श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रम्: भगवान गणपति की महिमा
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
Siddhi vinayak Stotram: श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रम् भगवान गणपति की दिव्य स्तुति है, जो भक्तों के समस्त विघ्नों को हरने और उन्हें सिद्धि प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध है। यह स्तोत्र मुद्गलपुराण से लिया गया है और इसमें गणेशजी के विभिन्न स्वरूपों, गुणों और कृपाओं का वर्णन किया गया है।
गणेशजी को विघ्नहर्ता, सिद्धिदाता और मंगलकारी देवता माना जाता है, जिनकी आराधना से जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से न केवल मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाने वाला भी माना जाता है।
1
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय
श्रीशङ्करात्मज सुराधिपवन्द्यपाद।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमङ्गलात्मन्
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥1॥
अर्थ
हे विघ्नेश ! हे सिद्धिविनायक! आपका नाम विघ्न-समूहका खण्डन करनेवाला है। आप भगवान् शंकरके सुपुत्र हैं। देवराज इन्द्र आपके चरणोंकी वन्दना करते हैं। आप श्रीपार्वतीजीके महान् व्रतके उत्तम फल एवं निखिल मंगलरूप हैं। आप मेरे विघ्नका निवारण करें ॥ 1 ॥
2
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्तिः
श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुङ्कुमश्रीः।
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ 2॥
अर्थ
हे सिद्धिविनायक ! आपके श्रीविग्रहकी कान्ति उत्तम पद्मरागमणिके समान अरुण वर्णकी है। श्रीसिद्धि और बुद्धि देवियोंने अनुलेपन करके आपके श्रीअंगोंमें कुंकूमकी शोभाका विस्तार किया है। आपके दाहिने स्तनपर वलयाकार मुड़ा हुआ शुण्ड-दण्ड अत्यन्त मनोहर जान पड़ता है। आप मेरे विघ्न हर लीजिये ॥ 2 ॥
3
पाशाङ्कुशाब्जपरशूश्च दधच्चतुर्भि-
र्दोभिश्च शोणकुसुमस्त्रगुमाङ्गजातः।
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ 3॥
अर्थ
हे सिद्धिविनायक! आप अपने चार हाथोंमें क्रमशः पाश, अंकुश, कमल और परशु धारण करते हैं, लाल फूलोंकी मालासे अलंकृत हैं और उमाके अङ्गसे उत्पन्न हुए हैं तथा आपके सिन्दूरशोभित ललाटमें चन्द्रमाका प्रकाश फैल रहा है; आप मेरे विघ्नोंका अपहरण कीजिये ॥ 3 ॥
4
कार्येषु विघ्नचयभीतविरञ्चिमुख्यैः
सम्पूजितः सुरवरैरपि मोदकाद्यैः।
सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥4॥
अर्थ
हे सिद्धिविनायक! सभी कार्योंमें विघ्नसमूहके आ पड़नेकी आशंकासे भयभीत हुए ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओंने भी आपकी मोदक आदि मिष्टान्नोंसे भलीभाँति पूजा की है। आप समस्त देवताओंमें सबसे पहले ही पूजनीय हैं। आप मेरे विघ्न-समूहका निवारण कीजिये ॥ 4॥
5
शीघ्राञ्चनस्खलनतुङ्गरवोर्ध्वकण्ठ-
स्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसङ्घः
शूर्पश्रुतिश्च पृथुवर्तुलतुङ्गतुन्दो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ 5॥
अर्थ
हे सिद्धिविनायक ! आप जल्दी-जल्दी चलने, लड़खड़ाने, उच्चस्वरसे शब्द करने, ऊर्ध्वकण्ठ होने, स्थूल इन्दु धारण करने तथा रुद्रगणको साथ रखनेके कारण समस्त देवसमुदायको हँसाते रहते हैं। आपके कान सूपके समान जान पड़ते हैं; आप मोटा, गोलाकार और ऊँचा तुन्द (तोंद) धारण करते हैं; आप मेरे विघ्नोंका अपहरण कीजिये ॥ 5 ॥
6
यज्ञोपवीतपदलम्भितनागराजो
मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराजः
भक्ताभयप्रद दयालय विघ्नराज
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ६॥
अर्थ
आपने नागराजको यज्ञोपवीतका स्थान दे रखा है; आप मासादि तिथि प्रतिपदामें भी पुण्यदाता चन्द्रमाका प्रत्यक्ष दर्शन करते हैं। भक्तोंको अभय देनेवाले हे दयाधाम हे विघ्नराज! हे सिद्धिविनायक ! आप मेरे विघ्नोंको हर लीजिये ॥ 6 ॥
7
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीटः
कौसुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्रीः।
सर्वत्र मङ्गलकरस्मरणप्रतापो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ७॥
अर्थ
आपका सुन्दर किरीट उत्तम रत्नोंके सारभागोंकी श्रेणियोंसे उद्दीप्त होता है। आप कुसुम्भी रंगके दो मनोहर वस्त्र धारण करते हैं; आपकी शोभा या कान्ति बहुत बढ़ी-चढ़ी है और सर्वत्र आपके स्मरणका प्रताप सबका मंगल करनेवाला है। हे सिद्धिविनायक! आप मेरे विघ्न हर लें ॥ 7 ॥
8
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता
विज्ञानबोधनवरेण तमोऽपहर्ता।
आनन्दितत्रिभुवनेश कुमारबन्धो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ 8॥
॥ इति श्रीमुद्गलपुराणे विघ्ननिवारकं श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
अर्थ
हे सिद्धिविनायक ! आप देवान्तक आदि असुरोंसे डरे हुए देवताओंकी पीड़ा दूर करनेवाले तथा विज्ञानबोधके वरदानसे सबके अज्ञानान्धकारको हर लेनेवाले हैं। त्रिभुवनपति इन्द्रको आनन्दित करनेवाले हे कुमारबन्धो! आप मेरे विघ्नोंका निवारण कीजिये ॥ 8 ॥
॥ इस प्रकार श्रीमुद्गलपुराणमें विघ्ननिवारक श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।