अनुपम खेर के दमदार एक्टिंग की तारीफ कर रहे दर्शक

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।  

the signature movie review: बुजुर्ग माता-पिता की बेबसी और बच्चों के उपेक्षित बर्ताव पर बॉलीवुड में ‘अवतार’, ‘अमृत’, ‘बागवान’, सरीखी कई फिल्में बनी हैं, मगर मराठी रंगमंच और सिनेमा का जाना-माना नाम रहे निर्देशक गजेंद्र अहिरे की फिल्म ‘द सिग्नेचर’ एक ऐसे समर्पित बुजुर्ग पति की कहानी पर आधारित है, जो अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखी गई अपनी पत्नी को बचाने के लिए बुढ़ापे में दर-दर की ठोकरें खाता है। इस मार्मिक कहानी को संजय जीवन की कड़वी सच्‍चाइयों के साथ डील करते हैं और उस पर अनुपम खेर का दमदार अभिनय सोने पर सुहागा साबित होता है।

‘द सिग्नेचर’ की कहानी

जीवन भर अपने बच्चों के पालन -पोषण और उन्हें सेटल करने के बाद रिटायर अरविंद पाठक (अनुपम खेर) अपनी पत्नी मधु (नीना कुलकर्णी) के साथ खुशियां मनाने और जिंदगी एंजॉय करने के लिए यूरोप की ट्रिप में जाता है। मगर अचानक उनकी जिंदगी में भूचाल आ जाता हैं, जब एयरपोर्ट पर ही मधु का ब्रेन हैमरेज हो जाता है। अस्पातल में भर्ती करने पर उसे वेंटिलेटर पर रखा जाता है। मगर कुछ समय बाद डॉक्टर्स अरविंद को पैसे न चुकाने के कारण डीएनआर फॉर्म पर हस्ताक्षर करने को कहते हैं। इसमें साइन करने के बाद मरीज इलाज बंद कर दिया जाएगा।

आर्थिक तंगी के कारण बेटा भी पिता को सिग्नेचर करने का दबाव डालता है। मगर अरविंद अपनी पत्नी को बचाने के लिए पैसों का इंतजाम करने के लिए कमर कस लेता है। अरविंद अपनी पत्नी की सांसे चलाने के लिए संपत्ति बेचने से लेकर, उधार मांगने और क्राउड फंडिंग जैसी तमाम कोशिशें करता है। लेकिन क्या वह अपनी पत्नी को सांसें दे पाएगा? क्या उसे पैसों की मदद मिलेगी? ये सब जानने के लिए आपको द सिग्नेचर फिल्म देखनी होगी।

कैसी है फिल्म की कहानी?

डायरेक्टर गजेंद्र अहिरे इस फिल्म में एक खुशहाल सीन से आपको जिंदगी के उस दौर में ले जाते हैं, जो आपको रो देने पर मजबूर कर देता है। कहानी के बुजुर्ग पात्रों के जरिए गजेंद्र बूढ़े हो चुके माता-पिता के प्रति उनके बच्चों ही नहीं, बल्कि समाज की उपेक्षित सोच की पड़ताल करते हैं। क्या बूढ़े होने का मतलब नकारा होना है? क्या उन्हें जीने का हक नहीं है? ऐसी कई सारे सवाल आपको फांस की तरह चुभते हैं।

कैसा है कलाकारों का अभिनय

इसमें कोई दोहराए नही कि अनुपम खेर एक कमाल के एक्टर हैं। अन्य किरदारों में रणवीर शौरी ने भी अपने अभिनय से सभी का ध्यान खींचा है। अंबिका के रूप में महिमा चौधरी की एक्टिंग दिल को छू लेने वाली है। असल जिंदगी में कैंसर की लड़ाई लड़ चुकी महिमा फिल्म में भी कैंसर की शिकार महिला के दमदार किरदार में हैं। अन्नू कपूर ने दोस्त के रूप में अपनी भूमिका के साथ हर तरह से न्याय किया है। नीना कुलकर्णी छोटे-से चरित्र में छाप छोड़ जाती हैं।

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