आरक्षण के बहाने विपक्ष, भाजपा सरकार पर हमलावर

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Lateral Entry: भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की नींव परंपरागत रूप से भारतीय सिविल सेवा (IAS, IPS, IFS आदि) पर आधारित है। देश के विकास और सुशासन के लिए इन सेवाओं का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में, “लेटरल एंट्री” (Lateral Entry) के मुद्दे ने राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में तीव्र बहस को जन्म दिया है। यह अवधारणा भारतीय प्रशासन में विशेषज्ञता और नवीनता लाने के उद्देश्य से पेश की गई थी, लेकिन इसके आलोचक इसे सिविल सेवाओं की पारंपरिक प्रणाली के लिए एक चुनौती मानते हैं। इस लेख में, हम लेटरल एंट्री के विभिन्न पहलुओं, इसके पक्ष और विपक्ष, और इसके भारतीय प्रशासन पर संभावित प्रभावों की विस्तार से चर्चा करेंगे।

लेटरल एंट्री की अवधारणा और इतिहास

लेटरल एंट्री का अर्थ है कि सरकारी विभागों के उच्च पदों पर, जैसे संयुक्त सचिव, निदेशक, उप सचिव आदि, निजी क्षेत्र, अकादमिक संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और अन्य क्षेत्रों से विशेषज्ञों की सीधी भर्ती की जाती है। इसका उद्देश्य है कि इन पदों पर बैठे व्यक्तियों के पास संबंधित क्षेत्रों में गहरी विशेषज्ञता और अनुभव हो, ताकि नीतियों का निर्माण और उनका कार्यान्वयन अधिक कुशलता से हो सके।

लेटरल एंट्री के माध्यम से नियुक्तियों का उद्देश्य होता है कि विशेष क्षेत्रों में गहन ज्ञान रखने वाले व्यक्ति सीधे सरकार में प्रवेश करें और अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में योगदान दें। इस प्रक्रिया के तहत, सरकार ने कई महत्वपूर्ण पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए, जिनमें संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव जैसे पद शामिल थे।

लेटरल एंट्री की अवधारणा नई नहीं है। विभिन्न देशों में यह प्रक्रिया पहले से अपनाई जा रही है, जहां सरकारें निजी क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों से विशेषज्ञों को लेकर नीतिगत मामलों में विशेषज्ञता का लाभ उठाती हैं। भारत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस प्रक्रिया को अधिक सक्रिय रूप से अपनाया। 2018 में, केंद्र सरकार ने पहली बार संयुक्त सचिव स्तर के 10 पदों के लिए लेटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती की घोषणा की, जिसमें कई विशेषज्ञों को सरकार में सीधे शामिल किया गया।

लेटरल एंट्री के पक्ष में तर्क

  1. विशेषज्ञता का लाभ: लेटरल एंट्री से सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में गहन ज्ञान और अनुभव रखने वाले पेशेवरों की सेवाएं मिलती हैं। ये विशेषज्ञ अपने क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकों, वैश्विक प्रथाओं और नए विचारों को प्रशासन में ला सकते हैं, जो परंपरागत सिविल सेवाओं में अक्सर नहीं मिल पाता।
  2. नवीनता और ताजगी: सरकारी तंत्र में नई सोच और दृष्टिकोण लाने की जरूरत है। लेटरल एंट्री के माध्यम से, प्रशासन में नए और अलग दृष्टिकोण वाले लोगों का समावेश होता है, जिससे नीति निर्माण में विविधता और नवीनता आती है।
  3. पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा: लेटरल एंट्री के जरिए विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलता है। यह प्रक्रिया सरकारी सेवाओं में चयन को और अधिक न्यायसंगत और प्रभावी बनाती है।
  4. संकट प्रबंधन में सहायता: कुछ विशेष परिस्थितियों, जैसे आर्थिक संकट, महामारी, आदि में, विशेषज्ञों की तात्कालिक नियुक्ति सरकार को बेहतर निर्णय लेने में सक्षम बनाती है।

लेटरल एंट्री के विपक्ष में तर्क

  1. पारंपरिक सिविल सेवा प्रणाली का कमजोर होना: लेटरल एंट्री की आलोचना करने वालों का कहना है कि यह पारंपरिक सिविल सेवा प्रणाली को कमजोर कर सकती है। सिविल सेवा अधिकारियों की वर्षों की कठोर तैयारी और सेवा के दौरान मिली ट्रेनिंग को नज़रअंदाज करना अन्यायपूर्ण हो सकता है।
  2. अनुभव की कमी: प्रशासन में अनुभवी सिविल सेवकों के मुकाबले लेटरल एंट्री से आए विशेषज्ञों के पास सार्वजनिक प्रशासन का गहन अनुभव नहीं होता है। सरकारी प्रक्रियाओं, संवैधानिक जिम्मेदारियों और जमीनी हकीकतों से अनजान होने के कारण वे आवश्यकतानुसार प्रभावी साबित नहीं हो सकते।
  3. भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का खतरा: लेटरल एंट्री की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी होने से भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। यदि सही प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता, तो यह शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा अपने करीबी लोगों को उच्च पदों पर बैठाने का एक जरिया बन सकता है।
  4. संविधानिक मूल्यों का ह्रास: सिविल सेवाओं की प्रक्रिया संविधान के मूल्यों पर आधारित होती है, जिसमें निष्पक्षता, जवाबदेही और गैर-भेदभाव शामिल हैं। लेटरल एंट्री के माध्यम से बाहरी लोगों की नियुक्ति से इन मूल्यों पर आंच आ सकती है।

वर्तमान स्थिति और विवाद

लेटरल एंट्री को लेकर विवाद इसलिए भी उत्पन्न हुआ है क्योंकि यह प्रक्रिया सिविल सेवा अधिकारियों और उनकी यूनियनों के बीच असंतोष का कारण बन रही है। उनका मानना है कि यह कदम सिविल सेवाओं की ताकत को कमजोर करने का प्रयास है और यह सरकार के प्रशासनिक ढांचे में बाहरी प्रभावों को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, विपक्षी दलों ने भी इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं, यह आरोप लगाते हुए कि सरकार इसे अपने पक्ष में विशेषज्ञों को लाने के लिए उपयोग कर रही है, जिससे प्रशासनिक निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।

लेटरल एंट्री भारतीय प्रशासन में विशेषज्ञता और नवीनता लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में पारदर्शिता, निष्पक्षता और संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए यह जरूरी है कि नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और योग्यता को प्राथमिकता दी जाए। साथ ही, सिविल सेवकों के मनोबल को बनाए रखने और उन्हें प्रेरित करने के लिए भी उपयुक्त कदम उठाए जाने चाहिए।

लेटरल एंट्री का उद्देश्य भारतीय प्रशासनिक तंत्र को और अधिक कुशल, विशेषज्ञता-युक्त और जनोन्मुखी बनाना है, लेकिन इसे सिविल सेवाओं की परंपराओं और मूल्यों के साथ संतुलित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। अगर यह संतुलन सही तरीके से स्थापित किया जाता है, तो लेटरल एंट्री भारतीय प्रशासन में सकारात्मक बदलाव ला सकती है।

विपक्ष के सवाल:-

विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री की प्रक्रिया सवाल उठाए हैं। विपक्ष भी इसे लेकर हमलावर है।

1. लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने का आरोप: राहुल गांधी का मानना है कि लेटरल एंट्री से पारंपरिक सिविल सेवा प्रणाली कमजोर होती है, जो लोकतंत्र की बुनियादी संरचना का हिस्सा है। उनका कहना है कि यह कदम सरकारी तंत्र में बाहरी व्यक्तियों को लाकर सिविल सेवकों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।

2. भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का खतरा: राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि लेटरल एंट्री के माध्यम से सरकार अपने करीबी लोगों और निजी क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाकर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दे रही है। यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है, और इससे सत्ता के केंद्रीकरण का खतरा बढ़ सकता है।

3. सिविल सेवकों के अधिकारों की अनदेखी: राहुल गांधी का कहना है कि लेटरल एंट्री से सिविल सेवकों के अधिकारों और उनकी मेहनत की अनदेखी की जा रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि सरकार सिविल सेवकों के साथ भेदभाव कर रही है, जिससे उनके मनोबल पर बुरा असर पड़ रहा है।

सरकार का तर्क:-

सरकार ने राहुल गांधी के आरोपों को खारिज करते हुए अपने कदमों का बचाव किया है। उनका पक्ष निम्नलिखित है:

1. विशेषज्ञता का लाभ: सरकार का तर्क है कि लेटरल एंट्री के माध्यम से सरकारी तंत्र में विशेषज्ञता और नवीनता लाई जा रही है। कई बार सिविल सेवकों के पास कुछ क्षेत्रों में गहन तकनीकी ज्ञान की कमी होती है, जिसे लेटरल एंट्री के माध्यम से विशेषज्ञों की नियुक्ति करके पूरा किया जा सकता है। इससे नीतियों का निर्माण और उनका क्रियान्वयन अधिक प्रभावी हो सकता है।

2. पारदर्शी और योग्यता आधारित प्रक्रिया: सरकार का कहना है कि लेटरल एंट्री की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और योग्यता आधारित है। सभी नियुक्तियां खुली चयन प्रक्रिया के माध्यम से होती हैं, जिसमें योग्यतम उम्मीदवारों का चयन किया जाता है। इससे प्रशासन में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और सिविल सेवकों को भी अपने कौशल को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाता है।

3.प्रशासनिक सुधार का हिस्सा: सरकार ने लेटरल एंट्री को व्यापक प्रशासनिक सुधार का हिस्सा बताया है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया भारतीय प्रशासनिक तंत्र को और अधिक सक्षम और कुशल बनाने के लिए आवश्यक है, ताकि देश की चुनौतियों का सामना बेहतर तरीके से किया जा सके।

4.लोकतंत्र की सुरक्षा: सरकार ने स्पष्ट किया है कि लेटरल एंट्री का उद्देश्य लोकतंत्र को कमजोर करना नहीं है, बल्कि उसे मजबूत करना है। वे यह दावा करते हैं कि विशेषज्ञों की नियुक्ति से प्रशासनिक तंत्र में सुधार होगा, जिससे जनता को बेहतर सेवाएं मिलेंगी और देश की प्रगति तेज होगी।

निष्कर्ष

राहुल गांधी के आरोपों और सरकार के पक्षों को देखते हुए यह स्पष्ट होता है कि लेटरल एंट्री एक जटिल मुद्दा है, जिस पर दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। जहां राहुल गांधी इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मानते हैं, वहीं सरकार इसे प्रशासनिक सुधार के लिए आवश्यक कदम के रूप में देखती है। इस मुद्दे पर आगे की बहस और चर्चा से ही यह साफ हो सकेगा कि लेटरल एंट्री भारतीय प्रशासनिक प्रणाली के लिए कितनी फायदेमंद या हानिकारक हो सकती है।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here