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जलियांवाला बाग त्रासदी ने गुरमुख सिंह जी को अंदर तक हिलाकर रख दिया

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Gyani Gurmukh Singh Musafir Biography: ज्ञानी गुरमुख सिंह ‘मुसाफिर’ एक महान देशभक्त, अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी और अनुभवी सांसद थे। उन्होंने, विशेषकर आजादी के बाद विकास के आदर्श के रूप में पंजाब के निर्माण में सक्रिय भूमिका अदा की। सृजनात्मक शक्ति के चिरस्थायी प्रतीक के रूप में उनका नाम पंजाब के इतिहास में हमेशा के लिए अंकित है।

उन्होंने अपनी काव्य रचना से लोगों के कल्याणार्थ एक नई राजनीतिक दिशा प्रदान की तथा उनमें सामाजिक चेतना की जागृति का एक नया आयाम दिया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

गुरमुख सिंह का जन्म कैम्पबेलपुर जिले के अढवाल गांव में एक ग्रामीण कृषक परिवार में 15 जनवरी, 1899 को हुआ था। ग्रामीण जिला बोर्ड स्कूल में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने जूनियर भाषा शिक्षक के रूप में प्रशिक्षण लिया और 19 वर्ष की आयु में वह नौकरी में आ गए।

अपनी शैक्षिक योग्यता को बेहतर बनाने के लिए गुरमुख सिंह ने शिक्षण कार्य के साथ-साथ ज्ञानी (पंजाबी में ऑनर्स) की परीक्षा पास की जिससे वह ‘ज्ञानी’ कहलाए जाने लगे।

साहित्य में मिला मुसाफिर नाम

स्वभाव से ही एक कवि और लेखक के रूप में ज्ञानी गुरमुख सिंह ने जब अपनी कविताएं संजीदगी से लिखनी शुरू कीं तो उन्हें ‘मुसाफिर’ उपनाम से जाना गया।

यह उपनाम उनके काव्यात्मक और संवेदनशील व्यक्तित्व को दर्शाता है।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव

1919 की जलियाँवाला बाग की त्रासदी ने गुरमुख सिंह को अंदर तक झकझोर दिया और उनके युवा मन पर एक गहरा दाग छोड़ा।

वर्ष 1922 में फिर इसी तरह की दुःखांत घटना जब गुरू नानक की पवित्र जन्म स्थली ननकाना साहिब में घटी जहां ब्रिटिश सरकार के षड्यंत्र से 200 से भी अधिक सिखों का नरसंहार हुआ, तो ज्ञानी जी अपने पेशे को त्यागकर गुरुद्वारा प्रशासन में सुधार लाने के उद्देश्य से 1920 के दशक में अकाली आंदोलन में शामिल हो गए।

ब्रितानिया हुकूमत ने किया गिरफ्तार

पंजाब का अकाली आंदोलन वहां की राजनीतिक चेतना का स्त्रोत था और इसका कार्य आजादी के लिए उस समय चल रहे राष्ट्रीय संघर्ष के समानान्तर था। इस आन्दोलन के जरिए पंजाब के कई जाने-माने राजनेता इस ओर आकर्षित हुए।

शीघ्र ही ‘मुसाफिर’ को गिरफ्तार किया गया और यहीं से उनकी ‘जेलयात्रा’ का एक लम्बा सिलसिला शुरू हो गया जिससे उन्हें और उनके परिवार को कठोर यातनाएं झेलनी पड़ी थीं। वर्ष 1947 में देश के आजाद होने तक उन्हें तकरीबन सभी राष्ट्रीय संघर्षों में जेल जाना पड़ा था।

शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक समिति के सदस्य

उनके दृढ़ विश्वास, त्याग की भावना और उद्देश्य के प्रति संजीदगी ने उन्हें अकाली आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया और उन्हें सिख धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पद ‘अकालतख्त के जत्थेदार’ के रूप में नियुक्त किया गया।

वह कतिपय ऐतिहासिक निर्णय लेने वाले तथा उस दौर में सिख धर्म से जुड़े कई नाजुक पहलुओं को सुलझाने वाले एक महान दिव्यदर्शी जत्थेदार के रूप में याद किए जाते हैं। वह लगभग 20 वर्षों तक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के सदस्य रहे और उसके बाद वर्ष 1936-37 के दौरान इसके महासचिव बने।

भारत छोड़ों आंदोलन में गए जेल

पत्रकार और एक प्रतिभाशाली व रोचक कवि के रूप में अपने जीवन की शुरुआत करते हुए मुसाफिर जी 1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।

उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और सविनय अवज्ञा आंदोलन, सत्याग्रह व भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वह कई बार जेल गए।

बेटे-बेटी के देहांत के समय भी नहीं आए जेल से बाहर

त्याग की सर्वोच्च भावना से लबरेज दृढ़ निश्चयी ज्ञानी गुरमुख सिंह ने 1942 में जेल से उस समय भी पैरोल पर रिहा होने से इनकार कर दिया जब उनके एक पांच वर्षीय पुत्र, छोटी बेटी और पिता का देहान्त हो गया।

वर्ष 1930 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का सदस्य रहते हुए वह कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य रहे और वर्ष 1952 से 1966 तक कार्यकारिणी समिति और संसद में कांग्रेस पार्टी कार्यकारी समिति के भी सदस्य रहे।

महात्मा गांधी भी लेते थे गुरमुख सिंह से सलाह

वह कई वर्षों तक पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहे। महात्मा गांधी का विश्वासपात्र होने के नाते उन्हें परामर्श के लिए, विशेषकर पंजाब के मामले में सलाह मशविरे के लिए राष्ट्रपिता द्वारा आमंत्रित किया गया था।

वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के भी संपर्क में आर और कालान्तर में उनके आपसी स्नेह व प्रशंसा से उनके बीच मित्रता मजबूत होती गई।

राजनीतिक जीवन

संविधान सभा और संसद में भूमिका

जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो ज्ञानी जी को संविधान सभा के सदस्य के रूप में कार्य करने के लिए आमंत्रित किया गया। वह इसकी संचालन समिति के भी सदस्य रहे।

वह 1950-52 तक अस्थायी संसद के सदस्य थे: 1952-1966 तक लोक सभा के तीन बार सदस्य रहे थे: 1966 से 1968 तक पंजाब विधान परिषद के सदस्य रहे, 1976 में उनका निधन हो गया। 1968 से 1976 में अपनी मृत्यु तक वह राज्य सभा के सदस्य रहे थे।

पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल

1966 मे 1967 तक वह पंजाब के मुख्य मंत्री भी रहे। मृदुभाषी, मिलनसार और अपनी गर्मजोशी, खुशमिजाज भावना से उनमें श्रोताओं को अपनी और आकर्षित करने की अदभुत क्षमता थी।

वह सभा की कार्यवाही में सक्रिय रूप में भाग लेते थे और उनके भाषण जो उर्दू और पंजाबी कविताओं से अलंकृत होते थे, जोश से भरे और उनके आदर्शों के प्रति समर्पित होते थे। 

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व

वह केन्द्र में कई बोडौं, ट्रस्टों, समितियों आदि के सदस्य थे। वह पंजाब में कई प्रमुख सोसाइटियों और संस्थानों के भी अध्यक्ष और चेयरमैन भी रहे। मुसाफिर जी ने विदेशों में आयोजित कई अन्तर्राष्ट्रीय लेखक सम्मेलनों और शान्ति सम्मेलनों में; यथा 1954 में स्टॉकहोम में और 1961 में टोकियो में आयोजित वर्ल्ड राइटरी कॉन्फ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

1965 में हेलसिंकी में और 1969 में बर्लिन में आयोजित विश्वशांति सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल की सूची में उनका भी नाम था।

उन्होंने बाकू में और फिर 1965 में यूएसएसआर में आयोजित एफ्रो-एशियन कॉन्फ्रेंस ऑन वियतनाम एण्ड पीस में भारतीय लेखकों के तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था। इस अवसर पर आयोजित राजनीतिक विचार गोष्ठी में ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर ने नवउपनिवेशवाद की घोर भर्त्सना करते हुए एक कविता पढ़ी थी जिससे विश्व स्तर पर उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई थी।

सत्ता के पीछे नहीं भागे

स्वभाव से कवि, ज्ञानी जी एक सौम्य, विनीत और निष्कपट व्यक्ति थे जो कभी भी सत्ता के पीछे नहीं भागे तथा उन्होंने अपने जीवन में राजनीतिक पहचान को हमेशा तुच्छ माना। राजनीति में उन्हें कई वरिष्ठ पदों की पेशकश की गई लेकिन उन्होंने कोई भी पद पाने के लिए कभी कोई दावपेंच नहीं खेला।

आरंभ में पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के प्रति अपनी अनिच्छा जाहिर करने के बाद मुसाफिर जी ने इस पद को इसलिए स्वीकार किया क्योंकि उन्हें लगा कि इस पद के लिए उनकी जरूरत है।

उनके सुन्दर, गरिमामय तथा संतुलित व्यक्तित्व ने उन्हें सहज ही एक नेता का रूप प्रदान किया था। पंजाब राज्य का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद ज्ञानी गुरमुख सिंह ने अपने सार्वजनिक जीवन का एक बेदाग, स्वच्छ रिकार्ड स्थापित करके इस पद को महिमामय बनाया।

कई वर्षों तक पंजाब प्रदेश कांग्रेस पार्टी का निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाते रहने से ‘मुसाफिर’ पंजाब राज्य के राजनैतिक क्षितिज पर छा गये और उन्होंने राज्य को एक सशक्त नेतृत्व तथा स्थिर सरकार प्रदान की।

साहित्यिक योगदान

ज्ञानी गुरमुख सिंह ‘मुसाफिर’ ने एक बहुत ही प्रतिष्ठित सार्वजनिक हस्ती के रूप में अपनी पहचान बनाई। साथ ही उनके अंदर का कवि और लेखक जीवनपर्यन्त सक्रिय रहा।

पंजाब राज्य की साहित्यिक तथा सांस्कृतिक नवचेतना में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए उन्होंने पंजाबी कविता को पुनः प्रतिष्ठित करने में बहुत बड़ा योगदान दिया और वह इसे यथार्थ के करीब लाए तथा इसके प्रति लोगों को प्रोत्साहित किया।

हालांकि बाद में एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें लघु कथा लेखन में अधिक आनंद आने लगा। वस्तुतः लघु कथा के रूप में उन्हें अपनी कवित्व प्रतिभा को संपूर्णता प्राप्त होती प्रतीत हुई। उनकी लघु कथाएं उतनी ही सूक्ष्म, सुरचित और लयात्मक है जितनी कि उनकी कविताएं।

ज्ञानी गुरमुख सिंह ने आरंभ में वार्षिक उत्सवों एवं पर्षों के दौरान गुरुद्वारों में गाए जाने के लिए सिख गुरुओं की प्रशंसा में कविताएं लिखीं। धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण वाले ज्ञानी जी का एक ईश्वर में विश्वास था।

स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के साथ ही उन्होंने देशभक्ति से ओत-प्रोत कविता लिखना आरंभ किया। बाद में उनके कविता संग्रह में आध्यात्मिक अनुभव का भी समन्वय हुआ।

दूसरी ओर समय के साथ तारतम्य बनाते हुए उन्होंने अत्याधुनिक विषयों पर भी कविताएं लिखीं।

20 से अधिक पुस्तकें लिखीं

गुरमुख सिंह ‘मुसाफिर’ ने कविता, लघुकथा तथा सामान्य विषयों से संबंधित 20 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं तथा उन्होंने एक आत्मकथा भी लिखी है।

उन्होंने नौ कविता संग्रह यथा सबर दे बन, प्रेम बन, जीवन पंथ, मुसाफिरियां, टूटे खंब, काव्य-सुनेहे, सहज सेती, वखरा वखरा कतरा कतरा और दूर नेडे तथा उतनी ही संख्या में लघु कथा संग्रह यथा वखरी दुनिया, अहल्ने दे बोट, कंधा बोल पैयां, सत्ताई जनवरी, अल्लाह वाले, गुटर, सब अच्छा, सस्ता तमाशा और उर्वर पार हैं।

महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू पर संस्मरण भी लिखे

उन्होंने चार जीवनी साहित्य भी लिखे जिसमें दो खण्डों में लिखित महात्मा गांधी तथा जवाहरलाल नेहरू से संबंधित संस्मरण यथा वेख्या सुनया गांधी (गांधी ऐज आई नो हिम) तथा वेख्या सुनया नेहरू (नेहरू ऐज आई नो हिम) तथा वागी जरनैल- द हिस्ट्री ऑफ आजाद हिन्द आर्मी और विहिन साडी दे शहीद-मार्टायर्स ऑफ ट्वेन्टियथ सेन्चुरी नामक भारत के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रंथ भी शामिल हैं।

ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गए अपने कारावास के दौरान उन्होंने गांधी गीता तथा आनन्द मार्ग नामक दो महत्वपूर्ण पुस्तकों का पंजाबी भाषा में अनुवाद भी किया। उन्होंने कई स्थानों का भ्रमण किया था जिनका समावेश उनकी आत्मकथा में मिलता है।

जन नेता थे मुसाफिर

ज्ञानी गुरमुख सिंह ‘मुसाफिर’ जन नेता थे। गरीबों और असहाय लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति थी और उनका विश्वास था कि देशवासियों की दुर्दशा का कारण संसाधनों का असमान वितरण है। उन्होंने अमीरों द्वारा गरीबों के शोषण की निंदा की।

ज्ञानी गुरमुख सिंह एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने देश के विभाजन के बाद पश्चिम पंजाब तथा उत्तर- पश्चिम सीमान्त प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) से विस्थापित हुए लोगों के पुनर्वास के लिए स्मरणीय भूमिका निभाई।

पद्म विभूषण से विभूषित

कवि तथा लघु कथाकार के अतिरिक्त एक बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्ति ज्ञानी गुरमुख सिंह ‘मुसाफिर’ कई वर्षों तक ‘अकालो पत्रिका’ के मुख्य संपादक रहे।

वह कोर्ट ऑफ द यूनिवर्सिटी ऑफ डेल्ही के सदस्य थे। वह केन्द्रीय पंजाबी लेखक सभा के भी अध्यक्ष थे।

1976 में मरणोपरांत उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार पद्म विभूषण से तथा ‘उर्वर पार’ लघु कथा संग्रह के लिए 1978 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इसके अतिरिक्त 1955 में उन्हें तत्कालीन पी ई पी एस यू (पटियाला एण्ड ईस्ट पंजाब स्टेट्स यूनियन) सरकार द्वारा ‘पंजाबी-पोएट ऑफ द ईयर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

निधन

ज्ञानी गुरमुख सिंह ‘मुसाफिर’ का दिल का दौरा पड़ने से 1976 में निधन हो गया। ‘मुसाफिर’ को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मती इंदिरा गांधी ने कहा थाः

.वह एक आदर्शवादी, दृढ़निश्चयी तथा सरल व्यक्ति थे जिन्होंने 60 वर्षों तक समर्पित भाव से पंजाब तथा देश की सेवा की

मुम्बई में 1985 में कांग्रेस के शताब्दी सत्र में बोलते हुए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष  राजीव गांधी ने मुसाफिर’ के बारे में कहा थाः

.. विश्व ने ज्ञानी गुरमुख सिंह ‘मुसाफिर’ जैसा विरला ही देशभक्त देखा होगा जो स्वतंत्रता के प्रति निःस्वार्थ रूप से समर्पित उदात्त विचार वाले, कर्मठ और सच्ची आत्मा के थे

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