प्रमोद भार्गव

आखिरकार सोमवार को मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुलनाथ के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की अटकलों पर पूर्णविराम लग गया। साढ़े चार दशक से कांग्रेस के निष्ठावान अनुयायी के रूप में अहम पारी खेल चुके कमलनाथ का लगता है अब प्रारब्ध साथ नहीं दे रहा है। बीते एक माह से कमलनाथ के भाजपा में जाने के अनुमान लगाए जा रहे थे, लेकिन पिछले रविवार को तो ऐसे लगा कि संध्या तक भाजपा की सदस्यता पिता और पुत्र के साथ कुछ विधायक भी ग्रहण कर लेंगे।

इस दौरान कमलनाथ के छिंदवाड़ा और दिल्ली के घरों पर शनिवार से ही भागवा झंडे लहराने लगे थे। उनके अत्यंत निकटतम साथी सज्जन सिंह वर्मा समेत कई वर्तमान और पूर्व विधायकों ने तो सोशल मीडिया हैंडल्स पर से कांग्रेस के चुनाव चिन्ह और झंडे भी हटा लिए थे। वर्मा ने तो यह तक कह दिया था कि कमलनाथ का शत-प्रतिशत भाजपा में जाना तय है। साथ ही वर्मा ने यह भी कहा था कि जहां मेरा नेता रहेगा, वहीं मैं रहूंगा। अटकलें इसलिए भी तेज हो गई थीं, कि कमलनाथ ने छिंदवाड़ा, भोपाल और दिल्ली का सफर तय करते हुए प्रेस के समक्ष यह खंडन नहीं किया कि मैं भाजपा में नहीं जा रहा हूं। इस पूरे घटनाक्रम में कमलनाथ की निरापद छवि और पार्टी के प्रति विश्वसनीयता को पलीता लगा है। वे प्रहसन और फजीहत के पात्र भी बन गए हैं।

कमलनाथ को अब तक कांग्रेस का परिपक्व और दुर्जेय नेता माना जाता था, लेकिन इस घटनाक्रम से उनकी अपरिपक्वता सामने आई है। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद गुटबाजी ने कुछ ऐसी अंगड़ाई ली कि कांग्रेस में प्रदेश के सबसे ताकतवर माने जाने वाले कमलनाथ अलग-थलग पड़ गए।

दरअसल कमलनाथ की नाराजी का कारण एक तो यह माना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव के समय उनकी राय नहीं ली गई। दूसरे, विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता के रूप में उमंग सिंघार को चुने जाते वक्त भी उनकी पूछ-परख नहीं हुई। प्रदेश की राजनीति में अन्य जो भी निर्णय लिए जा रहे हैं, इनमें उनसे कोई सलाह-मशविरा नहीं किया जा रहा है। हालांकि राज्यसभा का ग्वालियर के अशोक सिंह को उम्मीदवार बनवाने में उन्हीं की प्रमुख भूमिका रही है। लेकिन अशोक सिंह के चयन के साथ ही पार्टी में खींचतान और गुटबाजी धरातल पर आ गई।

हांलाकि ऐसा कहा जा रहा है कि अशोक सिंह को टिकट दिलाने के सिलसिले में राहुल गांधी और कमलनाथ के बीच मनमुटाव भी पैदा हो गया है, क्योंकि राहुल अपनी पसंदीदा उम्मीदवार पूर्व सांसद और लेखिका मीनाक्षी नटराजन को बनवाना चाहते थे। लेकिन कमलनाथ पिछड़े वर्ग का कार्ड चलकर न केवल अशोक सिंह को टिकट दिलाने में सफल रहे, बल्कि उन्होंने एक तीर से ओबीसी के अन्य बड़े नेताओं अरुण यादव और जीतू पटवारी को हाशिए पर डाल दिया। इससे जाहिर होता है कि कमलनाथ की कांग्रेस में खूब चल रही थी।

दरअसल इस समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कई नेता भाजपा में जाने के मूड में हैं। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी कांग्रेस मुक्त भारत करने के इरादे से इस एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है। लेकिन हर कोई का ज्योतिरादित्य सिंधिया या हेमंता विस्वा होना मुश्किल है। सिंधिया ने कांग्रेस से पल्ला झाड़कर 22 विधायकों के साथ भााजपा की सरकार बनवाई। वहीं हेमंता विस्वा ने असम में कांग्रेस को कमजोर करके भाजपा की बुनियाद पुख्ता कर दी। इसलिए कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता ने आगे बढ़कर कह भी दिया कि कमलनाथ को हम पार्टी में नहीं लेंगे। उनके लिए हमारे दरवाजे बंद हैं। हम उन्हें क्यों लेंगे ? आदमी बाजार में जाएगा तो ताजे फल लेगा न कि बासे फल।

कमलनाथ पर यह इतना तीखा कटाक्ष था कि उन्हें वर्तमान राजनीति के परिप्रेक्ष्य में महत्वहीन जता दिया। सूत्रों के मुताबिक इस बयान के बाद ही कमलनाथ के भाजपा में जाने की बाजी पलट गई। 18 फरवरी को भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन की समाप्ति के बाद अमित शाह ने चुनिंदा पदाधिकारियों के साथ एक बैठक आहूत की। जिसमें चुनावी मुद्दों के साथ कांग्रेस के नेताओं के भाजपा में शामिल होने को लेकर भी चर्चा हुई। परंतु कमलनाथ के भाजपा में आने पर विपरीत राय मिली। नकुलनाथ के भाजपा में शामिल होने पर भी सहमति नहीं बन पाई। कमलनाथ के साथ जिन 17 से लेकर 30 विधायकों के जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं, उन्हें लेकर दल-बदल कानून का पेंच फंस गया। इस कानून से बचने के लिए कांग्रेस के 66 विधायकों में से 23 विधायकों का भाजपा में जाना जरूरी था, अन्यथा चुनाव का सामना करना पड़ता,जो एक पेंचीदा काम भाजपा के लिए साबित होता।

खैर, जब रविवार को कमलनाथ का भाजपा में जाना लगभग तय था, तब सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने उनसे फोन पर बात की और कमलनाथ ने बढ़े कदम पीछे खींच लिए। राहुल ने उन्हें हवाला दिया कि आप ने पार्टी और देश के लिए बहुत कुछ किया है। पार्टी ने हमेशा आपका सम्मान किया है और आगे भी करती रहेगी। बताते हैं कमलनाथ को यह भी जताया गया कि एक समय आप को इंदिरा गांधी ने राजीव और संजय के बाद अपना तीसरा बेटा बताया था। गोया, कमलनाथ थम गए और सज्जन वर्मा ने मीडिया को बताया कि उनका कांग्रेस छोड़ने का कोई विचार नहीं है। वे अपने दफ्तर में लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के चयन और राहुल गांधी की मध्यप्रदेश में होने वाली न्याय यात्रा की तैयारी में लगे हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जातिगत समीकरण कैसे कांग्रेस के अनुकूल बनें इस जोड़-तोड़ में कमलनाथ लगे हैं।

हालांकि घटनाक्रम के दौरान दिग्विजय सिंह एकमात्र ऐसे नेता रहे, जिन्होंने कमलनाथ पर संदेह नहीं किया। वे कहते रहे कि कमलनाथ कांग्रेस के स्तंभ रहे हैं, अतएव लगता नहीं कि वे भाजपा में जाने की पहल करेंगे। सबकी तरह ईडी और आईटी का दबाव उन पर भी है, परंतु कमलनाथ जी का चरित्र किसी अनैतिक दबाव में आने वाला नहीं है।

यह बयान देते हुए दिग्विजय सिंह मीडिया पर भी भड़के कि 15 दिनों से आपके पास कोई दूसरी खबर नहीं है। जीतू पटवारी ने भी कहा कि कमलनाथ कहीं नहीं जा रहे हैं। हालांकि इस सब के बावजूद कैलाश विजयवर्गी बोले कि दिल्ली में कुछ भी विचार हो, मध्यप्रदेश में हम उन्हें लेने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आग के बिना धुआं नहीं उठता है। बहरहाल सच्चाई क्या है, यह कमलनाथ और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जानता है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में कमलनाथ की फजीहत तो हुई ही, उनके प्रति अविश्वास की धारणा भी कांग्रेस में पनपती दिख रही है।

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