शाहजहांनाबाद में अब कांजी वड़ा कार्नर में फिर से रौनक लौटने लगी है। फरवरी के महीने में कुछ नम तो कुछ सूखी फिजाओं में गला भी सूखने लगा है। ऐसे में अगर कोई चांदनी चौक की गलियों से गुजर रहा है तो वे लाल मटकों में रखे राय का चटपटा पानी और उसमें तैरते उड़द दाल के वड़ों का लुत्फ उठा सकता है। कांजी वड़े के स्वाद को दोगुना करने के लिए धनिया, पुदीने, इमली और आमचूर की चटनी भी बनाई जा रही है। इसमें लगने वाले मसाले हर एक कांजी वड़ा वालों को अलग पहचान देते हैं। सर्दियों में लोग गाजर का स्वाद भी लेना पसंद करते हैं। गाजर के साथ कांझी का रंग लाल हो जाता है। लेकिन गर्मियों में पुदीने की चटनी के साथ इसे ज्यादा पसंद किया जाता है। लोगों की मानें तो इस व्यंजन से लोगों का पाचन अच्छा रहता है और जायका ऐसा कि अगर एक बार जबान को लग जाए तो लोग बार- बार इसे मंगवाते हैं।

चांदनी चौक की गलियों में कांजी वड़ा वालों को खोजना इतना मुश्किल भी नहीं है। जिस ठीए पर लाल रंग के तीन चार मटके हो और लोगों की लाइन हो बस उसी ओर चल देना है। चांदनी चौक के पास चाय के दुकान के नीचे एक छोटी सी जगह में दुकान है जिसे श्रवण चलाते हैं। पिछले बीस सालों से वे यहीं अपनी छोटी सी दुकान लगाते हैं। श्री श्याम कांझी वड़ा वाले नाम से मशहूर श्रवण को दोपहर में फुर्सत ही नहीं मिलती है। आस पास के दुकान वालों के इतने आर्डर होते हैं, उपर से राहगीरों की लंबी डिमांड को पूरा करने में व्यस्त श्रवण बताते हैं कि कांजी का पानी सही बनाने के लिए चार पांच दिन लग जाते हैं। राय को पीस कर इसके पानी को चार पांच दिन मटके में छोड़ा जाता है उसके बाद उसमें मसाले और चटनी डाली जाती है। मटके में कांजी बनाने की परंपरा के बारे में वे बताते हैं कि इस चटपटे पानी में बर्फ नहीं डाला जाता, इसे प्राकृतिक तौर पर ही ठंडा बनाया जाता है। इसलिए बहुत गर्मी में भी मटके के कांझी की तासीर ठंढ़ी ही होती है। इसे पीने के लिए बर्फ की जरुरत नहीं होती। गर्मियों में दो दिन में भी कांजी तैयार हो जाता है।

टाउन हाल के पास कांजी वड़ा काफी मशहूर है। वैसे पुरानी दिल्ली में कुछ स्थान पर ही अब कांजी वड़ा बेचा जाता है। इसे बनाने वाले पुराने लोग भी अब कहीं और चले गए हैं तो कुछ इस दुनिया से चल बसे हैं। टाउन हाल के पास कांजी वड़ा बनाने वाले श्याम लाल बताते हैं कि होली में तो खासतौर पर इसे बनवाया जाता है। लेकिन इसका स्वाद और इसके जायकों को दिल्ली वाले ज्यादा बेहतर समझ सकते है। यहां से दिल्ली वाले क्या गए कांझी वड़े वालों के ठिए की वो रौनक ही गायब हो गई। इसलिए अब पहले वाली बात तो नहीं रही। कांझी वड़ा बेचने के साथ लोगों से कुछ बातें भी हो जाया करती थी। कुछ तो रोजाना ठिए पर आ जाते थे, कुछ शाम को घर लेजाने के लिए बर्तन भी साथ ले आया करते थे। लेकिन वो समय अब फिसल गया है। वे बताते हैं कि पहले टाउन हाल और दूसरे दफ्तर होने के कारण कांझी वड़ा का काफी नाम हुआ करता था लेकिन अब टाउन हाल और दूसरे दफ्तर यहां से चले गए हैं। वे बताते हैं कि उन्हें अच्छा लगता है जब कोई पुराना मुरीद यहां कांझी वड़ा खाने आ जाता है।

फतेहपुरी से थोड़ा आगे नया बांस में भी लाल मटके में रोजाना कांझी वड़ा तैयार किया जाता है। प्लास्टिक के ग्लास में इन सभी चटनी के साथ कांझी का पानी डालने के साथ उनमें चार वड़ों का स्वाद का मजा ले रही स्वाति बताती हैं कि वे यहां जब भी खरीददारी करने आती है, तो वो यहां कांझी वड़ा जरुर खाती है। वे बताती हैं कि यह स्वाद सिर्फ यहीं मिलता है। फरवरी के महीने में ही गर्मियों के शुरू होते ही पुरानी दिल्ली के बाशिंदे कांझी वड़ा खाने के लिए यहां आते हैं। यूं तो कांझी वड़ा हर मौसम में खाया- पिया जाता है क्योंकि यह हाजमें के लिए बहुत अच्छा होती है लेकिन इसका गर्मियों में इसके स्वाद में गर्माहट भी घुल जाती है। पुरानी दिल्ली में अब नयाबांस, नॉवेल्टी सिनेमा, पहाड़ गंज, चांदनी चौक, टाउन हाल के पास ही कुछ स्थान पर यह स्वाद बचा है। राय का पानी कुछ खट्टा, कुछ तीखा और कुछ चटपटे पानी के बीच वड़ा का स्वाद।

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