एनएचआरसी ने मानसिक स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय सम्मेलन का किया आयोजन
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
2022 में भारत में 1.7 लाख से अधिक आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिनमें से 41% पीड़ित 30 वर्ष से कम आयु के थे। यह चिंता का विषय बन चुका है, विशेष रूप से 15-24 आयु वर्ग में आत्महत्या की दर की उच्चता को देखते हुए। इस गंभीर स्थिति को हल करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने विज्ञान भवन, नई दिल्ली में ‘मानसिक स्वास्थ्य: कक्षा से कार्यस्थल तक तनाव का समाधान’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में मानसिक स्वास्थ्य, तनाव और इसके प्रभावों पर व्यापक चर्चा की गई, जिसमें विशेषज्ञ, नीति निर्माता और हितधारक शामिल हुए।
1. मानसिक स्वास्थ्य: समाज का साझा जिम्मेदारी
एनएचआरसी की कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती विजया भारती सयानी ने उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण देते हुए कहा, “हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जहाँ मानसिक स्वास्थ्य हमारे जीवन का मूल हिस्सा हो, न कि केवल एक गौण विचार।” उन्होंने कक्षाओं और कार्यस्थलों में तनाव के कारणों की पहचान करने की आवश्यकता को महसूस किया, और यह आह्वान किया कि संस्थान और कार्यस्थल मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। श्रीमती सयानी ने यह भी कहा कि शिक्षक और प्रशासन को छात्रों में संकट के संकेत पहचानने और समय पर सहायता प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
2. डिजिटल उपकरणों के प्रभाव पर चर्चा
श्रीमती सयानी ने यह भी कहा कि जबकि डिजिटल उपकरणों ने शिक्षा में क्रांति ला दी है, वे साइबर-बदमाशी, सोशल मीडिया और अत्यधिक सूचनाओं के संपर्क जैसी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। इस ‘ऑनलाइन रहने’ की संस्कृति में मानसिक विश्राम के लिए बहुत कम जगह रहती है, जिससे तनाव में वृद्धि होती है। उन्होंने इस पर विचार करते हुए कहा कि डिजिटल युग में मानसिक स्वास्थ्य को सही दिशा में कैसे मार्गदर्शित किया जाए, यह एक बड़ा सवाल है।
3. कार्यस्थल पर तनाव और देखभाल की संस्कृति
कार्यस्थल पर तनाव की समस्या को संबोधित करते हुए, श्रीमती सयानी ने कहा कि काम का दबाव केवल करियर की शुरुआत में ही नहीं, बल्कि पदों के उच्चतम स्तर पर भी मौजूद है। उन्होंने संगठनों से सहानुभूति और देखभाल की संस्कृति को बढ़ावा देने की अपील की, जिससे मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर सकारात्मक बदलाव आए। मानसिक स्वास्थ्य को एक साझा जिम्मेदारी मानते हुए, उन्होंने समाज में अधिक सार्थक योगदान देने के लिए इस पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया।
4. आत्महत्या की बढ़ती दर और इसके कारण
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के महासचिव श्री भरत लाल ने इस तथ्य पर चिंता व्यक्त की कि 2022 में भारत में 1.7 लाख से ज्यादा आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिनमें से 41% पीड़ित 30 वर्ष से कम आयु के थे। उन्होंने बताया कि भारत में 15 से 24 वर्ष के युवाओं में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है, जो वैश्विक रुझानों के साथ मेल खाती है। यह आंकड़ा गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट को उजागर करता है, जिससे तत्काल समग्र दृष्टिकोण और बहु-क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
5. मानसिक स्वास्थ्य सेवा में सुधार की आवश्यकता
आत्महत्याओं के बढ़ते आंकड़ों के संदर्भ में, श्री लाल ने मानसिक स्वास्थ्य सेवा के सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने एनएचआरसी के सक्रिय उपायों का उल्लेख किया, जैसे कि विभिन्न केंद्रों की स्थापना और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित सात प्रमुख क्षेत्रों पर कार्य। इन उपायों का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाना और इससे जुड़ी समस्याओं का समाधान करना है।
6. बच्चों और किशोरों में तनाव
सम्मेलन के पहले सत्र की अध्यक्षता नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने की। उन्होंने कहा कि आजकल के बच्चे और किशोर मानसिक स्वास्थ्य की भयावह स्थितियों से जूझ रहे हैं, और इनमें से 81% छात्र परीक्षा की चिंता से प्रभावित हैं। डॉ. पॉल ने यह भी कहा कि बच्चों और किशोरों में तनाव को पहचानने और इसे कम करने के उपायों की आवश्यकता है, ताकि वे बेहतर मानसिक स्थिति में रह सकें।
7. कार्यस्थल पर तनाव और कार्य-जीवन संतुलन
तीसरे सत्र की अध्यक्षता नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष श्री राजीव कुमार ने की, जिसमें कार्यस्थल पर तनाव और थकान पर चर्चा की गई। इस सत्र में विशेषज्ञों ने कार्य-जीवन संतुलन पर जोर दिया और यह बताया कि युवा कर्मचारियों पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है, जो अत्यधिक तनाव महसूस करते हैं। उन्होंने तनाव प्रबंधन नीतियों के व्यावहारिक कार्यान्वयन पर बल दिया, जिससे बर्नआउट को कम किया जा सके।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा आयोजित यह सम्मेलन मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को उजागर करता है, विशेष रूप से आज के तनावपूर्ण समय में, जहां आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की दर में लगातार वृद्धि हो रही है। यह सम्मेलन मानसिक स्वास्थ्य सुधार के लिए एक कदम आगे बढ़ाता है, और यह उम्मीद जताता है कि भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाएगी और इससे संबंधित सभी पहलुओं पर गंभीर विचार किया जाएगा।