निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के अहाते में कई यादगारें हैं, जिनमें से हर एक के चौगिर्दा संगमरमर की जाली लगी हुई है। दरवाजे के पास वाली यादगार मिर्जा जहांगीर की कब्र है, जो शाही खानदान के शाहजादों में से थे। उसके बिलमुकाबिल दिल्ली के बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले की यादगार है और इसकी पुश्त की तरफ जहांआरा बेगम की कब्र है, जो शाहजहां की चहेती बेटी थी। जहांआरा, मोहम्मद शाह और मिर्जा जहांगीर मुगल खानदान की तीन विभिन्न घटनाओं के दर्शक हैं। जहांआरा ने मुगल सल्तनत का उन्नति काल पूर्ण चंद्र के रूप में देखा, मगर जब उसकी मृत्यु हुई तो उसकी अवनति शुरू हो चुकी थी। मोहम्मद शाह के शासन काल में नादिर शाह के हमले ने मुगल सल्तनत की बुनियाद हिला दी और मिर्जा जहांगीर के जमाने में बादशाहत सिर्फ नाम की रह गई थी। उसकी शानो-शौकत का पता नहीं था और बादशाहत अपमानजनक खात्मे की ओर बढ़ रही थी।

जहांआरा बेगम के जीवन की घटनाओं को इतिहासकारों ने बहुत तोड़-मरोड़कर बयान किया है। एक तरफ उसको आदर्श महिला के रूप में दिखाया गया है और दूसरी ओर बर्नियर ने, जो उस जमाने में शाही दरबार में मौजूद रहा करता था, उसके जीवन पर कई ऐब लगाए हैं, जिनका जिक्र करना जरूरी नहीं है।

जब औरंगजेब ने 1658 ई. में दाराशिकोह को आगरा से नौ मील के अंतर पर संभूगढ़ स्थान पर पराजित करके अपने पिता शाहजहां को गद्दी से उतारकर नजरबंद कर दिया तो शाहजहां की दो लड़कियों में से जहांआरा बाप की तरफ हो गई और रोशनआरा अपने भाई की तरफ। बाप के साथ आगरा के किले में जहांआरा भी मुकीम रही। रोशनआरा भाई की सलाहकार थी और सदा औरंगजेब को शाहजहां के दरबार में जाने से रोकती थी और इसी के सलाह-मशवरे से दाराशिकोह कत्ल किया गया और इसने अपने भाई औरंगजेब की सफलताओं में हिस्सा लिया।

जहांआरा बेगम सुंदरता और बुद्धिमत्ता में अपने काल में मशहूर थी और औरतों में जो गुण होने चाहिए, वे सब ईश्वर ने उसमें कूट-कूटकर भर दिए थे। वह औरंगजेब की हरकत से इस कदर घृणा करती थी, जितनी एक औरत अपनी प्रकृति के अनुसार करने में समर्थ हो सकती है और वह अपनी नाराजगी का इजहार करने में कभी न चूकती थी।

औरंगजेब ने इस अपमान को सहन न करके जहांआरा की संचित संपत्ति में कमी कर दी थी। शाहजहां की 1666 ई. में मृत्यु हुई। बाप की मृत्यु के पांच बरस बाद रोशनआरा का देहांत हुआ और सोलह बरस बाद 1681 ई. में जहांआरा का शरीरांत हुआ। यह मालूम न हो सका कि आगरा से दिल्ली जहांआरा स्वयं चली आई थी या औरंगजेब के हुक्म से उसे वहां आना पड़ा, लेकिन भाई बहन की आपसी रंजिश का इसमें हाथ जरूर था।

जहांआरा ने अपना मकबरा अपने जीवन काल में ही बनवा दिया था। कब्र संगमरमर की बनी हुई है। तावीज के बीच में मिट्टी भरी रहती है, जिस पर हरियाली उगी हुई है। कब्र एक संगमरमर की चारदीवारी के अंदर है और उसमें दाखिल होने का एक ही दरवाजा है, जिसके किवाड़ लकड़ी के हैं। हर दीवार में तीन-तीन दिले निहायत नफीस संगमरमर की जाली के हैं। जिस दीवार में दरवाजा है, उस तरफ दो ही दिले हैं, तीसरे दिले की जगह दरवाजा है।

दीवारों पर संगमरमर का उम्दा जालीदार कटकारा था, जो गिर गया। अब सिर्फ एक तरफ की दीवार पर उसका कुछ हिस्सा बाकी है, जिससे उसकी नफासत का अनुमान लग सकता है। अहाते के चारों कोनों पर छोटी-छोटी बुर्जियां हैं, जिनमें से दो गिर गई हैं। अब दो बाकी हैं। जहांआरा की कब्र अहाते के बीचोंबीच है, जिसके सिरहाने एक पतली-सी संगमरमर की तख्ती कोई छह फुट लंबी खड़ी है। इस पर अरबी जुबान में संगमूसा की पच्चीकारी से बड़े सुंदर अक्षरों में एक लेख लिखा हुआ है, जिसका मलतब यह है: ‘सिवा सब्ज घास के और कुछ मेरी कब्र को ढकने के लिए न लगाया जाए। घास ही मस्कीनों की कब्रों को ढकने के लिए सर्वोत्तम वस्तु है।’ जहांआरा की कब्र के दाहिने हाथ शाह आलम बादशाह के लड़क मिर्जा नीली की कब्र है और बाएं हाथ अकबर द्वितीय की लड़की जमालुन्निसा की।

tags

History, delhi history, history of delhi, Mughal era, Mughal, jahan ara begum, jahan ara begum kaun thi, jahan ara begum husband, jahanara begum and shah jahan relationship, jahanara begum love story, jahanara begum real photo, jahan ara in hindi, jahanara begum father, how did jahanara begum died, जहांआरा बेगम का मकबरा, जहांआरा बेगम, जहांआरा बेगम की जीवनी, निजामुद्दीन औलिया की दरगाह, मोहम्मद शाह रंगीले, शाहजहां की चहेती बेटी, नादिरशाह, दिल्ली पर नादिरशाह का हमला, मिर्जा जहांगीर,औरंगजेब, दाराशिकोह, रोशनआरा,

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here