नई सड़क..जहां प्रतिदिन किताब के शौकीनों का मेला सा लगता है। खचाखच भीड़ भरी सड़क पर, स्ट्रीट फूड की खुशबू के बीच कोई मोबाइल तो कोई कागज पर लिखकर लाए किताबों के नाम बुदबुदाते हुए बढ़ता रहता है। एक दुकान से दूसरी दुकान मनपसंद किताब ढूंढने का सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक कि किताब मिल ना जाए। दिल्ली के कोने कोने से ही नहीं गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुरूग्राम समेत देश के विभिन्न हिस्सों से किताब पसंद लोगों का जमावड़ा होता है, जो बड़ी हसरतों से नई सड़क की तरफ रूख करते हैं। लेकिन यहां भीड़ का एक बहुत बड़ा हिस्सा जिस एक दुकान को ज्यादा तरजीह देता है वह धर्म प्रताप कोहली की दुकान है। पहचान, वही पुराने दरवाजे, पुराना पंखा, पुरानी कुर्सी, आलमारी के बीच करीने से सजी हुई किताबें। नजर दौड़ाएं तो इनमें चेतन भगत, अमीश से लेकर डेन ब्राउन, डेनियल स्टील, जान, इदरिसी, आलिवर तक की किताबें दिखती है।
किताबों का शौक
बुजुर्ग धर्म प्रताप कोहली कहते हैं कि किताबों से लगाव तो बचपन से था। पिता एसके कोहली डॉक्टर थे। हम मारवाड़ी कटरे के सामने पुरानी दिल्ली में ही रहते थे। जब मैने होश संभाला तो खुद को किताबों में ढूंढते पाया। यह शौक कब कारोबार में बदला पता ही नहीं चला। पहले हम कभी कभार ही किताबों को बेचते एवं खरीदते थे। यह एक तरफ से कहें तो शौकिया वाला हिसाब था। लेकिन 3 जनवरी 1987 को अचानक पिताजी की मौत हो गई। उनकी मौत के बाद पहली बार स्थायी रूप से किताबों की दुकान खोली।
43 किताबों से शुरू हुआ सफर
धर्म प्रताप कहते हैं कि मैंने सन 87 में 43 किताबों के साथ दुकान शुरू की थी। इनमें मेडिकल, टेक्निकल, लिटरेचर की किताबें थी। उन दिनों को याद करते हुए धर्म प्रताप कहते हैं कि उन दिनों पढ़ने वालों की कमी नहीं थी। लोग लाइन लगाकर किताबें खरीदने आते थे। दरियागंज में अंसारी रोड पर ही पब्लिशिंग हाउस थे। वो दिन भी क्या दिन थे। पढ़ने वाले दूर दूर से किताबें ढूंढने आते थे। लोग बेहतरीन लेखक कि किताबें मांगते थे।
रेअर किताबों का खजाना
साहित्य पढ़ने वालों की कमी का असर यहां दिखता है। धर्म पाल कहते हैं कि यहां साहित्य, मेडिकल समेत अन्य कंपटीशन की तैयारियों की किताबें मिलती है। दुकान की खासियत, यहां मिलने वाले रेअर किताबों का खजाना है। बकौल धर्मपाल हम चाहते हैं कि लोग दिल खोलकर पढ़ें। तभी तो हम दावा करते हैं कि लोग हमसे किताबों का नाम बताएं। हम उन्हें ढूंढकर उन्हें देंगे। यही वजह है कि लोग देश के कोने कोने से यहां आते हैं एवं किताबों की लिस्ट थमा उपलब्ध कराने की गुजारिश करते हैं।
साड़ी की बढ़ती दुकानें
पुराने दिनों को याद करते धर्मपाल कहते हैं कि एक समय था जब नई सड़क पर आधा हिस्से पर कपड़े की दुकानें जबकि आधे हिस्से में किताबों का संसार था। लेकिन आनलाइन किताब पढ़ने के चलन, स्कूल-कालेज समेत अन्य संस्थानों द्वारा प्रकाशकों से समझौता कर किताबें बेचने के चलन समेत कई अन्य कारणों ने यहां किताबों की दुकानों पर असर डाला है। यही वजह है कि अब दुकानकार किसी तरह जीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कहते हैं, मेरी खुद की दुकान को ही देख लीजिए। हम पहले सिर्फ किताबें बेचते थे लेकिन अब स्टेशनरी आइटम भी रखने पड़ रहे हैं।
दुकान- दिव्या प्रकाशन
स्थल- नई सड़क, अपोजिट मारवाड़ी कटरा।
मूल्य- 50 रुपये से किताबें शुरू।
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