दिल्ली में इन जगहों पर जरूर घूमने जाएं

दिल्ली का यदि पुराना नक्शा देखें तो इसके पूर्व में यमुना नदी बहती है, पश्चिम में अरावली पर्वत का सिलसिला चला गया है, जो घूमता हुआ दक्षिण में जा पहुंचा है और उत्तर में फिर यमुना नदी आ जाती है। उस समय पूर्व में तो यमुना बहती ही होगी, मगर प्रतीत होता है कि यमुना की कई धाराएं और भी थीं, जो इस भूखंड के भिन्न-भिन्न भागों में बहा करती थीं। एक धारा यमुना से बारहपुला. निजामुद्दीन के पास से होती हुई जंतर-मंतर के पास से निकलकर तुर्कमान दरवाजे तक पहुंचती थी और शायद उससे आगे सीधी चांदनी चौक से दरीबे के पास से होती हुई निगमबोध घाट के पास यमुना में मिल जाती थी। प्रतीत होता है कि नगर बसाने के लिए यही टुकड़ा चुना गया होगा। बारहपुले का पुल तो आज भी है।

यह भी उल्लेख है कि निजामुद्दीन औलिया की दरगाह यमुना के किनारे बनाई गई थी और तुर्कमान दरवाजे के पास तुर्कमान शाह और रजिया बेगम की जो कब्रें हैं, वे भी यमुना के किनारे बनाई गई थीं। यह भी कहा जाता है कि चांदनी चौक में जहां कोतवाली है, यमुना का बहाव इस कदर तेज था कि भंवर में नाव डूब जाया करती थी। शायद मोहल्ला बल्लीमारान में किश्ती चलाने वाले रहते थे। निगमबोध घाट तो महाभारत काल से भी प्राचीन स्थान गिना जाता था। इन सबको देखकर यदि अनुमान कर लें कि इंद्रप्रस्थ यमुना की दो धाराओं के बीच बसाया गया होगा तो कुछ गलत नहीं होगा और वह भी संभव है कि बाकी का भाग खांडव वन से घिरा हुआ हो क्योंकि उस खंड के बड़े भाग में आज भी पहाड़ और जंगल विद्यमान हैं।

दिल्ली में आठ स्थान ऐसे हैं, जिनका संबंध पांडवों से जोड़ा जाता है- 1. हनुमान जी का मंदिर 2. नीली छतरी, 3. योगमाया का मंदिर, 4. कालका जी अथवा काली देवी का मंदिर, 5. किलकारी भैरव का मंदिर, 6. दूधिया भैरव का मंदिर, 7. बाल भैरव का मंदिर, और 8. पुराना किला। जहां तक वर्तमान नीली छतरी का संबंध है, उसको देखने से यह नहीं कहा जा सकता कि वह पांडव काल की बनी होगी. क्योंकि यह इमारत पांच हजार वर्ष पुरानी प्रतीत नहीं होती। रहा प्रश्न छह मंदिरों का। इस संबंध में यह तो निश्चित है कि जो मूर्तियों वहां हैं, वे उस काल की नहीं हैं। प्रथम तो यही विवादास्पद है कि महाभारत काल तक मूर्तियां स्थापित करने का रिवाज था भी या नहीं। तब लोग प्रायः वैदिक काल के देवताओं के उपासक थे और शिव सबसे बड़े देवता माने जाते थे।

शिव महादेव कहलाते थे। उनके साथ ब्रह्मा और विष्णु की भी उपासना होती थी, किंतु कदाचित इनके मंदिर और मूर्तियों नहीं थीं, क्योंकि लोग चिह्नों के उपासक थे और प्रत्यक्ष चिह्नों में सूर्य और अग्नि की उपासना करते थे। कृष्ण भगवान से पहले यद्यपि सात अवतार हो चुके थे, जिनमें चार तो मनुष्येतर योनि के थे और तीन मनुष्य योनि के और उनमें भगवान राम ही सर्वश्रेष्ठ हुए हैं, मगर उनकी भी प्रतिमा की पूजा महाभारत काल तक नहीं होती थी। न उनके मंदिर बनने का उल्लेख मिलता है। मंदिर बनाने का रिवाज तो बौद्ध काल के बहुत पश्चात पड़ा प्रतीत होता है। इसलिए यह नहीं कह सकते कि वहाँ के छह मंदिर उस काल के हैं और यदि कोई मंदिर बनाए भी गए होंगे तो मुस्लिम काल में उन सबको खंडित कर दिया गया होगा। योगमाया का मंदिर बेशक ऐसा है, जिसमें मूर्ति न होकर, चिह्न अथवा पिंडी है। भारत में देवी के दो ही ऐसे स्थान है, जहां देवी की पिंडी है- एक गया में और दूसरी योगमाया में उपर्युक्त बाकी पांच मंदिरों में मूर्तियां हैं।

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