तजकिरा-ए-अताउल-मुल्क में लिखा है कि नक्काल हिन्दी और फारसी में व्यंग्यात्मक शेर और गजल गाते हुए दिल्ली के गली कूचों में खान खां का मजाक उड़ाते थे। क्योंकि उसने मराठों के सामने हथियार डाल दिए थे। खान दौरान खां के खिलाफ इतना कुछ कहा गया है कि उसकी दूर-दूर तक बदनामी हो गई और मामला शहंशाह तक भी पहुंच गया। उसने हुक्म दिया कि नक्कालों के सरदार का काला मुंह करके, गधे पर उलटा सवार करके सारे शहर में घुमाया जाए।

फौलाद खां कोतवाल ने जो हब्शी नस्ल का था, बादशाह के हुक्म की तामील की। जब नक्कल को बाजार में से ले जाया जा रहा था तो एक सिपाही ने ऐलान किया, “जो आदमी खान दौरान खां की खिल्ली उड़ाएगा, उसका यही हश्र होगा।” यह नक्काल फौरन चिल्लाकर ऐसे बोला जैसे उस ऐलान को और स्पष्ट कर रहा हो, “”यह सजा उसी को मिलेगी जो मराठों को चौथ देगा और उनकी आज्ञा का पालन करेगा।”

दिल्ली का एक मशहूर भांड हुआ है जिसका नाम ‘करेला” था। वह मुहम्मद शाह के काल में था। किसी बात पर नाराज होकर मुहम्मद शाह ने हुक्म दिया कि उसकी सल्तनत से सारे भांडों को निकाल दिया जाए। दूसरे दिन मुहम्मद शाह की सवारी निकली तो एक जगह ऊपर से भांडों के गाने और ढोल बजाने की आवाज आई। मुहम्मद शाह ने ताज्जुब से सर उठाकर देखा तो करेला और चंद दूसरे भांड एक खजूर के दरख्त पर चढ़े हुए ढोल बजा-बजाकर गा रहे थे।

सवारी रुकवाकर बादशाह ने गुस्से से पूछा, “यह क्या गुस्ताखी है और हमारे हुक्म की तालीम क्यों नहीं हुई, इस पर करेला ने ऊपर बैठे-बैठे ही कहा, “हिला-ए-आलम सारी दुनिया तो जहांपनाह के शासन के अधीन है, जाएं तो जाएं कहां? इसलिए आलम-ए-बाला (स्वर्ग) का इरादा किया और पहली मंजिल है। यहां भी हयात तंग हुई तो ऊपर चले जाएंगे।” इस जुमले पर बादशाह और उसके मुसाहिब हंस पड़े और बादशाह ने उन्हें माफ करके अपने शब्द वापस ले लिए।

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