संघ प्रमुख के बयान पर शुरू हुआ विचार विमर्श का दौर

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

हाल ही में नागपुर में ‘कथाले कुल सम्मेलन’ के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने यह बयान दिया कि समाज के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं गिरनी चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज के दीर्घकालिक भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए प्रत्येक परिवार को तीन बच्चे पैदा करने पर विचार करना चाहिए। यह बयान भारत जैसे देश में, जहां जनसंख्या से जुड़े कई आर्थिक और सामाजिक पहलू पहले से ही चर्चा के केंद्र में हैं, नई बहस को जन्म देता है।

भारत की जनसंख्या और विकास का समीकरण

भारत आज 1.4 अरब की जनसंख्या के साथ दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। एक तरफ यह विशाल मानव संसाधन का प्रतीक है, तो दूसरी ओर गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी जैसी समस्याओं का कारण भी है।

भारत ने पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरूकता अभियानों और परिवार नियोजन की नीतियों को लागू किया। 1998 और 2002 के बीच जनसंख्या नीति ने यह तय किया कि प्रजनन दर 2.1 के स्तर पर स्थिर रहे, जो कि जनसंख्या को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में यह दर कम हो रही है, जो दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक असंतुलन का कारण बन सकती है।

तीन बच्चों की नीति का तर्क

मोहन भागवत का बयान जनसंख्या विज्ञान के आधार पर दिया गया है। जब किसी समाज की प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो उसकी जनसंख्या धीरे-धीरे घटने लगती है। उदाहरण के लिए, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोप के कई देश इस समय जनसंख्या संकुचन की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप इन देशों में वृद्ध जनसंख्या का अनुपात बढ़ा है, जिससे आर्थिक और सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।

भारत में, कुछ विकसित और शहरी क्षेत्रों में प्रजनन दर पहले ही 2.1 से नीचे पहुंच चुकी है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो आने वाले दशकों में देश को श्रमशक्ति की कमी और वृद्ध समाज की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

तीन बच्चों की नीति: संभावित लाभ

  1. आर्थिक स्थिरता:
    तीन बच्चे की नीति के माध्यम से श्रमशक्ति का संतुलन बना रहेगा। इससे भविष्य में उत्पादक कार्यबल की कमी नहीं होगी, जो आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य है।
  2. समाज का अस्तित्व:
    जब समाज में प्रजनन दर गिरती है, तो इससे सांस्कृतिक और पारिवारिक संरचना पर असर पड़ता है। तीन बच्चों की नीति परिवार और समाज को जीवित रखने का साधन हो सकती है।
  3. जनसांख्यिकीय लाभांश:
    भारत अभी भी युवा जनसंख्या के मामले में दुनिया में अग्रणी है। इस युवा जनसंख्या को बनाए रखना देश की अर्थव्यवस्था के लिए सहायक होगा।

तीन बच्चों की नीति: चुनौतियां

  1. गरीबी और संसाधनों की कमी:
    भारत पहले से ही गरीबी और संसाधनों की कमी का सामना कर रहा है। स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और रोजगार की कमी जैसी समस्याएं बढ़ती जनसंख्या के साथ और गंभीर हो सकती हैं।
  2. पर्यावरण पर असर:
    बढ़ती जनसंख्या से पर्यावरण पर दबाव बढ़ेगा। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों की कमी जैसी समस्याएं और गंभीर हो सकती हैं।
  3. असमान विकास:
    ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच विकास का अंतर पहले से मौजूद है। तीन बच्चों की नीति गरीब और निम्न आय वर्ग के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।

जनसंख्या नीति: संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता

भारत के लिए जरूरी है कि वह जनसंख्या वृद्धि और जनसंख्या नियंत्रण के बीच संतुलन बनाए। सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

  1. शिक्षा और जागरूकता:
    परिवार नियोजन और प्रजनन स्वास्थ्य के प्रति लोगों को शिक्षित करना आवश्यक है। इससे समाज में संतुलित जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
  2. संसाधनों का विकास:
    स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर बढ़ती जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सकता है।
  3. क्षेत्रीय असमानता को दूर करना:
    सरकार को ऐसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां जनसंख्या वृद्धि दर अत्यधिक कम है। इसके लिए सामाजिक और आर्थिक प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं।
  4. वृद्ध समाज के लिए योजनाएं:
    जनसंख्या संकुचन को रोकने के साथ-साथ, वृद्ध समाज की चुनौतियों का समाधान करने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनानी होंगी।

मोहन भागवत का बयान एक ऐसे मुद्दे को उठाता है, जो भारत के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, तीन बच्चों की नीति को लागू करना व्यावहारिक दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन इसके पीछे का तर्क समझने योग्य है। भारत को इस मुद्दे पर गहराई से विचार करना होगा और ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जो जनसंख्या के साथ-साथ समाज और अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास को सुनिश्चित कर सकें।

तीन बच्चों की नीति का क्रियान्वयन केवल बयानबाजी तक सीमित न रहकर, इसे राष्ट्रीय नीति और संसाधन वितरण के आधार पर गहनता से समझने की आवश्यकता है। भारत के भविष्य का निर्माण इसी संतुलन पर निर्भर करेगा।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here