Ram mandir:

आखिरकार वो घड़ी आ ही गई, जिसका करोड़ों भारतवासियों को इंतजार था। 500 सालों के इंतजार के बाद अयोध्या में रामलला का मंदिर बनकर तैयार है। 22 जनवरी राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी। यह आयोजन जितना भव्य होगा, उससे कहीं कम भव्य निमंत्रण पत्र भी नहीं है। निमंत्रण के कवर पेज पर भव्य राम मंदिर का चित्र है। यही नहीं आमंत्रण पत्र के साथ मंदिर आंदोलन के नायक संतों और प्रमुख लोगों के बारे में जानकारी प्रदान करता एक बुकलेट भी दिया जा रहा है। इसमें एक नाम ऐसा भी है, जिसने आज से 30 साल पहले मंदिर निर्माण की भविष्यवाणी की थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं रामानुज परम्परा के संत ब्रह्मलीन देवरहा बाबा की।

यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि कांग्रेस के वर्तमान चुनाव निशान हाथ के पंजे को भी देवरहा बाबा की ही देन बताया जाता है। इसके पीछे की कहानी बहुत ही रोमांचक है। कांग्रेस की स्थापना 1885 दिसंबर महीने में एओ ह्यूम ने की।

देश की आजादी के बाद जब 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस भी चुनावी दंगल में ताल ठोंकी। यह चुनाव जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में लड़ा गया था। इस चुनाव में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी थी। इस चुनाव चिन्ह को लेने के पीछे कांग्रेस का मकसद किसानों और ग्रामीण जनता को पार्टी से जोड़ना था। ऐसा हुआ भी। पार्टी 1952 में भारी बहुमत से चुनाव जीती। जीत का यह सिलसिला यही नहीं रूका। 1957, 1962 के चुनावों में भी कांग्रेस का विजय पताका फहराया। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री को पीएम बनाया गया। लेकिन ताशकंद में शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री का कार्यभार सौंपा गया। उस समय कामराज सिंडीकेट का कांग्रेस पर नियंत्रण था।

अब तक के लोकसभा चुनावों में एक तरह से अजेय रही कांग्रेस को पहली बार 1967 के आमचुनावों में चुनौती मिली। कांग्रेस लोकसभा की 520 सीटों में से केवल 283 पर जीत सकी। यह एक तरह से उसका अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं रहीं लेकिन कांग्रेस अब अंर्तकलह से जूझने लगी। जो 1969 में कांग्रेस की टूट के रूप में सामने आया। मुख्य कांग्रेस की अगुवाई कामराज और मोरारजी देसाई कर रहे थे जबकि इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी गठित की। यहां यह दीगर है कि पार्टी के अधिकतर सांसदों का समर्थन इंदिरा गांधी को हासिल था।

पार्टी में टूट के साथ चुनाव चिन्ह पर कब्जे का दौर शुरू हुआ। कांग्रेस ओ यानी ओरिजिनल कांग्रेस और कांग्रेस (आर) दोनों ही बैलों की जोड़ी निशान पर अपना-अपना दावा जता रहे थे। खैर, यह मामला पहुंचा चुनाव आयोग।

चुनाव आयोग ने बैलों की जोड़ी का सिंबल कांग्रेस (ओ) को दिया। इंदिरा गांधी वाले कांग्रेस को गाय-बछड़ा आवंटित किया गया। इन्हीं परिस्थितियों में 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया। कांग्रेस (आर) को 44 फीसदी वोट मिले, पार्टी 352 सीटें जीत सकी जबकि कांग्रेस के दूसरे गुट को महज 10 फीसदी वोटों से संतोष करना पड़ा। चुनाव में जीत के साथ इंदिरा गांधी की कांग्रेस ने असली कांग्रेस का रूतबा हासिल कर लिया।

1971 से 1977 तक के दरम्यान हुए चुनावों में कांग्रेस ने इसी चुनाव चिन्ह पर ताल ठोंका। लेकिन हालात कुछ ऐसे पैदा हुए कि कांग्रेस एक बार टूटने की कगार पर पहुंच गई। 1977 के चुनावों में इंदिरा गांधी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। दिग्गज नेता ब्रह्मानंद रेड्डी और देवराज अर्स समेत बहुत से अन्य कांग्रेसी यह चाहते थे कि इंदिरा गांधी को किनारे कर दिया जाए। इन सबके बीच जनवरी 1978 में इंदिरा गांधी ने एक बार फिर कांग्रेस को तोड़ दिया। उन्होंने इस बार कांग्रेस (आई) का गठन किया। इंदिरा गांधी ने इसे ही असली कांग्रेस बताया। इस घटना का असर राष्ट्रीय से लेकर राज्य स्तर तक पर पड़ा। हर जगह कांग्रेस दो हिस्सों में विभाजित हो गई। इंदिरा गांधी ने नए चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया। इसके पीछे एक मकसद यह भी था कि गाय-बछड़ा चुनाव चिन्ह अब नकारात्मक साबित होने लगा था। लोग गाय को इंदिरा और बछड़े को संजय गांधी से जोड़कर देखने लगे थे एवं तंज कस रहे थे। विपक्ष भी इस चुनाव चिन्ह के जरिए मां-बेटे पर लगातार राजनीतिक हमला कर रहा था।

कांग्रेस के वर्तमान चुनाव चिन्ह हाथ के पंजे के पीछे दिलचस्प कहानी है। इसे लेकर दो तरह की कहानियां राजनीतिक गलियारे में प्रचलित है। पहली इंदिरा तब पीवी नरसिंहराव के साथ आंध्र प्रदेश के दौरे पर गईं थीं। बूटा सिंह दिल्ली में नए चुनाव चिन्ह के बारे में बातचीत करने चुनाव आयोग के आफिस पहुंचे। चुनाव आयोग ने उन्हें तीन विकल्प सुझाया। पहला हाथी, दूसरा साइकल और तीसरा हाथ का पंजा।

बूटा सिंह बहुत पेशोपेश में थे कि क्या करें। उन्होंने चुनाव आयोग से 24 घंटे का समय मांगा और इंदिरा गांधी को फोन किया। आखिरकर इंदिरा गांधी की सहमति से हाथ का पंजा कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बन गया। कांग्रेस को इस तरह 1952 के आमचुनावों के बाद तीसरी बार नया चुनाव चिन्ह मिला।

हालांकि एक अन्य कहानी देवरहा बाबा से जुड़ी है। देवरहा बाबा के भक्तों में राजेंद्र प्रसाद, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, मुलायम सिंह यादव, इंदिरा गांधी सरीखे नाम जुड़े हुए हैं। कहते हैं कि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को चुनावों में करारी शिकस्त मिली। हार से परेशान वो 40 किलोमीटर चलकर देवरहा बाबा की शरण में पहुंची। कहते हैं कि बाबा ने अपना हाथ उठाकर पंजे से आर्शीवाद दिया। कहा यही पंजा तुम्हारा कल्याण करेगा और तब से कांग्रेस का चुनाव निशान पंजा है। 1980 में इसी चुनाव चिन्ह पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा और प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई।

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