विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने हाल ही में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों को लेकर नए नियम जारी किए हैं। डीयू शिक्षकों, एएडीटीए ने इन नियमों को लेकर यूजीसी पर निशाना साधा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद की सदस्य डॉ. सीमा दास ने AADTA की ओर से UGC विनियम 2023 के संबंध में अपनी बात रखते हुए कहा – “AADTA विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसर की स्थापना और संचालन) विनियम, 2023 के मसौदे का कड़ा विरोध करता है। यह विनियम शैक्षिक संस्थानों को व्यावसायिक उद्यमों, अभिजात वर्ग का एन्क्लेव बनाने का कार्य करेगा। साथ ही समूची शिक्षा व्यवस्था को कालांतर में भारतीय सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक विमर्शों से दूर करने में रणनीतिक भागीदार सिद्ध होगा। है। यह ‘ड्रेन थ्योरी’ का आधारित है, जिसके द्वारा विनियम का लाभ उठाकर आने वाली शैक्षिक ईस्ट इंडिया कंपनियां, भारत के विशाल शिक्षा क्षेत्र को लूटने की कोशिश करेंगी। इस विनियम में सामाजिक न्याय की चिंताओं को, जो कि भारतीय संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है, उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है।

एएडीटीए राष्ट्रीय अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा ने बताया कि यूजीसी ने विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए दरवाजे, छात्रों के कल्याण के लिए नहीं बल्कि कोचिंग संस्थानों की तरह काम करने के लिए खोले हैं। इस विनियम में अनुसंधान और नवाचार पर कोई जोर नहीं है। वर्तमान सरकार एनईपी 2020 के तहत भारतीय विश्वविद्यालयों को मजबूत करने के बजाय उनसे और अधिक दूर होती जा रही है। यह मसौदा विनियम केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा के लिए कम फंडिंग को प्रतिबिंबित करता है, जो कि नई शिक्षा नीति 2020 के मकसद को और पुष्ट करते हुए शिक्षा के स्तर को नीचे करेगा।

1. ड्राफ्ट विनियमों में, (ए) छात्र प्रवेश (बी) संकाय आवश्यकताओं के लिए जाति आधारित/अर्थ आधारित/अल्पसंख्यक आधारित/सशस्त्र बल आधारित/दिव्यांग आधारित/कश्मीरी प्रवासी/प्रतिनिधित्व आधारित/महिला आरक्षण के लिए कोई स्थान नहीं है। अर्थात, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ओबीसी / ईडब्ल्यूएस / पीएच / सशस्त्र बल /महिलाओं के लिए किसी प्रकार का कोई आरक्षण नहीं है।

2. पाठ्यक्रम और इससे संबंधित सामग्री के संबंध में कोई स्पष्टता नहीं है।

3. शासन/शासी निकाय में कोई निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं है।

4. शुल्क के लिए नियमितता हेतु किसी प्रकार की संरचनागत स्पष्टता नहीं। शिक्षण शुल्क/विकास शुल्क/समग्र शुल्क की सीमा को लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं है।

5. जरूरतमंद/कमजोर वर्ग/वंचित वर्ग के छात्रों के लिए शुल्क रियायत का कोई प्रावधान नहीं है।

6. भारत में कैंपस खोलने की पात्रता में पूर्ण व्यक्तिपरकता और अस्पष्टता (विनियम बिंदु संख्या 3.1 और 3.2) देखने को मिल रही है। खामियां इतनी अधिक हैं कि उनका दुरुपयोग करते हुए छद्म मार्गों का प्रयोग कर बड़ी आसानी से दाखिला लिया जा सकता है।

7. यदि विदेशी संस्थान अपने भारतीय कैंपस के संचालन में विफल रहता है, तो ऐसी स्थिति यूजीसी इन संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों की देखभाल कैसे करेगा, यह भी अपने आप में बड़ा सवाल है।

8. अनुमोदन की प्रक्रिया में भी व्यक्तिपरकता और अस्पष्टता: देखने को मिल रही है। भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसरों की स्थापना और उनके संचालन के लिए निगरानी/अनुमोदन देने के लिए यूजीसी की स्थायी समिति के गठन और संरचना पर कोई स्पष्टता नहीं है।

9. विनियम की प्रक्रिया, विश्वसनीयता, शक्ति आदि में व्यक्तिपरकता का पर्याप्त दखल और स्पष्टता की कमी (विनियमों में बिंदु 4.3) देखी जा सकती है।

10. सीमित समय की अनुमति (प्वाइंट 4.7) यानी 10 साल के लिए: यह संस्थान को भले ही वैसे पाठ्यक्रम खोलने और शुरू करने के लिए प्रतिबंधित करेगा जो अधिक पैसा कमाएगा लेकिन ऐसी स्थिति में भी सामाजिक प्रभाव वाले और कम लाभ वाले क्षेत्र में अनुसंधान पर कोई ध्यान नहीं देगा।

10. प्रवेश प्रक्रिया और योग्यता के विषय में भी स्पष्टता का अभाव है।

11. शिक्षण शुल्क और छात्रवृत्ति को लेकर जैसी उदासीनता बरती गई है (बिंदु 5.1), वह छात्रों पर अतिरिक्त बोझ व दबाव डालेगा।

12. संकाय और कर्मचारियों की नियुक्ति और उनकी सेवा शर्तों और वेतन में पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करना, बहुत खतरनाक है।

13. छात्रों के साथ-साथ शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की शिकायतों के निवारण के लिए किसी तंत्र और समयावधि की जानकारी उपलब्ध नहीं है।

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