1857 की क्रांति: दिल्ली में बगावत अब निर्णायक मोड पर पहुंच चुकी थी। हिंदू और मुसलमान मिलकर हिस्सा ले रहे थे। मई और जून के महीनों में हिंदू पंडित भी अंग्रेजों के खिलाफ वैसे ही भाषण देते थे, जैसे मुसलमान मौलवी।

उर्दू इतिहासकार जकाउल्लाह का कहना है कि ‘चांदनी चौक और दूसरे मुहल्लों में पंडित शास्त्रों से श्लोक पढ़कर लोगों को बताते थे कि उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना चाहिए।” उनमें से एक ब्राह्मण पंडित हरिचंद्र खासतौर से बहुत खास थे और अंग्रेजों की कई खुफिया रिपोर्टों में उनका जिक्र है। एक जासूस का कहना था कि वह अफसरों को बताते थे कि उन्हें अपने ज्योतिष और गूढ़ ज्ञान से पता है कि फौज को दैवीय सहायता प्राप्त होगी।

उन्होंने एक विशेष दिन की भी भविष्यवाणी की, जब एक बहुत ख़ौफनाक लड़ाई होगी, एक नया कुरुक्षेत्र होगा। उन्होंने सिपाहियों से कहा कि उनके घोड़ों के पांव अंग्रेजों के खून में डूब जाएंगे और फिर उनको फतह होगी। फौज के सब लोगों को उन पर बहुत श्रद्धा है। यहां तक कि लड़ाई का वक्त और जगह भी उनकी ज्योतिष से तय होता।

ऐसे संदर्भ भी आए हैं कि हकीम अहसनुल्लाह–बजाहिर बहादुर शाह जफर के निर्देशों पर-ब्राह्मणों को पैसा देते थे कि वह रोज अग्नि के सामने विजय की प्रार्थना करें। एक ब्राह्मण के बारे में यह संदर्भ भी है, जिसने जफर से कहा कि ‘अगर उसे तीन दिन तक किसी अच्छी तरह से सुरक्षित घर में रखा जाए और उसकी जरूरत की सारी चीजें मुहैया की जाएं जिनसे वह खुश्बू और धुआं उठा सके, तो बादशाह की फतह होगी।’

जफर उससे बहुत प्रभावित हुए और उसको जो कुछ भी उसने मांगा दे दिया। मुगल दरबार के हर ऐलान में बार-बार हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर डाला जाता था। अपने शीर्षक के बावजूद, फतहे-इस्लाम नाम के एक इंकलाबी पैंफ्लेट ने इस बात पर बहुत जोर डाला कि हिंदू और मुसलमानों की आपसी एकता की बहुत जरूरत है और कि किस तरह मुगल बादशाहों ने हमेशा अपनी हिंदू रिआया की देखभाल की है। इसी तरह, बहुत से दस्तों में हिंदू और मुसलमान सिपाही दोनों शामिल थे और जैसे सर सैयद अहमद खान का कहना है वह दोनों एक दूसरे को भाइयों की तरह समझते थे।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here