प्रधानमंत्री बनने के बाद लाल बहादुर शास्त्री को विदेशी मामलों का पहला अनुभव केयरो के गुटनिरपेक्ष सम्मेलन से हुआ था। इसमें भाग लेते हुए वे कुछ दबे-दबे से और संकोचग्रस्त दिखाई दे रहे थे। उनके पास नेहरू जैसा रुतबा नहीं था। फिर भी, वे अपनी एक अलग छाप छोड़ने के इच्छुक थे, भले ही वह कुछ धुंधली ही क्यों न हो।
शास्त्री की सादगी उनकी सबसे बड़ी खूबी थी। कुलदीप नैयर ने सोचा कि वो उनके इस गुण को यू.एन.आई. के अपने डिस्पैचों में उभारने की कोशिश करेंगे। जिसकी तरफ से वो इस दौरे पर गए थे। उन्होंने शास्त्री को होटल के कमरे में खुद ही अपना खाना पकाते देखा था। एक डिस्पैच में इसका जिक्र किया तो हिल्टन होटलवालों ने हंगामा खड़ा कर दिया और कमरे की दीवारें और और छत काली करने के लिए शास्त्री पर मुकदमा ठोकने की धमकी दे डाली।