1857 की क्रांति : 1857 से पहले विलियम हडसन को उसके ज़्यादातर साथी बदमाश समझते थे। वह एक पादरी का काबिल बेटा था और अपने ज़्यादातर साथियों के विपरीत कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से शिक्षित था, लेकिन उसके पादरी भाई का कहना था कि किताबें पढ़ने से उसे सिरदर्द होता था और उसको सिर्फ एक ‘ईसाई सिपाही’ बनने में दिलचस्पी थी।

एक परिचित ने उसके हुलिए के बारे में लिखा है कि “वह एक लंबे कद का आदमी था, जिसके सुनहरी बाल थे और फीका, चिकना चेहरा, घनी मूंछें और बड़ी-बड़ी बेचैन और कठोर आंखें थीं।”” लोग उसकी मनमौजी और बेपरवाह आदतों के बारे में बात करते थे। वह एक ‘बाकमाल तलवारबाज’ था।

वह सिख युद्ध के जमाने में हिंदुस्तान आ चुका था और जल्द ही तरक्की करके अमृतसर का डिप्टी कमिश्नर बन गया। फिर उसको उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर के यूसुफजई इलाके में डिप्टी कमिश्नर बनाकर भेज दिया गया। लेकिन उसका पतन भी इतनी ही तेज़ी से हुआ। 1854 में उसको अपने ओहदे से बर्खास्त कर दिया गया, जब उसके बारे में एक तफ्तीश की गई और मालूम हुआ कि उसने रेजिमेंट के पैसे में गबन किया है और लापरवाही से काम किया हैं। उस वक्त उसका कहना था कि ‘मैं पूरी तरह तबाह हो चुका हूं’।”

बाद में उसको तमाम इल्जामों से बरी कर दिया गया, लेकिन उसके बारे में अफवाहें उड़ती रहीं। कहा जाता था कि उसने बिना मुकद्दमे के यूसुफजई के सरदार और उसके बारह साल के लड़के को कैद कर लिया और एक साहूकार को मरवा दिया, जिससे उसने कुछ पैसे कर्ज लिए थे।” और यह भी कहा गया कि वह पठानों और आफरीदी लोगों से निजी इंतकाम ले रहा है। वह अपने आदमियों में बहुत अलोकप्रिय था।” इन सब कारणों से वह बहुत बदनाम था और बहुत से लोग सर्जन एडवर्ड हेयर से सहमत थे कि वह इतना बेईमान है कि एक अच्छा सिपाही हो ही नहीं सकता, और कि ‘वह सिर्फ इटली के डाकुओं का नेतृत्व कर सकता है’।

गदर से कुछ समय पहले 21 मार्च को उसके भूतपूर्व संरक्षक जॉन लॉरेंस के बड़े भाई हेनरी ने भी उससे हाथ धो लिए और उसको लिख दिया “मुझे उम्मीद नहीं है कि अब कोई भी तुम्हारी मदद कर सकता है। बगावत के वक्त होडसन एक औपचारिक तहकीकात पर जोर डाल रहा था, जो उसे उन इल्जामों से बरी कर दे, जो उस पर लगाए गए थे। लेकिन जिस तरह निकल्सन की उन नए मुश्किल हालात की वजह से तेजी से तरक्की हुई थी, वैसे ही अपने जोश, निर्दयता और अक्खड़ आत्मविश्वास की वजह से कमांडर-इन-चीफ का होडसन पर ध्यान गया और वह जल्दी ही उसके स्टाफ का खास अफ़सर बन गया। बगावत के पांच दिन बाद उसको असिस्टेंट क्वार्टरमास्टर जनरल बना दिया गया और उसको सिख सिपाहियों का एक निजी दस्ता भर्ती करने की भी इजाज़त मिल गई, जो उसकी ‘निजी सुरक्षा और जासूसी’ करने के लिए था।

कुछ दिन बाद जब होडसन प्रमुख फौज से आगे चलने के लिए, भर्ती करने करनाल में था, तो उसके मकान में दिल्ली के कुछ फरार अंग्रेज़-जिनमें ऐनी जेनिंग्स के मंगेतर चार्ली थॉमसन और पूरा बैगनट्राइबर खानदान शामिल था-ठहरे थे, उस वक्त उसे ख़बर मिली कि एंसन ने उसको जाती सिपाहियों के दस्ते को बढ़ाकर एक अनियमित घुड़सवारों की पूरी रेजिमेंट बना देने का आदेश दिया है, जिसका नाम, होडसन्स हॉर्स होगा।” होडसन के पहले कामों में से एक यह था कि वह हंगामे भरे रास्तों से गुज़रता हुआ चंद घुड़सवार सिख सिपाहियों के साथ मेरठ जाए और वहां फंसी हुई अंग्रेज़ों की रेजिमेंट से संपर्क स्थापित करे। होडसन ने बड़ी खूबी से रास्ता तय किया। 21 मई की रात को वह 9 बजे चलकर अगले दिन सुबह सवेरे मेरठ पहुंच गया। उसने विल्सन को पैगाम पहुंचाया (क्योंकि दूसरा जनरल हैविट ‘बिल्कुल बेबसी और मूर्खता की स्थिति में’ था), फिर वह नहाया, नाश्ता किया, दो घंटे सोया और फ़ौरन करनाल वापस रवाना हो गया जहां उसको आखरी 30 मील में लड़ाई करते हुए अपना रास्ता तय करना पड़ा। फिर 23 मई को वह एंसन के पास अम्बाला पहुंचा, जो 250 मील दूर था। उसने सख्त गर्मी में यह सफर सिर्फ दो दिन में तय किया और उसी रात वह वापस करनाल के लिए चल पड़ा। अगले दिन उसने अपनी बीवी को लिखा, “पिछली पांच रातों में मैं सिर्फ एक रात बिस्तर पर सो पाया हूं इसलिए मैं काफी थका हुआ हूं।”

निकल्सन की तरह होडसन भी कानून अपने हाथ में लेने के लिए जाना जाने लगा था, खासतौर से जब कोई बागी सिपाही उसके हाथ लग जाता । 16 मई को उसने फिर अपनी बीवी को लिखा “आजकल बाग़ी सिपाहियों के साथ नर्मी बरतने का रुझान है, जो उतना ही अनुपयुक्त है जितना कि विनाशकारी । मैं कभी अपने सिपाहियों को कोई कैदी नहीं लेने देता बल्कि उनको फौरन गोली मार देता हूं।” उसे लोगों को मारने में बहुत मजा आता था और इस वजह से वह बहुत बदनाम था। उसके एक अफसर ने लिखा थाः “चूंकि वह एक ज़बर्दस्त तलवारबाज था, इसलिए उसका निशाना कभी नहीं चूकता था। जिस तरह वह बहादुर और गुस्से से भरे बागियों के साथ खिलवाड़ करता वह भी हैरतअंगेज था। मैं उसकी आज भी कल्पना करता हूं, हंसते, मुस्कुराते, घातक वार बचाते हुए इस इत्मीनान से जैसे कोई मक्खी उड़ा रहा हो, और वह पूरे वक़्त कहता रहता, ‘चलो फिर से कोशिश करो,’ ‘यह क्या है?’ ‘तुम अपने को तलवारबाज समझते हो?’ वगैरा वगैरा। इतने ड्रामाई ढंग से नहीं, लेकिन इससे ज़्यादा अहम, होडसन ने जासूसी के क्षेत्र में खुद को इतना ही क्रूरतापूर्वक सक्षम साबित किया। उसको यह तक पता होता था कि बागियों ने रात के खाने में क्या खाया था।” दिल्ली मार्च करते वक्त उसने एक काने मौलवी रजब अली को अपने प्रमुख सहायक के रूप में भर्ती कर लिया था, जो पहले सर जॉर्ज क्लर्क के साथ–जो पहले सिख सूबों का सियासी एजेंट था काम कर चुका था और फिर पंजाब में सर हेनरी लॉरेंस के साथ रहा था।

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