दिल्ली में सरमद का मजार और हरे-भरे की दरगाह (1659-60 ई.)

जामा मस्जिद के पूर्वी दरवाजे की सीढ़ियों के नीचे उतरकर थोड़ा उत्तर में सड़क के किनारे ही नीम के पेड़ के नीचे सूफी सरमद की कब्र लाल रंग के कटघरे के अंदर है और उनके सिरहाने सब्ज रंग के लकड़ी के कटघरे में हरे-भरे साहब की कब्र एक चबूतरे पर है। सिरहाने की तरफ एक आला चिराग जलाने को बना हुआ है। कहते हैं, यह सरमद के गुरु थे और 1654-55 ई. में अपने देश सब्जवार से दिल्ली आए थे।

ये दाराशिकोह के साथी थे और उन्होंने उसकी तारीफ में कई कसीदे लिखे। इनकी कविता दिल्ली वालों में बहुत प्रचलित थी। औरंगजेब दाराशिकोह का साथ देने पर इनसे नाराज हो गया और बादशाह के हुक्म से हिजरी 1070 में इन पर कुफ्र का फतवा लगाकर इनका सिर कलम कर दिया गया और रिवायत है कि उसी दिन से तैमूर खानदान का पतन शुरू हो गया।

कहते हैं, दाराशिकोह के कत्ल के पश्चात जब शहर में अमन कायम हो गया तो औरंगजेब ने सरमद को बुलवा भेजा और पूछा कि क्या यह सच है कि उसने दिल्ली का राज्य दारा को दिलवाने का वचन दिया हुआ है। सरमद ने उत्तर दिया- “हां, मैंने उसे अनंत राज्य का वचन दिया हुआ था। “

 इनके कत्ल का समाचार सुनकर बर्नियर ने लिखा था- ‘मैं एक अर्से तक एक नामी फकीर के व्यवहार से बड़ा कुढ़ा करता था, जिसका नाम सरमद था और जो दिल्ली की गलियों में उसी तरह नंगा फिरा करता था, जैसा कि वह दुनिया में पैदा होने के समय था। वह औरंगजेब की धमकियों और मिन्नतों- दोनों को हिकारत की निगाह से देखता था और आखिर कपड़ा न पहनने के जिद्दी इंकार की सजा उसे मृत्युदंड के रूप में भुगतनी पड़ी। ‘ सरमद ईश्वर भक्ति के रंग से रंगा हुआ एक पवित्र आत्मा माना जाता था। दिल्ली के लोग आज भी उसके मजार पर नजर-नियाज चढ़ाते हैं। हरे-भरे शाह के मजार के पास दक्षिण की तरफ एक और कब्र है, जो जमीन में धंस गई है। इसे सैयद शाह मोहम्मद उर्फ हींगा मदनी की बताते हैं, जो सरमद के खलीफा बताए जाते हैं।

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