चौड़ी सड़के, हरे-घने छायादार वृक्षों की झुकी शाखाएं, हवा संग बाते करती डालियां, शांत माहौल में ब्रितानिया हुकूमत के दौरान बने भवन। नक्काशी जितनी कमाल की, उतना ही कमाल आर्किटेक्चर का। बड़े सलीके से बनी इमारतें जो दूर से देखने पर ही मन को सुकून देती है। इनकी भव्यता ऐसी की आज भी इनकी शानो शौकत में कसीदे पढ़े जाते हैं। जो एक बार सिविल लाइंस इलाके में आए वो इसकी खूबसूरती पर न्यौछावर हो जाए। यहां का चप्पा चप्पा इतिहास की कहानियों को समेटे हुए है। क्षेत्र जिसने ब्रितानी हुकूमत और क्रांतिकारियों के बीच जंग का अफसाना भी देखा और ब्रिटिश को फलते- फूलते भी। बिल्कुल दक्षिणी दिल्ली की तरह। जहां अरावली श्रृंखला की उंची पहाड़ियां भी है और हरे घने वृक्षों का रिज भी। यह इलाका कुछ ऐसा मनमोहक था कि मैटकॉफ, अपने लिए यहां महलनुमा मकान बनाने से खुद को रोक नहीं पाया था। यहां के गांव हो या फिर कालोनियां, इनके आंचल में आज भी इमारत, स्मारक, पुरातत्व अवशेष इतिहास की कहानियां सुनाते हैं। ये कहानियां अपनी जड़ों की तरफ लौटने का का जरिया भी है। Delhi सेक्शन में हम दिल्ली के कुछ ऐसे ही इलाकों के नाम के पीछे की कहानियों से आपको रूबरू कराएंगे।
सिविल लाइंस
निर्मला जैन अपनी किताब दिल्ली शहर दर शहर (Delhi)में लिखती हैं कि ब्रिटिश ने शहर की दिशा में सरकारी इमारतों का निर्माण उस स्थल पर किया, जहां अब दिल्ली सरकार की विधानसभा की पुरानी इमारत है। व दिल्ली विश्वविद्यालय का वह हिससा है जिसमें वाइस चांसलर और रजिस्ट्रार के दफ्तार है जिसके एक कमरे में लार्ड माउंटबेटन ने कभी लेडी माउंटबेटन के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। कश्मीरी गेट के भीतर कुछ और इमारतें थी। यहां विराट अहाते के बीचो बीच बनी सेंट जेम्स की शानदार इमारत और थोड़ी दूरी छोड़कर दो सिनेमाघरों- मिनर्वा और कैपिटल(जिसका नाम बाद में बदलकर रिट्ज हो गया)। जाहिर है इनकी तामीर सिविल लाइंस में रहने वाले अंग्रेज अफसरों की जरुरत को ध्यान में रखकर की गई होगी। इस शहर की लोकप्रियता ऐसी थी कि बाद में गिने चुने भारतीय हाकिम भी शहर के बाहर उसी इलाके में रहने लगे जिसे सिविल लाइंस कहा जाता था। दरअसल, अंग्रेजों ने हर उस शहर में जिसे उन्होंने किन्हीं कारणों से महत्व दिया, एक इलाका पुराने शहर की घनी आबादी के बाहर सिविल लाइंस नाम से बसाया। संभवत: यह नाम पुराने बस्ती कहने की गरज से दिया जाता होगा। एक दिलचस्प बात यह थी कि अलग अलग शहरों के सिविल लाइंस कहे जाने वाले हिस्सों की वास्तुकला में अदभूत साम्य होता था। समय के साथ सिविल लाइंस इलाके पिछड़ गए और सत्तावानों का स्थानांतरण दूसरे अपेक्षाकृत ज्यादा खुले नवनिर्मित आधुनिक हिस्सों में हो गया। दिल्ली में यह प्रक्रिया लुटियंस दिल्ली की परिकल्पना के साथ पूरी हुई।