Agnikaal cover page

दूसरी सहस्त्राब्दी का आरंभ भारतीय इतिहास का वह कालखंड है, जब देश में आक्रांताओं का लंबा दौर चलता है। तुर्क हो कि मुगल या फिर ब्रिटिश, इनके कारण दो हजार वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही सनातन परंपरा, सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति क्षत-विक्षत होकर पार्श्व में चली गई। इस ऐतिहासिक तथ्य और इससे जुड़े विचार की अक्षर यात्रा है युगल जोशी की औपन्यासिक कृति ‘अग्निकाल’। वरिष्ठ चिंतक और पत्रकार रामबहादुर राय के शब्दों में, ‘इतिहास के सामीप्य में औपन्यासिक रचना का अनूठा उदाहरण है ‘अग्निकाल’।’

इस पुस्तक के साथ भारत की इतिहास यात्रा पर निकलें तो हम देखते हैं कि कैसे 1192 से आरंभ होकर अगले डेढ़ सौ वर्षों का समय परंपरागत भारतीय समाज और राजाओं पर आक्रांताओं की अग्निवर्षा सरीखा था। प्रख्यात इतिहासकार अब्राहम एरले ने इस पूरे दौर को ‘एज ऑफ रैथ कहा है।’ भारतीय इतिहास के इस महत्वपूर्ण कालखंड के औपन्यासिक वितान पर प्रोफेसर शाफे किदवई कहते हैं, ‘इस उपन्यास को पढ़ना मानो स्वयं को उस समयकाल के रुक्ष दर्पण में देखना है।’

बकौल किदवई, ‘दिल्ली सल्तनत के कालखंड की भारतीय मीमांसा जिस प्रकार की चेतना को जन्म देने के लिए जिम्मेदार है, उसके वर्तमान परावर्तन में दुख, खीज और प्रतिकार का बोध हमें एक ऐसे चिंतन की ओर ले जाता है, जो उस कालखंड को अग्निकाल का नाम देता है। यह उपन्यास उसी अग्निकाल के चिंतन को जीने का खूबसूरत प्रयास है।’

‘अग्निकाल’ में इतिहास कुछ इस तरह से आगे बढ़ता है कि हर क्षण आप इसके नायक माणिक अर्थात मलिक काफूर के साथ होते हैं। ऐसा एहसास होता है जैसे टाइम मशीन में बैठकर आप खिलजी काल में चले आए हों और आपकी आंखों के सामने सब कुछ घटित हो रहा हो।

दरअसल, ‘अग्निकाल’ एक प्रतिभाशाली हिंदू किशोर के सल्तनत काल के सबसे बड़े सेनापति मलिक काफूर बनने की कहानी है। युवावय के प्रेम से आरंभ होने वाली इस कहानी में एक दुखद मोड़ तब आता है, जब प्रेमिका की हत्या हो जाती है और प्रेमी को हिजड़ा और गुलाम बनाकर दास मंडी में बेचा जाता है। एक गुलामी से दूसरी गुलामी, एक हरम से दूसरे हरम, एक लड़ाई के मैदान से दूसरे लड़ाई के मैदान से होता हुआ मलिक काफूर अपरोक्ष रूप से दिल्ली का सुल्तान बन जाता है। पर उसकी महत्वाकांक्षा आत्महंता साबित होती है।

इस उपन्यास में परिदृश्य इतने वास्तविक रूप से सामने आते हैं कि आप गुजरात से दिल्ली, दिल्ली से देवगिरी, देवगिरी से वारंगल और होयसल होते हुए मदुरै की यात्रा में एक क्षण को भी यथार्थ से दूर नहीं होते हैं। इन सबके बीच हरम और दरबार की दमघोंटू और षड्यंत्रकारी स्थितियां हैं, जिनमें खुद सुल्तान, उसकी बेगमें, तमाम रिश्तेदार, सूफी खानकाह, अमीर-उमरा, पीर और मुरीद सब जी रहे हैं। सांकेतिक रूप से यह ऐतिहासिक आख्यान शांत सोमनाथ की सुंदर सुबह से शुरू होता है और इसका मार्मिक अंत रात के आखिरी पहर में सीरी के किले में होता है।

पुस्तक : अग्निकाल
लेखक : युगल जोशी
प्रकाशक: पेंगुइन स्वदेश
मूल्य : 499 रुपए

Spread the love

1 COMMENT

  1. यह उपन्यास बेहद दिलचस्प है। आपकी समीक्षा पढ़कर मैने मंगवाया और पढ़ा। यह कौतूहल और रहस्यों से भरा एक ऐसा उपन्यास है, जिसे आपका न सिर्फ मनोरंजन होगा बल्कि सल्तनत काल में भारत की दुर्दशा का लाइव दृश्य भी आप देख पाएंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here