1857 की क्रांति: यह जगजाहिर है कि 1857 की क्रांति के दरम्यान कमांडर बख्त खां ने गायों को लेकर कई आदेश जारी किए। जिससे हिंदू-मुस्लिम एकता कमजोर पडने लगी। बादशाह ने तब आदेश दिया कि शहर की तमाम गायों का पंजीकरण किया जाए और हर मुहल्ले का चौकीदार और जमादार मुकामी पुलिस स्टेशन में सब गाय रखने वाले मुसलमान घरानों का नाम लिखवाये। यही नहीं आदेश दिया गया कि पुलिस थाने उन तमाम गायों की जो मुसलमान घरों में पल रही थीं, एक सूची बनाकर किले में छह घंटे के अंदर-अंदर भेजे।

10 और 30 जुलाई को कोतवाल सईद मुबारक शाह को आदेश दिया गया कि वह शहर में ऊंची आवाज़ में ऐलान करा दें कि गायों को मारने पर पूर्ण पाबंदी है क्योंकि इससे बेकार आपस में खिंचाव पैदा होगा, जिससे दुश्मनों को फायदा पहुंचेगा। अगर कोई ऐसा सोचेगा भी या इस आदेश की खिलाफत करेगा उसको सख्त सजा दी जाएगी। इस संबंध में और भी बहुत से आदेश जारी होते रहे।

एक अजीब आदेश जारी हुआ कि सारी पंजाकृत गायों को अब शहर की कोतवाली में रखा जाए। अगर जफर क्रांतिकारियों  को बंद नहीं करना चाहते थे या नहीं कर सकते थे, तो कम से कम गायों को तो कर सकते थे। सईद मुबारक शाह ने परेशान होकर जवाब दिया कि ‘अगर सब मुसलमानों की गायों को कोतवाली में रखा जाएगा, तो वह कम से कम पांच सौ से एक हज़ार तक होंगी, और उसके लिए हमको एक बड़े अहाते या मैदान की जरूरत होगी।

लेकिन आपके इस वफादार के ख्याल में कोई ऐसी जगह नहीं है और फिर उनके मालिक भी परेशान हो जाएंगे और शक करने लगेंगे।’ इसलिए यह आदेश रद्द कर दिया गया और गायों के मालिकों से लिखवाकर ले लिया गया कि वह अपने जानवरों की कुर्बानी की इजाज़त नहीं देंगे। जफर की इन सब सावधानियों की वजह से एक अगस्त को ईद अमन के साथ गुजर गई।

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