सर्दी में कंबल नहीं मिला तो भैंस को ओढ़ाने वाली बोरी ओढ़ गुजारी रात

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Premanand ji maharaj:गंगा किनारे यात्रा करते हुए कई बार ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं, जो जीवन भर के लिए यादगार बन जाती हैं। गंगा किनारे ऐसी ही एक घटना का अनुभव किया प्रेमानंद महाराज ने, जब ठंडी सर्दी में कंबल की जगह भैंस की ओढ़ने वाली बोरी ने उनका साथ दिया। यह कहानी न केवल ग्रामीण जीवन के संघर्षों की झलक दिखाती है, बल्कि सादगी और सहजता से जीने का अनूठा संदेश भी देती है।

ठंडी रात का संघर्ष

गंगा किनारे प्रेमानंद महाराज की यात्रा का एक ऐसा पड़ाव आया, जब ठंडी सर्दियों की रात में उन्होंने एक गाँव में शरण ली। उस समय बारिश हो रही थी, और ठंड इतनी तेज थी कि उनका शरीर काँपने लगा। महाराज को महसूस होने लगा कि अगर जल्द ही गर्म जगह नहीं मिली, तो सुबह तक यह ठंडी रात काटना मुश्किल हो जाएगा।

गांव का आतिथ्य: भैंस और बोरी

गाँव में प्रवेश करते ही महाराज को अहसास हुआ कि ग्रामीणों से मदद लेना ही एकमात्र उपाय है। उन्होंने गाँव के बाहरी इलाके में एक परिवार से शरण की मांग की। उस परिवार के सदस्य ने महाराज की दशा को समझते हुए कहा, “कंबल तो हम नहीं दे सकते, कंबल देकर लोग भाग जाते हैं। लेकिन भैंस के साथ सो सकते हो और हम आपको भैंस को ओढ़ाने वाली बोरी दे सकते हैं।”

यह सुनकर महाराज मुस्कुराए और परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए उस बोरी को ओढ़ने का निर्णय लिया। गाँव के लोगों की सरलता और वास्तविकता को देखते हुए महाराज ने उसे स्वीकार किया।

बोरी में बिताई रात

रात गहरी होती जा रही थी, और ठंड भी बढ़ रही थी। महाराज ने वह बोरी ओढ़ी और भैंस के पास सो गए। जैसे ही उन्होंने बोरी ओढ़ी, शरीर में गर्माहट महसूस होने लगी। ग्रामीण सादगी और जीवन जीने की कला ने महाराज को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने अनुभव किया कि भले ही साधन सीमित थे, परंतु ग्रामीणों की समझदारी और आत्मीयता ने उन्हें जीवन का एक नया दृष्टिकोण दिया।

सुबह की नई शुरुआत

रात चार बजे, महाराज ने गाँव छोड़ने का निश्चय किया। उन्होंने बोरी वहीं रख दी और गाँव वालों को धन्यवाद दिया। यह घटना उनके जीवन की सबसे अविस्मरणीय रातों में से एक बन गई। गंगा यात्रा के दौरान महाराज ने कई आश्रमों में रात बिताई थी, लेकिन यह रात कुछ अलग ही थी, जहाँ कंबल की जगह बोरी और भैंस ने उनका साथ दिया।

यात्रा का संदेश

प्रेमानंद महाराज की यह कहानी सिर्फ एक ठंडी रात की नहीं है, बल्कि यह सिखाती है कि जीवन में सादगी और सहजता से कैसे जीया जा सकता है। ग्रामीण जीवन की कठिनाइयाँ और उनकी समाधान ढूंढने की क्षमताएँ हमें सिखाती हैं कि संसाधनों की कमी होते हुए भी, आत्मनिर्भरता और एक-दूसरे की मदद से हम कठिन से कठिन समय को भी पार कर सकते हैं।

गंगा यात्रा का यह अनुभव बताता है कि कभी-कभी जिन चीज़ों को हम छोटे या साधारण मानते हैं, वे ही जीवन के बड़े सबक सिखाती हैं। प्रेमानंद महाराज की इस यात्रा का यह किस्सा सादगी, सरलता और ग्रामीण आतिथ्य की एक मिसाल है।

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