यह मस्जिद मुबारकपुर (Mubarakpur) के बीच स्थित है। खुलासत-उल-तारीख में मोठ की मस्जिद (Moth ki masjid) के बारे में एक दिलचस्प कहानी बताई गई है। मोठ की मस्जिद या मस्जिद मोठ जिसका वस्तुतः अर्थ “दाल मस्जिद” है। इसे 1505 में वजीर मियां भोइया ने बनवाया था, जो सुल्तान सिकंदर लोदी के शासनकाल में प्रधान मंत्री थे। कहते हैं एक बार सिंकदर लोदी को एक दाल का दाना मिला। उन्होंने यह दाना अपने बुद्धिमान मंत्री मियां भोइया को दे दिया। मिनिस्टर ने सोचा कि यह उसके लिए सौभाग्य की बात है कि राजा ने अपने हाथ से उसे दालका दाना दिया है।

इसकी हिफाजत वह इस तरह करेगा कि राजा की प्रसिद्धि बढ़े। लिहाजा, उसने अपने आवास से सटे बगीचे में दाल बो दिया। यह दाना बड़ा होकर पौध बना एवं फिर उन दानों को भी जमीन में बो दिया। मंत्री यह प्रकि्रया तब तक करता रहा जब तक की कृषि के लिए पर्याप्त बीज ना मिल जाए। बाद में उसने पूरे खेत में यह बीज बोए एवं इनको बेचने से प्राप्त पैसों से मस्जिद का निर्माण कराया। बाद में उसने सुल्तान को पूरी कहानी सुनाई एवं मस्जिद में प्रार्थना के लिए बुलाया। जिसकेबाद यह मोठ की मस्जिद नाम से ही प्रसिद्ध हो गई। लाल पत्थरों से बनी इस मस्जिद में जालीदार नक्काशी वाली खिड़कियां, अष्टकोणीय स्मारक, एक छोटा अर्धवृत्ताकार गुंबद, खुले मेहराब एवं दो मंजिला बुर्ज हैं। फूलों की अद्भुत एवं जटिल नक्काशियां सुंदर हैं। दिल्ली के अधिकतर ऐतिहासिक इस्लामिक इमारतें लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित हैं। अन्य पारंपरिक मस्जिदों की तरह इसमें कोई भी मीनारें, सजावटी सुलेखन या अलंकरण नहीं हैं।

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