दरियागंज नई सड़क (daryaganj nai sarak) पर एक किताब की दुकान है। नाम है देहाती पुस्तक भंडार (Dehati pustak bhandar)। करीब 9 दशक पहले स्व. धूमिमल अग्रवाल द्वारा स्थापित दुकान के संचालन की जिम्मेदारी इस वक्त तीसरी पीढ़ी के कंधों पर है। समय के हिसाब से दुकान का स्वरूप जरूर बदल गया है, लेकिन अनूठी किताबों की उपलब्धता और हिंदी पाठकों की खुराक पूरी करने का मादा आज भी रखता है। जो किताब दिल्ली-एनसीआर (DELHI NCR) में कहीं न मिल रही हो वह भी आपको यहां मिल जाएगी। दुकान में प्रवेश से पूर्व ही बाबू देवकी नंदन खत्री की कुसुम कुमारी, भगवतीचरण वर्मा की चित्रलेखा से लेकर अनुराधा बेनीवाल की आजादी मेरा ब्रांड और प्रतीक शुक्ला की स्टिल वेटिंग जैसी नई-पुरानी सैकड़ों किताबें शीशों से झांकती मिल जाएंगी।

वर्ष 1935 में हुई थी दुकान की स्थापना

देहाती पुस्तक भंडार की स्थापना वर्ष 1935 में धूमिमल अग्रवाल ने की थी। कासन गांव (मानेसर, हरियाणा) के मूल निवासी धूमिमल अग्रवाल युवावस्था से ही स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दे रहे थे। चूूंकि साहित्य में रुचि थी तो साहित्य लेखन के साथ-साथ पुस्तक दुकान और प्रकाशन के पेशे से जुड़ गए। पिता की यादें साझा करते हुए विजय गुप्ता बताते हैं कि वो पंडित जवाहरलाल नेहरू से बहुत प्रभावित थे। आंदोलनों में हिस्सा लेते थे। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ चोरी-छिपे परचियां भी छापते थे। हिंदी के साथ-साथ उर्दू और अंग्रेजी पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी। एक कारण यह भी था कि उस दौर में जब गिने-चुने प्रकाशन संस्थान थे और एक भाषा की ही सीमित किताबें छपती थी, हमारे यहां अलग-अलग भाषा की किताबें ग्राहकों को मिल जाती थी। आज भी हर बड़े से छोटे प्रकाशनों से प्रकाशित चर्चित किताबें हमारे यहां उपलब्ध है।

रोचक है दुकान के नाम के पीछे की कहानी

दुकान का नाम देहाती पुस्तक भंडार रखने के पीछे की कहानी भी बहुत रोचक है। धूमिमल अग्रवाल के पौत्र वंश गुप्ता के मुताबिक दिल्ली आने के बाद भी दादा जी का गांव से जुड़ाव बना रहा। ग्रामीण साहित्य में भी उनकी काफी रुचि थी। प्रकाशन के शुरुआती दिनों में धार्मिक किताबों के साथ-साथ किस्सा, कहानी, लोकोक्ति, मुहावरा, नाटक, नौटंकी और ग्रामीण साहित्य का प्रकाशन प्रमुखता से करते थे। यही कारण था कि उन्होंने दुकान का नाम ही देहाती पुस्तक भंडार रख दिया। वहीं, वर्तमान में धार्मिक, चिकित्सा, साहित्य, ज्योतिषाचार्य, समेत विविध क्षेत्रों की पुस्तकें मौजूद हैं।

हस्तलिखित किताब है आकर्षण का केंद्र

वर्ष 1936 से देहाती पुस्तक भंडार प्रकाशन से भी जुड़ा है। हजारों किताबें प्रकाशित कर चुकी है लेकिन पांच दशक पूर्व प्रकाशित ‘प्राचीन हस्तलिखित वृहद मन्त्र महावर्णवम’ यहां पहुंचने वाले पुस्तक प्रेमियों के लिए किसी आकर्षण से कम नहीं है। आचार्य पंडित राजेश दीक्षित द्वारा हस्तलिखित मंत्र साधना और विवि विधानों को किताब की शक्ल में प्रकाशित यह किताब ऐसी है जो दुर्लभ और बेशकीमती है। लेखन और प्रकाशन के बदलते दौर पर चार दशकों से भी ज्यादा समय से दुकान से जुड़े विजय गुप्ता कहते हैं कि किताबों का अस्तित्व खत्म नहीं हो सकता। जिन्हें पुस्तकों में दिलचस्पी है वो किताब पढ़े बिना संतुष्ट नहीं होते भले ही किताब में लिखी बात अन्य मीडिया के माध्यम से वे जान चुके हों।

जब पीएम नेहरू खरीदने आए ‘बापू जंत्री’

40 से 60 के दौर तक देहाती पुस्तक भंडार ने कई स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी प्रकाशित की। कुछ लोगों की जीवनी तो छपते ही हाथों-हाथ बिक जाती थी। उसी क्रम में साल 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma gandhi) की हत्या के बाद ‘बापू जंत्री’ प्रकाशित हुई थी। उस एक किताब के लिए सुबह से ही लोग दुकान के बाहर खड़े मिलते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और बाद के दिनों में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal bahadur shastri) और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira gandhi) समेत कई दिग्गज राजनेता उस किताब के लिए दुकान तक आए।

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