पीठ पीछे बुराई, निंदा से कैसे निपटें – क्या है सच्चा समाधान?
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती: हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां पीठ पीछे बुराई करना और निंदा करना एक आम बात है। अक्सर लोग दूसरों को नीचा दिखाकर खुद को बेहतर महसूस कराने की कोशिश करते हैं। जब किसी अपने या पड़ोसी की तरफ से आलोचना का सामना करना पड़ता है, तो मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि “मैं ऐसा क्या करूं कि लोग हमेशा मुझे अच्छा कहें?”
इसी दुविधा के साथ शालु चतुर्वेदी जी ने स्वामी शैलेंद्र सरस्वती को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपने दोस्तों और पड़ोसियों द्वारा की जा रही निंदा का जिक्र किया। स्वामी जी का उत्तर पारंपरिक सलाह से परे है, जो हमें बाहरी लोगों को बदलने के बजाय अपने भीतर झाँकने की प्रेरणा देता है।
समस्या बाहर नहीं, भीतर है!
स्वामी शैलेंद्र सरस्वती जी ने बड़ी स्पष्टता से कहा कि यह पूछना कि “मैं क्या करूं कि लोग मुझे हमेशा अच्छा कहें,” यह स्वयं ही एक अहंकार केंद्रित सवाल है। उनका मानना है कि हम सब एक अहंकार केंद्रित जीवन जी रहे हैं, और जाने-अनजाने में दूसरों को नीचा दिखाने का काम हम भी करते हैं।
हम क्यों दूसरों की निंदा करते हैं?
स्वामी जी के अनुसार, हम अक्सर अपने दोस्तों और पड़ोसियों की बुराई इसलिए करते हैं क्योंकि हम उन्हें सामना नहीं कर सकते। अगर आप किसी की पीठ पीछे निंदा करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप उससे डरते हैं, या फिर आपमें इतनी हिम्मत नहीं है कि आप सीधे मुंह बात करें। इसलिए, वह शालु जी को एक अनूठी सलाह देते हैं:
“अपने दोस्तों और पड़ोसियों को धन्यवाद दो की वे तुम्हारी पीठ पीछे बुराई करते हैं। अगर वे सामने करने लगेंगे तो तुम्हारे लिए मुसीबत होगी!”
यह दृष्टिकोण हमें बताता है कि आलोचना को व्यक्तिगत हमला मानने के बजाय, इसे उस व्यक्ति की कमजोरी के रूप में देखें जो ऐसा कर रहा है।
बाहरी निंदा से प्रभावित क्यों होते हैं?
मूल मुद्दा यह नहीं है कि लोग क्या कह रहे हैं, बल्कि यह है कि आप उनकी बातों से प्रभावित क्यों हो रहे हैं। स्वामी जी कहते हैं:
“अपने अहंकार के प्रति सतर्क हो। कोई तुम्हें क्या कहता है, तुम उनसे प्रभावित क्यों होते हो? क्योंकि तुम स्वयं को, अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं जानते हो।”
जब हम अपने वास्तविक स्वरूप या आत्म-ज्ञान से अनभिज्ञ होते हैं, तो हम दूसरों की राय को अपनी पहचान मान लेते हैं। उनकी प्रशंसा हमें खुशी देती है, और उनकी निंदा हमें दुख देती है। हमारा मन एक झटके में खुशी और गम के बीच डोलता रहता है।
आत्म-ज्ञान की ओर मुड़ो: निंदा से मुक्ति का मार्ग
स्वामी जी का परम समाधान किसी व्यवहारिक बदलाव में नहीं, बल्कि आंतरिक परिवर्तन में है।
नाम बदलने की सलाह (मजाकिया संकेत): शुरुआत में उन्होंने मजाक में अपना नाम बदलने को कहा, पर तुरंत ही अहंकार के प्रति सतर्कता का असली महत्व बताया।
वास्तविक स्वरूप को पहचानना: अगर आप अपने आत्म-ज्ञान को जान लें, तो आपको किसी भी निंदा या बुराई की चिंता नहीं होगी। जब आप जानते हैं कि आप कौन हैं, तो किसी और की राय मायने नहीं रखती।
निष्कर्ष यह है कि लोगों को बदलने की कोशिश में ऊर्जा बर्बाद न करें। आप पूरी दुनिया को कभी नहीं बदल सकते। इसके बजाय, अपनी ऊर्जा स्वयं को जानने में लगाएं।
जब आप आत्म-ज्ञान की तरफ बढ़ते हैं, तो आप बाहरी निंदा और आलोचना से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Q&A)
Q1: पीठ पीछे बुराई करने वाले को चुप कैसे कराएं?
A: स्वामी जी के अनुसार, उन्हें चुप कराने की कोशिश न करें। अपने अहंकार के प्रति सतर्क हों और आत्म-ज्ञान की तरफ ध्यान दें। जब आप उनकी बातों से प्रभावित नहीं होंगे, तो उनकी निंदा आपके लिए शक्तिहीन हो जाएगी।
Q2: आलोचना से दुखी होने का मूल कारण क्या है?
A: स्वामी शैलेंद्र सरस्वती जी के अनुसार, मूल कारण अपने वास्तविक स्वरूप को न जानना है। जब तक आप खुद को नहीं जानते, आप दूसरों की राय को अपनी पहचान मानेंगे, जिससे दुख होगा।
Q3: क्या हमें निंदा करने वालों को सीधे जवाब देना चाहिए?
A: स्वामी जी ने इस पर सीधा जवाब देने की बात नहीं की। उन्होंने कहा कि पीठ पीछे बुराई करने वालों को धन्यवाद दें, क्योंकि सामने आने पर वे आपके लिए और मुसीबत खड़ी करेंगे। आपका ध्यान ज्ञान की तरफ होना चाहिए।
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