bihar vidhansabha chunaav 2025
bihar vidhansabha chunaav 2025

चुनावी आंकड़ों, इतिहास और जन आकांक्षाओं की कसौटी पर छिपा ऐतिहासिक जनादेश का रहस्य

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने जिस उत्साह, एकजुटता और भागीदारी का प्रदर्शन किया है, वह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक स्वर्ण अध्याय है। पहले चरण में दर्ज हुआ रिकॉर्ड तोड़ 64.69% (आंकड़ें बढ़ेंगे) मतदान न केवल पिछले विधानसभा चुनाव (2020) के 56.1% के आंकड़े को पीछे छोड़ता है, बल्कि यह करीब 8.59% की भारी वृद्धि दर्ज कर बिहार के 1952 से शुरू हुए चुनावी इतिहास के सभी कीर्तिमानों को ध्वस्त कर देता है। यह आंकड़ा महज़ एक संख्या नहीं है; यह राज्य की बदलती राजनीतिक चेतना, मतदाता की गहरी सक्रियता और नेतृत्व से अपेक्षाओं के भार का सांख्यिकीय प्रमाण है।

अब हर राजनीतिक गलियारे, हर चाय की दुकान और हर राष्ट्रीय बहस का केंद्र एक ही सवाल है: रिकॉर्ड-उच्च मतदान की यह बंपर छलांग किसे सत्ता सौंपने जा रही है? क्या यह बदलाव का प्रबल आवेग है, या फिर यह मौजूदा नेतृत्व में विश्वास की अप्रत्याशित अभिव्यक्ति है? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए हमें इस ऐतिहासिक मतदान को आँकड़ों, सामाजिक समीकरणों और राजनीतिक इतिहास की कठोर कसौटी पर कसना होगा।

I. रिकॉर्ड उछाल का ऐतिहासिक आईना: सांख्यिकी का निर्णायक सन्देश

राजनीतिक विश्लेषक एकमत हैं कि जब भी मतदान में 5% से अधिक का उछाल आता है, तो परिणाम अप्रत्याशित और अक्सर निर्णायक हो जाते हैं। बिहार के पिछले छह दशकों के विधानसभा चुनावों के आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि बड़े उछाल का सीधा संबंध ध्रुवीकृत परिणाम से रहा है:

वर्षमतदान प्रतिशत (लगभग)पिछले चुनाव से अंतर (%)परिणाम का स्वरूपराजनीतिक निष्कर्ष
200062.57%+5.77%बदलाव आया (राजनीतिक अस्थिरता और नए गठबंधन की शुरुआत)जनता ने बदलाव के लिए एकजुटता दिखाई
201056.8%+6.82%नहीं, लेकिन सरकार की ऐतिहासिक वापसी और रिकॉर्ड तोड़ जनादेशकल्याणकारी नीतियों पर मजबूत मुहर
201556.66%-0.14%सत्ता कायम रही (गठबंधन बदला)परिणाम यथावत रहा
वर्तमान64.69%+8.59%अभूतपूर्व, परिणाम अत्यंत ध्रुवीकृत और निर्णायक होने की संभावनाइतिहास का सबसे बड़ा संदेश

आंकड़ों का निर्णायक निष्कर्ष: 2000 और 2010 की तरह, 8.59% का यह उछाल एक साधारण रुझान नहीं है। यह किसी भी एक राजनीतिक दल के प्रति मतदाता की गहरी और तीव्र भावना को दर्शाता है। 2010 का उदाहरण हमें सिखाता है कि उच्च मतदान को केवल ‘सत्ता विरोधी’ मानना सांख्यिकीय गलती होगी। यह साबित करता है कि जनता अपनी शक्ति का इस्तेमाल समर्थन को मजबूत करने के लिए भी कर सकती है। इसलिए, वर्तमान रिकॉर्ड को किसी एक खेमे की निश्चित जीत के रूप में देखना जल्दबाजी होगी।

II. रिकॉर्ड वृद्धि के मूल कारक: उत्साह या हताशा?

यह 8.59% की वृद्धि किन सामाजिक और भौगोलिक कारकों से आई है, यह जानना परिणाम की दिशा तय करेगा:

A. एंटी-इन्कम्बेंसी और बदलाव की तीव्र आकांक्षा:

रिकॉर्ड मतदान का एक बड़ा हिस्सा उन युवा और फर्स्ट-टाइम वोटर्स का हो सकता है, जो दशकों से राज्य को जकड़े हुए रोजगार के सीमित अवसरों की समस्या से हताश हैं। बिहार, जहाँ युवा आबादी का घनत्व अधिक है, वहाँ नौकरियों की कमी ने एक प्रबल आक्रोश पैदा किया है। विभिन्न राजनीतिक दल द्वारा दिए गए लाखों रोज़गार के वादे ने इन युवाओं में एक नई आशा और उत्तेजना भरी होगी, जिसने उन्हें बदलाव की राजनीति का पक्षधर बनाकर मतपेटी तक पहुंचाया होगा।

इसके अतिरिक्त, प्रवासी श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग भी मतदान करने आया है। विभिन्न रिपोर्टों से यह बात सामने आई है कि कोविड महामारी के दौरान और उसके बाद, घर वापसी की पीड़ा और स्थानीय स्तर पर काम न मिलने की हताशा ने इस वर्ग के मन में गहरी निराशा पैदा की। ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ गरीबी और बुनियादी ढांचे की कमी जैसे मुद्दे अभी भी ज्वलंत हैं, इस वर्ग का सामूहिक मतदान सत्ता विरोधी लहर को मजबूत करने के लिए हुआ हो सकता है।

B. प्रो-इन्कम्बेंसी का संगठित समर्थन: महिला और लाभार्थी वर्ग

इसके ठीक विपरीत, दूसरा मजबूत तर्क सत्ताधारी गठबंधन की कल्याणकारी नीतियों से जुड़ा है। यह वृद्धि उन करोड़ों ‘लाभार्थियों’ का परिणाम हो सकती है, जो सरकार से मिली सुविधाओं के लिए आभार व्यक्त करने आए हैं।

महिला मतदाता की अभूतपूर्व भागीदारी: यह सबसे बड़ा और निर्णायक कारक है। बिहार में कई निर्वाचन क्षेत्रों और जिलों में महिला मतदान दर पुरुष मतदान दर को पीछे छोड़ चुकी है। उदाहरण के लिए, कुछ जिलों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 5% से 8% अधिक दर्ज किया गया है। शराबबंदी, पंचायती राज आरक्षण, साइकिल योजना, और हाल की महिला उद्यमी योजनाओं ने महिलाओं के बीच नीतीश कुमार के नेतृत्व के लिए एक ऐसा मजबूत और स्वतंत्र वोट बैंक तैयार किया है, जिसे पारंपरिक जातिगत समीकरण आसानी से तोड़ नहीं पाते।

लाभार्थी वर्ग का साइलेंट वोट‘: केंद्र और राज्य सरकार की मुफ्त राशन, आवास, शौचालय और सीधे नकद हस्तांतरण (DBT) जैसी योजनाओं के करोड़ों लाभार्थी एक ‘साइलेंट वोट बैंक’ का निर्माण करते हैं। यह वर्ग अक्सर चुनावी रैलियों में शोर नहीं मचाता, लेकिन मतदान के दिन अपने समर्थन को सुनिश्चित करने के लिए संगठित रूप से मतदान करता है। 8.59% का यह ऐतिहासिक उछाल महिला सशक्तिकरण और लाभार्थी वर्ग के संगठित समर्थन का परिणाम हो सकता है।

III. क्षेत्रीय असंतुलन और पारंपरिक समीकरणों का विखंडन

रिकॉर्ड तोड़ मतदान के आंकड़े क्षेत्रीय स्तर पर भी असंतुलित राजनीतिक सन्देश दे रहे हैं।

  • शहरी बनाम ग्रामीण विभाजन: जहाँ पटना, मुजफ्फरपुर या भागलपुर जैसे शहरी क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में मतदान प्रतिशत औसतन 50% से कम रहा, वहीं ग्रामीण, पिछड़ा बाहुल्य और सीमांत क्षेत्रों में बम्पर वोटिंग 70% के करीब दर्ज हुई है। शहरी मतदाताओं की यह उदासीनता और ग्रामीण मतदाताओं का यह उत्साह बताता है कि ग्रामीण भारत के मुद्दे ही इस चुनाव में निर्णायक रहे हैं।
  • जातिगत गणित का पुनर्लेखन: अब तक बिहार में राजनीति जाति और धर्म के पारंपरिक समीकरणों पर टिकी रही है, लेकिन 8.59% का यह ऐतिहासिक उछाल इन समीकरणों को तोड़ चुका है। इस अतिरिक्त वोट बैंक ने जातिगत गणित को ‘लाभार्थी बनाम गैर-लाभार्थी’ और ‘युवा बनाम अनुभवी’ के नए ध्रुवीकरण में बदल दिया है। किसी भी दल के लिए अब केवल पारंपरिक वोट बैंक पर निर्भर रहना संभव नहीं रहा।

बिहार ने तोड़ा अनिर्णय का मिथक

64.69% का रिकॉर्ड मतदान इस बात की घोषणा है कि बिहार का मतदाता अब जागरूक, मुखर और निर्णायक है। मतदाता ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल अनिर्णय के मिथक को तोड़ने और एक स्पष्ट जनादेश देने के लिए किया है।

यह ऐतिहासिक मतदान जिस भी दल या गठबंधन के पक्ष में गया हो, उसे शासन करने के लिए एक अभूतपूर्व और अविश्वसनीय जनादेश मिलेगा। यह तय है कि अब परिणाम केवल पारंपरिक जातिगत समीकरणों से नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण, युवा रोज़गार, और कल्याणकारी योजनाओं के ध्रुवीकृत प्रभाव की कसौटी पर तय होंगे।

बिहार के मतदाताओं ने अपना काम पूरी ताकत, उत्साह और आशा के साथ कर दिया है। मतगणना का दिन ही अंतिम सत्य बताएगा। लेकिन एक बात निश्चित है कि इस बार बिहार ने न सिर्फ एक नई सरकार को चुना है, बल्कि एक नई, अधिक सहभागी, सक्रिय और आकांक्षापूर्ण राजनीतिक संस्कृति की नींव रखी है, जो देश के लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण सन्देश है।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here