औरंगजेब का शासन काल (1658 से 1707 ई. तक)
मई 1658 में अपने भाइयों को परास्त करके और अपने बाप को नजरबंद करके औरंगजेब ने राज्य का भार अपने हाथ में लिया और अपना लकब आलमगीर रखा। उस वक्त उसकी उम्र चालीस वर्ष की थी। यह सल्तनत, मुल्की और फौजी मामलात में निपुण था और मजहबी मामलों में कट्टर मुसलमान इसका राज्यकाल अकबर की तरह पचास बरस से केवल एक वर्ष कम रहा।
औरंगजेब के शासन काल पर एक नजर डालने से यह प्रतीत होता है कि उसके शुरू के दस वर्ष अपने को अच्छी तरह कायम करने में बीते, अगले बीस साल में यद्यपि देश में एक प्रकार से अमन रहा, मगर वह हिंदुओं को कुचलने में लगा रहा और इस प्रकार इस अर्से में उसने अपनी द्वेषपूर्ण प्रकृति के कारण अनेक शत्रु पैदा कर लिए। नई-नई शक्तियां उसका मुकाबला करने के लिए खड़ी हो गईं। उसके आखिर के बीस साल उन शक्तियों का दमन करने में गुजरे, मगर वह सफल न हो सका और महान निराशा साथ लेकर इस संसार से विदा हुआ।
जिस मुगलिया सल्तनत को अकबर ने लोगों के दिलों पर काबू करके इस देश में फैलाया था, यद्यपि औरंगजेब ने मुल्की लिहाज से सल्तनत उससे भी अधिक फैलाई- मगर वह लोगों के दिलों के टुकड़े करके; और इसलिए उसकी मृत्यु को सौ साल के अंदर मुगलिया सल्तनत का, ताश के पत्तों के घर की तरह खात्मा हो गया।
औरंगजेब को अव्वल तो अपने बाप की तरह इमारतें बनाने का शौक ही न था, मगर जो कुछ उसने बनवाईं, वे अधिकांश हिंदुओं के मंदिरों को तोड़कर। उसका निर्माण मस्जिदें कायम करने तक सीमित रहा। उसने हिंदुओं के उत्तर प्रदेश के अनेक तीर्थस्थानों का खंडन किया और काशी, मथुरा, अयोध्या, आदि स्थानों पर मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बना डालीं। दिल्ली में वह बहुत कम अर्से ठहर पाया।