसरी शादी हैरियट से की थी जो बहुत चुस्त और चंचल थीं।
वह अपने पति से उम्र में आधी थीं और उन्हीं की तरह हिंदुस्तानी में माहिर थीं जो उन्होंने कमउम्री से ही अपनी आया से सीखी थी। बचपन ही से वह अपने पिता की रेजिमेंट के साथ पूरे हिंदुस्तान में रह चुकी थीं। दोनों पति-पत्नी फोटोग्राफी के बहुत शौकीन थे जो एक फौजी के लिए एक असामान्य सी बात थी और अपने शौक को जारी रखते हुए उन्होंने दिल्ली की पुरानी इमारतों की बहुत सी तस्वीरें ली थीं जो अब से पहले कभी नहीं ली गई थीं।