पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में खुर्जा की खुरचन का भी सुस्वाद शामिल है। खुरचन का नाम सुनकर शायद सभी के जहन में दूध के पतीले की याद हो आती हो, जिसे खुरच कर लोग दूध की पतली परत निकालने की कोशिश करते है। लेकिन उस खुरचन से इतर पुरानी दिल्ली की खुरचन है जिसमें धीमी आंच की सोनापन भी है और दूध वाली खालिस मिठास भी। मीठे का जिक्र आते ही वैसे तो रबड़ी, जलेबी की बात जहन में आती है लेकिन खुरचन की मिठास ने पुरानी दिल्ली में अपनी खास जगह बनाई हुई है। खुर्जा खुरचन के लिए मशहूर है, वैसे ही किनारी बाजार सितारा- गोटे के साथ मीठी खुरचन के लिए मशहूर है। किनारी बाजार में इस दुकान को तलाशने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। छोटी सी दुकान में मिठास से भरा एक ऐसा संसार है जिसमें खुरचन, रबड़ी, रस मलाई, परमल, घिया की बर्फी और भी कई मिठाईयां शामिल है। करीब 96 साल पहले उत्तर प्रदेश से आए गौरी शंकर जैन ने यहां खुरचन बनाना शुरू किया था। तब शायद उन्हें भी नहीं पता था कि इस मिठास को लोग इतना पसंद करेंगे कि किनारी बाजार की मीठी पहचान बन जाएगी। उसके बाद उनके बेटे हजारी लाल जैन ने दुकान संभाली और इस स्वाद के सफर को आगे बढ़ाया। तब से खुर्जा का स्वाद पुरानी दिल्ली के बाशिंदों की मिठास की कमी पूरा कर रहा है। वैसे तो किनारी बाजार में रौनक अमुमन सुबह दस बजे के बाद होती है लेकिन अगर ताजी खुरचन खानी हो तो इस दुकान में सुबह आठ बजे के बाद पहुंचे। उस वक्त आप खुरचन का स्वाद लेने के साथ इसे बनते भी देख सकते हैं। यहां खुरचन तैयार करने वाले सुबह पांच बजे से ही खुरचन बनाने का काम शुरू कर देते हैं। खुरचन तैयार करने वाले हरज्ञान सिंह बताते हैं कि वे उत्तर प्रदेश के खुर्जा से करीब तीस साल पहले यहां आए थे। तब से उन्होंने इसे बनाना औरों को भी सिखाया। उन्होंने बताया कि पांच किलों खुरचन बनाने के लिए करीब 25 से तीस लीटर दूध को कई घंटे खौलाया जाता है। पांच बड़ी कढाई में एक साथ मलाई को लगातार किनारे कर जमाया जाता है जब तक कि सारा दूध मलाई न बन जाए। काफी मेहनत लगती है क्योंकि पांच लोग लगातार दूध से मलाई कढ़ाई के किनारे लगाते रहते हैं। फिर उसे परत दर परत खुरच कर ट्रे पर सजाया जाता है। उसके बाद उस पर बूरा मिलाया जाता है। खोलते हुए दूध की खुशबू से ही खुरचन के दीवाने भी चले आते हैं। कुछ लोगों को गर्मागर्म खुरचन पसंद होती है इसलिए बनते ही दुकानदार यहां खुरचन खरीदने लगते हैं।

इस दुकान के संचालक सुनील बताते हैं कि मुगलकालीन किनारी बाजार की चमक में खुरचन की मिठास भी घुली हुई है। उनके दादा जी के दिल्ली के आने के बाद दादा जी व पिताजी हजारीलाल जैन ने खुरचन की दुकान शुरू की। जब उन्होंने यह बनाना शुरू किया तो लोग हैरत से देखा करते थे लेकिन जब इसका स्वाद चखा गया तो लोगों ने काफी पसंद किया। उसके बाद पिताजी ने कभी मुड़ कर नहीं देखा। आज वे नहीं है लेकिन उनके द्वारा बनाए जाने वाले खुरचन का स्वाद आज भी बरकरार है। सुनील कुमार बताते हैं कि उनके दुकान के बाद कई लोगों ने खुरचन बनाना शुरू किया लेकिन जो बात यहां की खुरचन की है वो और कही नहीं है।

अटल बिहारी वाजपेयी हैं खुरचन के दीवाने

सुनील कुमार बताते हैं कि यहां की खुरचन के दीवानों में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी हैं। वे अकसर यहां से खुरचन मंगवाते थे। उन्हें खुरचन का स्वाद इतना पसंद था कि वर्ष 1999 में पाकिस्तान दौरे के समय उन्होंने यही से खुरचन को पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ के लिए ले गए थे। उसके बाद भी कई देशी विदेशी लोग यहां से खुरचन पैक करा कर ले कर जाते हैं। खासकर शादी ब्याह में लोग स्पेशल बुकिंग भी कराते हैं। खुरचन

किनारी बाजार से थोड़ा आगे चल कर पराठे वाली गली में भी रबड़ी और खुरचन का स्वाद लिया जा सकता है।

रबड़ी बनाने में बना लेते हैं खुरचन

किनारी बाजार के थोड़े आगे पराठे वाली गली में भी खुरचन का स्वाद लिया जा सकता है। मुगलकालीन पराठे वाली दुकान के ठीक सामने की रबड़ी की दुकान है, जिसमें पिछले बीस सालों से खुरचन भी बेची जाती है। लोग पराठों का स्वाद लेने के बाद खुरचन का स्वाद भी लेना पसंद करते हैं। गया प्रसाद मदन मोहन के संचालक अनिल बताते हैं कि 1872 में पराठों का सफर शुरू किया गया तब सामने वाली दुकान में दूध के व्यंजन तैयार किए जाते थे। यहां कुलहडड़ में दूध के साथ रबड़ी रसमलाई भी दी जाती थी, लेकिन 1980 के मध्य में खुरचन की लोकप्रियता को देखते हुए इसे भी मैन्यू में शामिल कर लिया। हालांकि इस मात्रा कम ही रखी गई है। रोजाना दो किलो खुरचन बनाई जाती है। देश के कोने कोने से आए पर्यटक खूब चाव से खुरचन को खाते हैं।

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