चांदनी चौक के जैन लाल मंदिर का इतिहास

लाल किले के लाहौरी दरवाजे के पास, लाजपत राय मार्केट के सामने, जैनियों का जो लाल मंदिर है, इसका असल नाम उर्दू का मंदिर है। इसे शाहजहां के अहद का बताया जाता है। इसे रामचंद जैनी ने बनवाया, बताते हैं। चूंकि यह मंदिर बादशाही जैनी फौजियों का था, इसलिए यह उर्दू का मंदिर कहलाने लगा।

कहा जाता है कि एक बार औरंगजेब ने यहां की नौबत बंद करवा दी थी, लेकिन शाही हुक्म के बावजूद नौबत बजती रही, मगर कोई शख्स नौबत बजाता दिखाई नहीं देता था। बादशाह खुद देखने गया। जब उसे यकीन हो गया कि बजाने वाला मंदिर में नहीं है तो हुकम मिल गया कि नौबत बिना रोक-टोक बजा करे।

मंदिर बनाने की रिवायत इस प्रकार है कि यह मंदिर लश्करी था और सिर्फ एक राओटी में किसी जैनी सिपाही ने अपनी निजी पूजा के लिए एक मूर्ति रख ली थी। बाद में यहां मंदिर की इमारत बन गई। जैनी इस मंदिर को बड़ा पवित्र मानते हैं। इसमें बहुत सी तब्दीलियां हो गई हैं। बाएं हाथ की तरफ जो एक बड़ा मंदिर बना हुआ है, वह संवत 1935 में संगमरमर का बनाया गया और उसमें जो मूर्तियां हैं, वे पुरानी नहीं हैं। जो पुराना मंदिर है, उसमें तीन मूर्तियां हैं, बीच वाली पारसनाथ की है। ये तीनों संवत 1548 की हैं। इस मंदिर के साथ मिला हुआ पक्षियों का एक अस्पताल जैनियों ने खोल दिया है और मंदिर की निचली मंजिल में एक पुस्तकालय है।

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