गृह मंत्रालय के एक अति-उत्साही अधिकारी ने यह सर्क्युलर जारी कर दिया था कि 26 जनवरी, 1965 से हिन्दी केन्द्र सरकार की मुख्य आधिकारिक भाषा वन जाएगी, जबकि अंग्रेजी एक अतिरिक्त आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रहेगी। यह फार्मूला भारत के मामली से जुड़ी संसदीय समिति की देन था। उस दिन के गैजेट ऑफ इंडिया’ पर पहली बार हिन्दी में ‘भारत का राजपत्र’ लिखा हुआ दिखाई दिया।

केन्द्र सरकार के दफ्तरों में हिन्दी के अधिकाधिक प्रयोग से सम्बन्धित एक निर्देश में कहा गया था कि कुछ विशेष फाइलों पर हिन्दी में टिप्पणियों लिखी जाने लगेगी, लेकिन हिन्दी की अच्छी जानकारी न रखनेवालों के लिए इनका अंग्रेजी अनुवाद भी साथ में जोड़ा जाएगा। हिन्दी में प्राप्त पत्रों का जवाब हिन्दी में ही दिया जाएगा। आधिकारिक सयुत्तर और सूचनाएँ हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में जारी किए जाएंगे। यह एक तरह से राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के वर्चस्व को स्थापित करने का प्रयास था।

यह सूचना-पत्र नेहरू द्वारा गैर-हिन्दीवासियों को दिए गए आश्वासन के खिलाफ था और एक नया हंगामा खड़ा होने की आशंका थी, जो निरामूल नहीं थी। दक्षिणी प्रान्तों ने इस सर्क्युलर को केन्द्र सरकार के इस आश्वासन का उल्लंघन ठहराया कि गैर-हिन्दीभाषी राज्यों की सहमति के बिना अंग्रेजी की जगह हिन्दी को लागू नहीं किया जाएगा। नेहरू ने हिन्दीभाषियों को खुश करने के लिए एक बार कहा था, “अंग्रेजी को भारत में दूसरी भाषा का ही दर्जा मिल सकता है, क्योंकि भविष्य में आम शिक्षा का माध्यम हमारी अपनी भाषा होगी।

विडम्बना यह थी कि यह सर्क्युलर 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर जारी किया गया, जब नई दिल्ली में एक भव्य परेड के दौरान दक्षिण भारत के सर्वपल्ली राधाकृष्णन को देश के राष्ट्रपति के रूप में 31 तोपों की सलामी दी गई। दूसरी तरफ उनके गृह राज्य तमिलनाडु में हिन्दी को लेकर हंगामा मचा हुआ था और पुलिस को हिन्दी-विरोधी प्रदर्शकारियों पर आँसू गैस और लाठी चार्ज का इस्तेमाल करना पड़ रहा था। मद्रास में एक नवयुवक ने हिन्दी का विरोध करते हुए अपने आपको आग भी लगा ली। तब तक इस तरह का विरोध सिर्फ दक्षिण वियतनाम में देखने में आता था।

केन्द्र सरकार को न सिर्फ अपना सर्क्युलर वापस लेना पड़ा, बल्कि इससे पूरी तरह अपना पल्ला झाड़ लेना पड़ा। शास्त्री व्यक्तिगत तौर पर हिन्दी के पक्ष में थे, क्योंकि वे इसी भाषा में सहज महसूस करते थे। जबकि नेहरू के बारे में मौलाना अबुल कलाम आजाद कहा थे कि वे सपने में भी अंग्रेजी में बड़बड़ाते थे। लेकिन दक्षिण के उग्र विरोध को देखते हुए। शास्त्री को उन्हें यह ‘आधिकारिक आश्वासन देना पड़ा कि केन्द्र सरकार द्वारा हिन्दी में कामकाज के उद्देश्य को इस तरह क्रियान्वित किया जाएगा कि गैर-हिन्दीभाषी व्यक्तियों को किसी भी तरह की कठिनाई न हो।

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