CAA Law

CAA Law पर तुष्टिकरण की राजनीति से प्रेरित है विपक्ष का विरोध

लेखक: अरविंद जयतिलक, वरिष्ठ पत्रकार

(CAA Law) केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (CAA Law) लागू करने से जुडे़ नियम अधिसूचित किए जाने के बाद जिस तरह विपक्षी दलों द्वारा अनावश्यक बखेड़ा खड़ा किया जा रहा है, वह कुलमिलाकर उनकी संकीर्ण और तुष्टिपरक राजनीति को ही उद्घाटित करता है।

(CAA Law) बेशक विपक्षी दलों को अधिकार है कि वह सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना करें और जरुरत पड़े तो संसद से लेकर सड़क तक विरोध जताएं। लेकिन जब मसला राष्ट्रहित और मानवीय संवेदना से जुड़ा हो तो विपक्षी दलों को भी धैर्य और आत्मसंयम का परिचय देना चाहिए। संकीर्ण राजनीति की भावनाएं राष्ट्र के भविष्य से बढ़कर नहीं हो सकती।

(CAA Law) क्या यह सच नहीं है कि पड़ोसी देशों मसलन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक यानी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग राज्यपोषित अत्याचार से पीड़ित हैं? क्या यह सच नहीं है कि वे अपनी जान बचाने के लिए ही भारत में शरण लिए हुए हैं? अगर इन परिस्थितियों में भारत सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक के जरिए उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान करती है तो इसमें अनुचित क्या है?

(CAA Law) यह सही है कि भारत को शरणार्थियों का धर्मशाला नहीं बनने देना चाहिए और न ही दुनिया में संदेश जाना चाहिए कि भारत धर्म के आधार पर नागरिकता देने का फैसला करता है। लेकिन इसका तात्पर्य यह भी नहीं कि भारत अपने पड़ोसी देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों से मुंह फेर ले। पड़ोसी देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक सात दशक पहले भारत का हिस्सा थे। (CAA Law) आज अगर पड़ोसी देश उन पर कहर बरपा रहा है और वे जान बचाकर भारत आ रहे हैं तो उन्हें अपनाना भारत का धर्म है। लेकिन देखा जा रहा है कि कुछ राजनीतिक दल अनावश्यक विरोध कर इस मसले को मजहबी रंग देने पर आमादा हैं। लेकिन उचित होगा कि विपक्षी दल इस मसले को मजहबी विमर्श के दायरे में बांधने के बजाए मानवीय विस्तार दें।

यह सच्चाई है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान सभी मुस्लिम राष्ट्र हैं। यहां सिर्फ मुसलमानों के ही हित सुरक्षित हैं। जेहाद के जरिए अल्पसंख्यकों का धर्मांतरण कराया जाता है।

(CAA Law) यह सच्चाई है कि इन देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकार और जीवन रंचमात्र भी सुरक्षित नहीं हैं। अगर जो कोई इनकी रक्षा के लिए आवाज बुलंद करता है, उसे मौत की नींद सुला दिया जाता है। स्वयं पाकिस्तान सीनेट की स्थायी समिति खुलासा कर चुकी है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति बद से बदतर है।

भारत विभाजन के समय पाकिस्तान में 15 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे जो आज उनकी संख्या घटकर दो फीसद से भी कम रह गयी है। कमोवेश यही स्थिति बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की भी है।

गत वर्ष पहले अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता रिचर्ड बेंकिन ने खुलासा किया था कि पड़ोसी देश बांग्लोदश में अल्पसंख्यकों की आबादी तेजी से घट रही है और अल्पसंख्यकों के उन्मूलन के लिए बांग्लादेश में सम्मिलित प्रयास किए जा रहे हैं।

क्या यह सच नहीं है कि बांग्लादेश के निर्माण के समय यहां अल्पसंख्यकों की आबादी एक तिहाई थी जो आज घटकर 15 वां हिस्सा भर रह गयी है? क्या भारत के विपक्षी दल बताएंगे कि ऐसी ही स्थिति यहां रहने वाले मुसलमानों की भी है? अगर नहीं तो फिर वे किस मुंह से मुसलमानों को भारतीय नागरिकता दिए जाने का आवाज बुलंद कर रहे हैं? विपक्षी दलों को ध्यान रखना होगा कि किसी भी देश के लिए उसके हित और मानवीय मूल्य दोनों महत्वपूर्ण होते हैं। इसे ध्यान में रखकर ही सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक को कानूनी जामा पहनाई।

सरकार का मकसद इस कानून (CAA Law) की मदद से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़न से भागकर भारत आए हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का रास्ता सुगम बनाना है।

उल्लेखनीय है कि भाजपा की नेतृत्ववाली राजग सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में लोकसभा में इस संशोधन विधेयक को पेश किया था और इसे पारित करा लिया था। लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों द्वारा विरोध के कारण सरकार इसे राज्यसभा में पेश नहीं की।

चूंकि लोकसभा भंग हो गया इस नाते यह विधेयक भी निष्प्रभावी हो गया। लेकिन बाद में सकरार इसे संसद से पारित कराने में सफल रही। गौर करें तो अब नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जा सकती है। (CAA Law)

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