आपातकाल के दौरान संजय गांधी कर रहे थे राजनीतिक सत्ता का संचालन

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

दिल्ली में आपातकाल समाप्त होने पर, इन्दिरा गांधी की पराजय और जनता पार्टी के सत्तारूढ़ होने के बाद रफी मार्ग पर स्थित कांस्टिट्यूशन क्लब में लेखकों और पत्रकारों की एक ‘पश्चात्ताप सभा’ का आयोजन करना पड़ा।

जिसमें शामिल होनेवालों में जानकारों के अनुसार डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल, मनोहरश्याम जोशी, कन्हैयालाल नन्दन, डॉ. महीप सिंह, राजेन्द्र अवस्थी, रमेश गौड़ के अलावा भी बहुत लोग थे। इन लोगों ने अपने को धिक्कारने के अलावा, भविष्य के लिए भी संकल्प किया कि वे भविष्य में लोकतान्त्रिक शक्तियों का साथ देंगे और अपनी भूमिका को किसी भी हाल में कलंकित न होने देंगे।

इनमें से कुछ ऐसे भी थे जो आपात्काल से पहले जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति के विचार का समर्थन कर चुके थे। पर ऐसे लोगों की गिनती भी कम नहीं थी जो मित्रों-परिचितों के लाख कहने पर भी आपातकाल का समर्थन करने के लिए इन्दिरा गांधी के यहां नहीं गए।

निर्मला जैन अपनी पुस्तक दिल्ली शहर दर शहर में लिखती हैं कि उन दिनों लेखकों/पत्रकारों को इस काम के लिए घेरकर ले जाने का दायित्व श्रीकान्त वर्मा ने ओढ़ रखा था। मुझे अच्छी तरह याद है कि उनके दबाव के बावजूद राजेन्द्र यादव और अजित कुमार दोनों ने जाने से इनकार कर दिया था।

इनके अलावा भी कई ऐसे उदाहरण थे जो आत्मरक्षात्मक चुप्पी भले ही साधे हों पर न उन्होंने घुटने टेके, न सत्ता की पक्षधरता की। महादेवी वर्मा तो सुमित्रानन्दन पन्त पर इस प्रसंग में बेतरह नाराज़ थीं कि वे लेखकों के एक प्रतिनिधि-मंडल में इन्दिरा गांधी के पास आपात् स्थिति का समर्थन करने के लिए पहुंच गए थे। वे बराबर सार्वजनिक रूप से अपनी नाराज़गी व्यक्त करती रहीं और पन्त जी को इस बात के लिए धिक्कारती रहीं।

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