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reels से रियल तक का सफर

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मोतीलाल नेहरू कॉलेज में सारगर्भित संवाद

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

reels: “लघु फिल्म समय में लघु होती है, पर अवधारणा में बड़ी” — इस सारगर्भित पंक्ति के साथ मोतीलाल नेहरू कॉलेज की स्क्रीन सेंस फिल्म स्क्रीनिंग कमिटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम ने कला और विचारशीलता की रोशनी बिखेरी।

कार्यक्रम में लघु फिल्मों की स्क्रीनिंग, प्रतियोगिता, और परिचर्चा का सुंदर समन्वय देखने को मिला।

मुख्य वक्ता दीपक दुआ, जो राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म समीक्षक हैं, ने कहा कि “फिल्म की लंबाई से अधिक उसका प्रभाव मायने रखता है।” उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, एक सार्थक माध्यम के रूप में अपनाएं। उनकी बातों में स्पष्ट था कि आज का सिनेमा विषय की गहराई से भटकता दिखता है।

वरिष्ठ लेखिका मेनका त्रिपाठी ने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा —

संस्कृति आज छिटक रही है, और उसे बचाने का माध्यम बन सकती है—फिल्म।”

आज जब सोशल मीडिया पर रील्स की बाढ़ है और युवा मर्यादा से च्युत हो रहे हैं, ऐसे में आवश्यकता है कि सिनेमा खुद आगे आए और उसी रील से उत्तर दे, संवेदनाओं को झकझोरे।

धर्म, मर्यादा, करुणा और वीरता — जब मूक हो जाएं, तो कैमरा बोलना चाहिए।”

कार्यक्रम में ‘नन्ही’, ‘मर्यादा’, ‘शोर’, ‘डिस्कनेक्ट’, और ‘दबाव’ जैसी छात्र-निर्मित लघु फिल्मों की स्क्रीनिंग की गई, जिनमें सामाजिक प्रश्नों को बड़ी सूक्ष्मता से उठाया गया।

नन्हीने प्रथम और मर्यादाने द्वितीय पुरस्कार प्राप्त किए।

नन्हीकी कहानी देह व्यापार की मार झेलती बच्ची पर आधारित थी, जबकि ‘मर्यादा’ ने धार्मिक स्थलों पर कपड़ों और आचरण की गरिमा का प्रश्न उठाया।

स्क्रीनिंग संयोजक अनिरुद्ध कुमार सुधांशु ने कहा —

अच्छी फिल्में समाज को परिष्कृत करती हैं, और यह मंच छात्रों को सोचने, समझने और सृजन करने का अवसर देता है।”

कार्यक्रम में मौजूद डॉ. दिव्या, रितु कथूरिया, ज्योति रोहिल्ला, अजय अग्रवाल, प्रो. संदीप समेत तमाम शिक्षक और छात्रगण एक नए चिंतन को आत्मसात करते दिखे।

छात्र दल में सलीम, मोहित, इरफान आदि की सहभागिता उल्लेखनीय रही।

कार्यक्रम के अंत में यह स्पष्ट हुआ कि लघु फिल्में केवल कैमरे की नज़र से नहीं, हृदय की संवेदना से बनती हैं।

अमिताभ बच्चन स्पेशल

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