दिल्ली समेत अन्य हिस्सों में बगावत शुरू हो चुकी थी। अंग्रेज योजनाएं बनाने में लगे थे। उधर उत्तर-पश्चिम की तरफ दो कट्टर इंजीली अफसर हर्बर्ट एडवर्ड्स और जॉन निकल्सन दिल्ली से 11 मई को आया हुआ तार देखकर फौरन आपस में मिलकर फौजी उपायों पर गौर करने लगे।
उनका सुझाव था कि कुछ भर्ती सवारों को मिलाकर एक मजबूत जंगम दस्ता किया जाए, जो पंजाब को आतंकित करते अपना ताबेदार बना सके। 12 मई को एडवर्ड्स ने जॉन लॉरेंस को लिखा कि “उस फ़ौज को फौरन हर जगह भेजना चाहिए क्योंकि यह बगावत बातों से नहीं टलेगी। इसको कुचलना पड़ेगा और जितनी जल्दी खून बहाया जाए उतना ही कम खून बहेगा।” लॉरेंस इस पर राजी हो गया और चार दिन में यह जंगम दस्ता तैयार हो गया, जो फौरन किसी भी तरफ भेजा जा सकता था, और जहां-जहां कंपनी के खिलाफ बगावत हो, उसको वहीं कुचल सकता था।”
निकल्सन के दिमाग में कुछ और भी ख़ून की प्यास भरे ख्यालात थे जो उस वक़्त उसने अपने आला अफसरों को नहीं लिखे, लेकिन बाद में एडवर्ड्स को बताए, जब दिल्ली के कत्ले-आम की ख़बरें तफ्सील से वहां पहुंचीं। उसका कहना था कि वह दोनों मिलकर “एक बिल पेश करें जिससे दिल्ली की अंग्रेज़ औरतों और बच्चों के कातिलों की ज़िंदा खाल खींच ली जाए या उन्हें जला दिया जाए या उनके जिस्म में कीलें ठोंकी जाएं। इतने जुल्म ढाने वालों के लिए सिर्फ फांसी की सजा देना हिमाकत है। अगर मेरा बस चले तो में उन शैतानों को मारने के लिए सिर्फ फांसी का आदेश नहीं दूंगा।” जब एडवर्ड्स ने इस प्रस्ताव को मानने से इंकार किया तो निकल्सन ने कहा कि वह अकेले ही उसको पेश करेगा। और उसने कहा कि अगर जरूरत पड़े तो औरतों और बच्चों के कातिलों को ज़बर्दस्त तकलीफ पहुंचाने से सिर्फ इसलिए परहेज नहीं करना चाहिए कि यह देसी रिवाज है… “हमको भी बाइबिल में बताया गया है कि सजा के मुताबिक कोड़े लगाने चाहिए। अगर उन बदजातों के लिए फांसी की सजा काफी नहीं है, तो फिर आम बागियों के लिए तो वह बहुत संगीन है। अगर आज वह मेरे काबू होते तो मैं उनको बदतरीन तकलीफ पहुंचाता और उसका मेरी अंतरात्मा पर कोई बोझ नहीं होता।
जॉन लॉरेंस खुद भी कड़ी सज़ा देने के खिलाफ नहीं था। वह दिल्ली में सर थॉमस मैटकाफ का मातहत रह चुका था। उसने कंपनी की सिविल सर्विस में बहुत तेज़ी से तरक्की की थी। उसका अपनी काबिलियत और मेहनत के लिए नाम था। उसने अपने अफसरों को गर्मी में पहाड़ों पर जाने से रोक दिया था क्योंकि उसे ‘केकी लोग’ नापसंद थे, जिससे उसका मतलब था कि वह लोग जो बजाहिर केक खाना पसंद करते हैं और अपने को बहुत परिष्कृत मानते हैं।” जब उसे मालूम हुआ कि उसका एक अफसर पंजाब में अपने बंगले में एक पियानो ले आया है तो उसने बहुत नाराजगी से कहा कि मैं उसका पियानो खुद तोड़ दूंगा। और फिर पांच साल में पांच बार पंजाब के एक सिरे से दूसरे सिरे तक उसका तबादला कराया ताकि उसको सजा मिल सके।” यह कहानी सुनकर उससे तंग आए हुए एक अफसर का कहना थाः
“मैं भी कलकत्ता से एक बहुत खूबसूरत चीनी का डिनर सेट लेकर आया था और सबने मुझे सलाह दी कि मैं यह बात बिल्कुल आम नहीं करूं, वर्ना मुझको भी एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता रहेगा, जब तक मेरा सेट बिल्कुल चकनाचूर नहीं हो जाए। लॉरेंस एक मुंहफट और उजड़ आदमी थे। उनके ख्याल में एक सूबाई अफसर को सख्त और चुस्त होना चाहिए, जो हर वक्त बूट और बीचेज पहने रहे और घुड़सवारी के लिए तैयार रहे और सारा दिन और सारी रात काम करे और जब और जहां फुर्सत मिले वहीं खाना-पीना कर ले। वह खुद ऐसा करते थे और उनके आगे पीछे कोई नहीं था, न ही कोई बीवी, न बच्चे उनकी रुकावट थे। उनका सारा साजो-सामान सिर्फ कैंप का एक सख्त पलंग, एक कुर्सी और मेज और एक छोटा सा बक्स था, जो जरूरत के वक्त ऊंट पर आसानी से चढ़ाया जा सकता था।