लाला मुकुंदलाल माथुर (Lala Mukundlal mathur)का शुमार दिल्ली की गिनी-चुनी हस्तियों में होता था। बहुत जहीन और बड़ी खूबियों के मालिक थे। दिल्ली में अंग्रेज़ी की शिक्षा प्राप्त की थी कि मगर बाद में अंग्रेजी चिकित्साशास्त्र का शौक़ हो गया और मेडिकल कॉलेज कलकत्ता में दाखिले के लिए रवाना हो गए। उन दिनों रेल नहीं थी। तरह-तरह की सवारियों में सफ़र करके और परेशानियाँ झेलकर और अंत में गंगा में नाव में बैठकर सफ़र करके कलकत्ता पहुँचे।

2 जून, 1850 ई. को कलकत्ता पहुँचकर उन्होंने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया और कई साल की पढ़ाई के बाद डॉक्टर बन गए। उन्होंने डॉक्टर की हैसियत से बड़ा सम्मान प्राप्त किया और गर्वनर जनरल के ऑनरेरी सर्जन मुकर्रर हुए। कई सम्मान पाए और कलकत्ता विश्वविद्यालय के फेलो भी बनाए गए। उन्होंने अपनी कलकत्ता यात्रा का वृत्तांत भी लिखा जो फ़वाइदुल नाज़रीन के 2 जुलाई 1850 ई. के अंक में प्रकाशित हुआ। उनकी चिकित्सा संबंधी सेवाएँ उनकी असाधारण क्षमता का प्रमाण हैं।

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