डॉ. अबूल पाकिर जैनुलाबद्दीन अब्दुल कलाम (A.P.J. Abdul Kalam)। रामेश्वरम से लेकर रायसिना हिल्स तक इनका सफर देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को प्रेरित करता रहा। वैसे तो सत्ता का केन्द्र रहे दिल्ली में उनका आना जाना बना रहा लेकिन वर्ष 2002 में उनका नाता रायसिना हिल्स से जुड़ा, जहां वे राष्ट्रपति के तौर पर रहे। इस दौरान उन्होंने दिल्ली के कई संस्थानों में छात्रों को संबोधित किया। उनकी सादगी और सरल व्यवहार ने दिल्ली वालों को भी अपना बना मुरीद बना लिया। दिल्ली में इनसे जुड़ी स्मृतिंयों को सहेंज कर रखा गया है, जो आज भी दिल्ली वालों को हर पल प्रेरित कर रही हैं।

दिल्ली हाट स्थित कलाम मेमोरियल। यह पता महज डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की यादों का बसेरा ही नहीं है बल्कि उनके जीवन के महत्वपूर्ण लम्हों की कहानी भी बयां करते हैं, जो उनके जीवन के साथ साथ देश के लिए भी मील का पत्थर साबित हुआ। उनके जन्म स्थान रामेश्वरम में उनके साधारण से घर जैसा ही उनके संग्रहालय की छतें भी दिखती हैं जिसमें डॉ. कलाम की पसंद की झलक दूर से ही दिखाई दे जाती है। इस स्मृति घर में प्रवेश करते ही असाधारण व्यक्तित्व वाले डॉ. कलाम के जीवन से मिलने का मौका मिलता है।

संग्रहालय में प्रवेश करते ही बायीं ओर उनका विजन 2020 से मुखातिब होते हैं लोग, जिसमें युवाओं को प्रेरित करती बातें हैं, पास की दीवार में एक बड़ी स्क्रीन हैं जिसमें उनके जीवन की उपलब्धियों की छोटी फिल्म देखी जा सकती है। दायीं ओर उन छोटे -छोटे बच्चों के अनुभव सुने जा सकते हैं जिन्हें डॉ. कलाम से मिलने मौका मिला। शिक्षक के रूप में वे काफी लोकप्रिय रहे उनसे जुड़ीं कई चीजें यहां देखी जा सकती हैं। कांच के फ्रेम में रखी उनकी नीली रंग की टी शर्ट, तीन कंग्घियां, चश्में, और दो धोती, कुछ किताबें, स्टील की कॉफी गिलास, प्लेट, कटोरी, दो सफारी सूट, चमकीली टोपी, कुछ अवार्ड, टाई, बेल्ट, और उनकी हस्तलिखित टिप्पणियां देखी जा सकती हैं। डॉ. कलाम का डीआरडीओ के वैज्ञानिक से लेकर मिसाइल मैन कहलाने तक के सफर को भी एलईडी स्क्रीन पर देखा जा सकता है। इसके अलावा दीवारों पर कुछ तस्वीरें भी लगी हैं जिसमें उनका एयरफोर्स प्रेम भी झलकता है।

दरअसल, वे एयरफोर्स में पायलट बनना चाहते थे लेकिन उनका चयन नहीं हो सका जिसके बाद निराश हो कर वे ऋषीकेश में एक संत से मिले। उस संत ने उनको समझाया और वे फिर से अपने मिशन में जुट गए। डीआरडीओ हैदराबाद में वैज्ञानिक के तौर पर काम करना शुरू किया, 1980 में उनकी मेहनत रंग लानी शुरू हुई। डीआरडीओ के निदेशक के कार्यकाल में थुंबा से भारत का पहला राकेट लांच किया गया जिसे रोहिणी गृह में स्थापित किया गया जिसके बाद भारत भी स्पेस कल्ब में शामिल हो गया। उसके बाद उन्होंने पृथ्वी, अग्नि मिसाइल विकसित करने में अहम भूमिका निभाई। साल 1998 में उनकी अगुवाई में ही पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किया।

इस तरह उन्हें देशवासियों ने मिसाइल मैन का खिताब भी दे डाला। उसके बाद वे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। एक वैज्ञानिक से इतर दूसरे सेक्शन में उनके व्यक्तित्व के अलग पहलू को दर्शाया गया। वे कर्नाटक संगीत काफी पसंद करते थे। वीणा बजाते थे और उन्हें श्रीराग सुनना और बजाना बेहद भाता था। हैदराबाद की रहनी वाली श्रीमती कल्याणी से उन्होंने वीणा सीखा था और स्टेज पर कार्यक्रम भी प्रस्तुत करते थे। तो वहीं अगले सेक्शन में उनके जीवन के प्रति नजरिये को दर्शाता है। वे दार्शनिक रुमी, लुईश फिशर, भागवत गीता, जपुजी साहिब, रविन्द्रनाथ टेगोर, महात्मागांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्हें पढ़ने के साथ लिखने का भी शौक था इसलिए उन्होंने कई किताबें लिखी जिसमें से उनकी आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर, इगनेटेट माइंडस, टर्निग पाइंट, विजन 2020 चर्चित किताबें रहीं। इन सभी किताबों के साथ जिन किताबों को वो पढ़ा करते थे वे भी यहां प्रदर्शित की गई हैं। उनके राष्ट्रपति भवन के सफर को भी चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है। उन्होंने अशोका हॉल की सीलिंग की पेंटिंग्स को दोबारा पेंट करवाने की पहल की। इसके साथ उन्होंने राष्ट्रपति भवन के पेड़ों पर भी किताबें लिखी। उन्हें गुलाब बेहद पसंद था इसलिए मुगलगार्डन में गुलाबों की कई किस्में विकसित की गईं।

उन्होंने इस काम को करने वाले माली के वेतन को भी बढ़ाने के निर्देश दिए क्योंकि उनके मुताबिक नया सृजन करने वाला अलग और विशिष्ट होता है। राष्ट्रपति होने के बावजूद वे वहां के माली और दूसरे कर्मचारियों के साथ भोजन भी करते थे। इसके अलावा गलियारों के खंभों पर डॉ. कलाम के चेहरों के साथ उनका जीवन को लेकर नजरिया और प्रेरित शब्द हर किसी के दिल को छू जाता है। उनका कहना था कि सूरज की तरह चमकने के लिए सूरज की तरह जलना पड़ता है।

इस संग्रहालय के संरक्षक एस सैमसन बताते हैं कि उनकी पहली पुन्यतिथि 27 जुलाई के अवसर पर इस संग्रहालय की शुरुआत की गई, उस समय उनके साथ रहने वाले कई लोगों ने शिरकत की थी और अपनी यादें सांझा किए थे। डॉ. कलाम सरल, सादगी के साथ जीवन व्यतीत करते थे। गलियारों में उनके लिखे कुछ प्रेरणा देने वाले शब्दों को दिखाते हुए बताते हैं कि वे इतने बड़े व्यक्तित्व होते हुए भी खाना अपने हाथों से पका कर खाते थे जबकि उनके दूसरे वैज्ञानिक साथी पांच सितारा होटल से मंगा कर खाना खाया करते थे। अपने हाथों से पकाई गई इडली डोसा सभी को खिलाते भी थे और अपने खाली समय में किताबों के साथ समय बिताते थे।

उनके जाने के बाद भी उनकी यादों से आबाद राष्ट्रपति भवन

डॉ. कलाम वैज्ञानिक होने के नाते आज के तकनीक को काफी पसंद करते थे। इसलिए राष्ट्रपति भवन में विकसित संग्रहालय में उनकी उपलब्धियों के साथ साथ उनके द्वारा उपयोग में लाई गई कई चीजें भी प्रदर्शित की गई हैं। यहां भी उनके चंद कपड़े, कलम, कुरान, चश्में के साथ उनकी वीणा को देखा जा सकता है। थ्रीडी तकनीक के माध्यम से उन्हें देखा और सुना भी जा सकता है। उनकी पसंदीदा एयरफोर्स की वर्दी में उनका कटआउट भी जो बोलती हुई प्रतीत होती है।


सभी राजनेताओं को अलग नाम से पुकारते थे दादा

शेख सलीम, डॉ. कलाम के भाई के पौत्र

उनके साथ जीवन के सात साल बिताने का मौका मिला। एमबीए करके मैंने उनके आवास 10 राजा जी मार्ग पर उनके साथ कई पल बिताए। वे जैसे लोगों के लिए थे वैसे ही परिवार वालों के लिए भी थे। हमेशा एक शिक्षक की भूमिका में ही रहते थे। एक बार वो मेरे पास बैठे थे तो उन्होंने एक सवाल कर दिया कि आंगन में लगे तीन अशोक के पेड़ों में क्या अंतर दिखाई दे रहा है? मैं सोचने लगा और ध्यान से पेड़ों को देखने लगा मुझे कोई अंतर नजर नहीं आया लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि तीनों पेड़ एक दूसरे से अलग हैं। एक पेड़ पर कबूतरों का बसेरा है, तो दूसरे पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता, तो तीसरे चील बैठता है। इसलिए हर एक पेड़ का अपना महत्व है। इसी तरह जब कोई भी छात्र गलती करता था तो उसे समझाने का उनका अलग ही तरीका होता था। हंसते हंसते ही उसकी गलती का बोध करवाते थे। दादा के रूप में भी वे बेहद स्नेही रहे। लेकिन सख्त भी रहे। लेकिन फुर्सत के लम्हों में वे मजाक भी किया करते थे। खासकर राजनेताओं पर वे काफी चर्चा करते थे और उन्हें अलग नामों से भी पुकारते थे क्योंकि उन्हें हिंदी नाम ज्यादा याद नहीं रहता था।

.कुछ इस तरह बन पड़ा कलाम सूट

अमन जैन, फेयर डील टेलर्स

अजमल खां रोड पर स्थित फेयर डील शॉप के संचालक अमन जैन बताते हैं कि डॉ अब्दुल कलाम से उनकी मुलाकात 21 साल पहले हुई। वे उनके सरकारी आवास गए थे उनका नाप लेने के लिए। जब वे डीआरडीओ में कार्यरत थे तब से यहां सूट सिलवाने आने लगे। वो मीडियम लाइट रंग ही पहनते थे। राष्ट्रपति भवन के बाद 10 राजाजी मार्ग स्थित आवास पर उनका नाप लेने जाता रहा हूं। जब भी उनके पास गया उन्होंने खाना खिलाए बगैर जाने नहीं दिया। इतने बड़े इंसान सभी को सम्मान देते थे। यहां तक की दूसरे लोगों से भी आपका परिचय करवाते थे। कलाम जी साल में दो से तीन सूट सिलवाते थे। एक बार कलाम सर को सूट का साइज तो पसंद आया लेकिन उनका गला दब रहा था। चूंकि सूट गलाबंद था इसलिए गले पर लगा बटन उनको तकलीफ दे रहा था। उन्होंने तब कहा अमन अगर गला ही बंद होगा तो राष्ट्रपति देश को कैसे संबोधित करेगा, देशवासियों से बातें कैसे करेगा। जिसके बाद उनके सूट को ओपन नेक में तब्दील कर दिया। उसके बाद तो उनका सूट कलाम कट के नाम से मशहूर हो गया था। उसके बाद उनके सूट के डिजाइन को कई लोग सिलवाने लगे।

उनकी उपलब्धियों के कारण उन्हें देश में ही नहीं विदेशों में भी कई जगह सम्मानित किया गया। उन्हें दिए गए कुछ सम्मान की सूची —

साल 1981 में उन्हें पदम भूषण दिया गया

साल 1990 में पदम विभूषण

वर्ष 1997 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया

वर्ष 2000 में चेन्नई के अलवर्स रिसर्च सेंटर ने रामानूजम पुरस्कार

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