बेहद दिलचस्प अंदाज में दशकों पुराने केस सुलझते देखना दर्शकों के लिए दिलचस्प अनुभव
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
gyaarah gyaarah Review: कोरियन सीरीज लोगों को खूब पसंद आ रही हैं। यही कारण है कि शायद कोरियन सीरीज ‘सिग्नल’ का रीमेक भारत में बनाई गई है। निर्देशक उमेश बिष्ट की सीरीज ‘ग्यारह ग्यारह’ आज यानी शुक्रवार को ओटीटी प्लेटफॉर्म जी 5 में स्ट्रीम हुई। सस्पेंस-थ्रिलर और कलाकारों के बेहतरीन अभिनय से सजी यह सीरीज कहीं न कहीं दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब हुई है।
‘ग्यारह ग्यारह‘ सीरीज की कहानी
‘ग्यारह ग्यारह’ काल्पनिक थ्रिलर वेब सीरीज है, जो तीन दशकों- 1990, 2001 और 2016 में घटी घटनाओं को जटिल रूप से दिखाती है। पुलिस की एक टीम पुराने बंद पड़े मामलों को निपटाने की कोशिश में जुटी है। लेकिन एक रहस्यमय वॉकी-टॉकी है, जो रात के ठीक 11:11 बजे जो अलग-अलग समय के दो पुलिस अधिकारियों (राघव जुयाल और धैर्य करवा) को जोड़ती है। जैसे-जैसे वो आपसी मदद से इन मामलों में गहराई से उतरते हैं, छिपी हुई सच्चाइयां बाहर आने लगती हैं।
पहली कहानी की कड़ी युगआर्य के बचपन से जुड़ी है, जहां एक छोटी लड़की अदिति (अजया सेठ) का अपहरण कर उसे मार दिया जाता है। उस वक्त बाल युग (युग पंड्या) उसका गवाह बनता है, मगर 15 साल बाद वो 1990 के पुलिस अफसर शौर्य अंथवाल की मदद से अदिति के कातिल को पकड़ने में कामयाब होता है। दूसरी कहानी ‘टाइ एंड डाय’ जैसे कत्ल की सीरीज से जुड़ी है, जहां कातिल 2001 में रात को अकेले घर लौट रही लड़कियों को मारकर अपना शिकार बनाता था। दुर्भाग्य से उन कत्ल हुईं लड़कियों में शौर्य की गर्लफ्रेंड मुक्ति मोहन भी थी। मगर कई साल बाद युग और शौर्य उस शातिर किलर को अपनी गिरफ्त में लेने में कामयाब हो जाते हैं। शुरूआत के चार एपिसोड काफी बोरिंग लगते हैं।
म्यूजिक, स्क्रीनप्ले और डायरेक्शन
टाइम ट्रैवल पर आधारित कहानियों में हमेशा पास्ट और प्रेजेंट का कन्फ्यूजन देखने को मिलता है, मगर उमेश उस कन्फ्यूजन को संभालते हैं। शुरू में दर्शक को समझने में थोड़ी दिक्कत होती है, मगर एक बार कहानी का माहौल सेट हो जाने के बाद वह कालखंडों से खुद को रिलेट करने लगता है। हां, कथानक थोड़ा-सा धीमा जरूर है, मगर सस्पेंस -थ्रिलर में बैकग्राउंड म्यूजिक और सिनेमैटोग्राफी का अहम रोल होता है और ये दोनों विभाग सीरीज में मजबूत हैं।
सीरीज में प्रमुख है कलाकारों का अभिनय
कलाकारों का अभिनय सीरीज का मुख्य आकर्षण है। युग के रूप में राघव जुयाल शानदार अभिनय अदायगी के साथ पेश होते हैं। वो एक मेहनती, ईमानदार और बेखौफ पुलिस वाले की भूमिका में वे अपनी छाप छोड़ते हैं। वामिका के रूप में कृतिका कामरा न केवल एक ठोस पुलिस अधिकारी को साकार करती है, बल्कि समाज में लड़की होने की चुनौती को भी दर्शाती हैं। उनकी और राघव की जुगलबंदी रोचक है। शौर्य के रूप में धैर्य करवा के हिस्से में सबसे जटिल किरदार आया है, मगर वे इसे अपने स्टाइल से जी गए हैं।