-लोकगीतों के जरिए धार पकड़ा स्वतंत्रता संग्राम का आंदोलन

-ऐसे साहित्य, जिन्हें ब्रितानिया हुकूमत ने कर दिया प्रतिबंधित

1857 की क्रांति ने ब्रितानिया हुकूमत की नींव हीला दी। आंदोलन को भले ही अंग्रेजी फौजों ने जुल्मों सितम से दबा दिया लेकिन दिल्लीवालों के मन में अंग्रेजों के खिलाफ जो आग सुलगी वो साहित्य, संगीत, कला, संस्कृति समेत जिंदगी के विभिन्न पहलुओं में परिलक्षित हुई। हर वर्ग अपने स्तर पर आंदोलन में शरीक हुआ। छोटे बच्चे जहां प्रभात फेरी निकाल, शर्ट के बटन पर क्रांतिकारियों की तस्वीरें लगा अपनी देशभक्ति प्रदर्शित कर रहे थे, वहीं महिलाएं अपने पति, भाईयों समेत घर के सदस्यों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करती लोकगीत गाती थी। त्योहारों के लोकगीत भी देशप्रेम के शब्दों से गूंथे थे। साहित्यकारों ने देशभक्ति से लबरेज ऐसी रचनाएं लिखी जिसने लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने को प्रेरित किया। इन रचनाओं ने ब्रिटिश हुक्मरानों की नींद इस कदर उड़ा दी थी कि वो इनपर प्रतिबंध लगाने को आमदा थे। ऐसी एक दो नहीं हजारों रचनाएं हैं, जिन पर अंग्रेजों की भृकुटी तनी और इन रचनाओं को जनता के बीच जाने से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया। लेकिन चोरी छिपे ही सही लेकिन यह रचनाएं देशभक्ति का जज्बा जगाने का काम की।

प्रतिबंधित साहित्य

संग्रहालय के अधिकारी कहते हैं कि कविता और लेखन का यह संग्रह स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में व्याप्त राष्ट्रवादी उत्साह को दर्शाता है। इन रचनाओं से अंग्रेज इस कदर खौफजदा थे कि प्रतिबंध लगा दिया। यहां राष्ट्रवाद, महात्मा गांधी के दर्शन, नमक सत्याग्रह, चरखा और खादी, भगत सिंह की जीवनी, देशभक्ति गजल-भजन समेत महिलाओं के योगदान पर लिखी प्रतिबंधित रचनाएं प्रदर्शित है। यही नहीं कई गोपनीय बैठकों का रिकार्ड और कई ऐसी किताबों की भी जानकारी हैं, जो प्रकाशित ही नहीं हो पायी थी।

शराब की दुकानें बंद कराना मुहिम

राष्ट्रीय संग्रहालय की सहायक निदेशक संगीता माथुर कहती हैं कि शराब की दुकानों से पहले भी लोग परेशान रहते थे। एक बड़े वर्ग में यह धारणा थी कि शराब की वजह से युवा पीढ़ी अपना रास्ता भटक जाएगी। यह हर लिहाज से नुकसानदायक है। यही कारण है कि दिल्ली समेत अन्य राज्यों में समय समय पर आंदोलन होते रहे हैं। सन 1930 में आरएन शर्मा द्वारा संकलित पुस्तक राष्ट्रीय झंडा में एक ऐसी ही कविता का जिक्र है, जिसे अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। दरअसल, इसमें यह भी कहा गया है कि शराब की वजह से मैदान ए जंग में कभी साहस का प्रदर्शन करने वाला युवक शराब पीकर कीचड़ में गिर रहे हैं। लिहाजा, शराब को बंद करना चाहिए। इस कविता की लाइनें इस प्रकार हैं–

खाना खराब कर दिया, बिल्कुल शराब ने।

जो कुछ न कि देखा था दिखाया शराब ने।

बुलबुल की तरह बाग में लेते थे बुए बुल

संडास नालियों में गिराया शराब ने

हम पीने वाले सरवतें संडल थे दोस्तों

कुत्तों का मूत हमको पिलाया शराब ने

मैदान ए जंग में थे कभी हम भी सहस बाहू।

कीचड़ की नालियों में गिराया शराब ने

पीकर के दूध घी रहते थे हम आजाद

जब से पी शराब हम खो चुके स्वराज्य।।

महिलाओं ने थामी विरोध की कमान

इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं, शराब की दुकानें बंद करने के लिए सबसे ज्यादा आंदोलन महिलाओं ने ही किए हैं। चांदनी चौक में शराब की कई दुकानें थी। आजादी के पहले एक दफा महात्मा गांधी ने पुरानी दिल्ली में सभा को संबोधित करते हुए शराब की दुकानें बंद होने का समर्थन किया था। इसके बाद क्या, स्थानीय महिलाओं ने समूह बनाकर शराब की दुकानों के सामने मोर्चा थामा। ये महिला 5-10 के समूहों में दुकानों के सामने पर्चा, पंपलेट, पोस्टर लेकर खड़ी करती थी। शराब खरीदने आने वालों एवं राह चलते लोगों से शराब की खामियां बता इसे ना खरीदने की अपील करती थी। वहीं आजादी के बाद दिल्ली में कई दफा शराब के खिलाफ आंदोलन हुआ। जनकपुरी हो या फिर पूर्वी दिल्ली के इलाके। कई बार महिलाएं शराब की दुकानें बंद कराने के लिलए सड़कों पर उतरी हैं। शायद यही वजह है कि वर्तमान सरकार को झुकना पड़ा और यह आश्वासन देना पड़ा कि स्थानीय लोगों के परामर्श के बाद दुकानें बंद की जाएंगी।

मल्हार, कजरी, गजल में देशभक्ति

संगीता माथुर कहती हैं कि महिलाओं में स्वतंत्रता आंदोलनों के प्रति गजब का जुनून था। यह उनकी रोजमर्रा की गतिविधियों में भी झलकती थी। मसलन, मल्हार में भी देशभक्ति तराने की ही गूंज थी। राष्ट्रीय मल्हार एवं जख्मी भारत किताब में ऐसे ही मल्हार का संकलन था, जिसपर अंग्रेजों को इस कदर गुस्सा आया था कि किताब प्रतिबंधित कर दी थी-

अरी बहना काहे बैठी हो चुपचाप, झंडा तो ले लो हाथ में।

दुश्मन तो बहना सर पे छा गए, अरे बीबी रक्षा करो अपनी।।

आप चरखा तो ले लो हाथ में, किसका भरोसा बैठी देखती

अरी बीबी दुश्मन से करो दो दो हाथ, चरखा तो ले लो हाथ।।

तो वहीं एक स्त्री अपने पति को संदेश भेजती है–

बाबू खद्दर पहन के आना, रोटी तभी पकाऊंगी

रोटी जभी पकाऊंगी, प्रेम से तभी खिलाऊंगी

फैशन छोड़ो पिया विदेशी तन में वस्त्र धरो स्वदेशी

सेवा करो वतन की, अपने बलि बलि जाऊंगी।।

प्रयाग से सन 1931 में प्रकाशित पुस्तक गांधी का चरखा में देशभक्ति कजली भी अंग्रेजों के आंख में चुभ रही थी। जिसके बोल थे-

पिया साड़ी हमें लादो नए तार की, खद्दर के बहार की ना।

जबकि सन 1932 में लाहौर में लिखी गई एक ऐसी की रचना भी अंग्रेजी कोपभाजन का शिकार बनी थी। जिसके शब्द कुछ ऐसे थे कि अंग्रेज तिलमिला गए। चक्की चलाउंगी शीर्षक से यह रचना प्रकाशित थी-

जो कुछ पड़ेगी मुझसे मुसीबत उठाऊंगी

खिदमत करुंगी मुल्क की और जेल जाऊंगी।

घर भर को अपने खादी कपड़े पहनाऊंगी

और इन विदेशी लत्तों का लुका लगाऊंगी।।

इतिहासकार कहते हैं कि महिलाएं आंदोलन में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर भाग ले रही थी। दिल्ली में ही प्रभात फेरी निकालने से लेकर टाउन हाल पर तिरंगा झंडा फहराने तक का तमगा महिलाओं के सिर ही बंधा है। ऐसे ही एक प्रतिबंधित रचना में महिला अपने पति से कहती है कि-

प्रीतम चलूं तुम्हारे संग, जंग में पकडूंगी तलवार

मैं भी करुं नमक तैयार, जंग में चलूं तुम्हारे साथ

गोली खाने को तैयार।।

दिल्ली में नमक पर भजन

महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह के दौरान नमक का गोला किताब में नमक पर भजन जनता के बीच इस कदर लोकप्रिय हुआ था कि पर्चियां बांटी गई थी। इसमें नमक के बहाने ब्रितानिया हुकूमत पर वार किया गया था-

नमक का गोला पहुंचा सात समुंदर पार

नहीं अंबर बीच गया नहीं धरती बीच समाया है

ऐसे ऊंचे ऊंचे महल खड़े थे उनसे भी नहीं टकराया है।।

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