-दिल्ली में कविता सुनकर रोने लगे थे अटल जी
अटल बिहारी वाजपेयी..कोई इनके बेलौस अंदाज का दीवाना था तो कोई इनके हाजिर जवाबी पर फिदा। भाषण के बीच में हाथों की विशेष भावभंगिमा के तो कमोबेश सभी दीवाने थे। हिंदी में मिठास घोलती इनकी वाणी सिर्फ छात्र, नौकरीपेशा ही नहीं साहित्यकार से लेकर विशेषज्ञों या यूं कहें कि हर वर्ग को पसंद आती थी। शायद यही वजह थी कि अटल जी की जब तबियत बिगड़ती तो पूरी दिल्ली बेचैन हो जाती। अटल जी के निधन की खबर सुनकर पूरी दिल्ली रोने लगी। अटल जी का दिल्ली का गहरा लगाव था। दिल्ली उनके दिल में बसती थी। पुरानी दिल्ली के बाजारों में तो उनकी यादों के सैकड़ों किस्से मौजूद है। उनकी जिंदगी के हर महत्वपूर्ण पड़ाव पर पुरानी दिल्ली का साथ मिला। तभी तो जब लाहौर बस सेवा शुरू हुई तो अटल जी अपने साथ पाकिस्तानी राष्ट्रपति को भेंट करने के लिए भी पुरानी दिल्ली से खुर्चन लेकर गए थे। अपनी जिंदगी के फलसफे को उन्होंने अपनी ही कविताओं में कुछ यूं बयां किया था। ये कविता उन्होंने पुरानी दिल्ली में भी सुनाई थी।
जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्त्रम,
इसी तरह चलता रहेगा।
बरसाबुल्ला की कचौड़ी
उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्र्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसम्बर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था। इतिहासकार कहते हैं कि चूंकि ग्वालियर में कचौड़ी, जलेबी का जबरदस्त क्रेज है लिहाजा अटल जी का यह फेवरिट था। जब वो दिल्ली आए तो यहां भी पूड़ी, कचौड़ी और जलेबी ढूंढते थे। इसी दरम्यान एक बार उन्होंने चावड़ी चौक के पास बरसाबुल्ला में कचौड़ी खायी थी। बस फिर क्या था, अटल जी को यहां का स्वाद इतना पसंद आ गया कि वो अक्सर यहां खाने आते थे। बकौल स्मिथ, जब तक अटल जी फेमस नहीं हुए थे वो अकेले टहलते हुए यहां आते एवं पूड़ी कचौड़ी खाते थे। नई दिल्ली से अटल जी दो बार सांसदी का चुनाव लड़े और जीते भी। पुरानी दिल्ली में जायके की दुकानों पर उनका आना जाना लगा ही रहता था। वो खाने पीने के बड़े ही शौकीन थे। कीमा और खिचड़ी वो दोपहर में खाते थे। शाम को फिश राइस खाना पसंद करते थे। उन्हें नई दिल्ली में गोल्फ खेलना पसंद था। लेकिन जानकार हैरानी होगी कि पुरानी दिल्ली के जायके के राम मनोहर लोहिया भी शौकीन थे। अटल जी दिन भर तो धोती कुर्ता पहनते थे लेकिन शाम में पुरानी दिल्ली में पैंट शर्ट पहने दिखते थे।
जब राष्ट्रपति को चखाया पुरानी दिल्ली का जायका
शंकर दयाल शर्मा भारत के नौवें राष्ट्रपति थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश के भोपाल में सन 1918 में हुआ था। जानकार बताते हैं कि शंकर दयाल शर्मा भी कचौड़ी, पूड़ी और जलेबी के जबरदस्त मुरीद थे। भोपाल में तो उन्हें खाते देखना आसान था। लेकिन जब वो दिल्ली आए तो उन्हें कचौड़ी और पूड़ी की कमी खलने लगी। एक बार अटल जी से उनकी मुलाकात हुई तो बातों बातों में कचौड़ी का जिक्र हो चला। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि भोपाल जैसी जलेबी, कचौड़ी कहीं नहीं मिलती है। अटल जी ने उनसे कहा कि पुरानी दिल्ली की कचौड़ी का स्वाद बेमिसाल है। बस फिर क्या था, अटल जी ने उन्हें यहां की जलेबी और कचौड़ी का स्वाद चखाया तो वो भी मुरीद हो गए।
फ्रीडम मूवमेंट का गवाह टाउन हाल
इतिहासकारों की मानें तो अटल जी भारत छोड़ो आंदोलन से ही सक्रिय थे। उन्होंने अपने गांव में भी आंदोलन में हिस्सा लिया था। हालांकि सनद रहे कि इस पर बाद में काफी राजनीतिक शोर शराबा भी हुआ था। बकौल स्मिथ अटल दिल्ली में भी कई बाार आए थे। फ्रीडम मूवमेंट के समय अटल का ठिकाना चांदनी चौक ही था। वो यहां टाउन हाल के पीछे बगीचे में अपने सहकर्मियों संग घंटो बैठ योजनाएं बनाते थे। कई बार अंग्रेजों के डर से चोरी छिपे हुई बैठकों में भी वो शरीक हुए थे। यहां मीटिंग के बाद सभी लोग पराठे वाली गली में जाते थे एवं पराठा खाते थे। उस समय पराठा सिर्फ 2 और 4 आना में मिलता था।
..और जब आधी रात पहुंचे आरके नैय्यर के घर
मोना डार्लिग.
सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है।
..स्मार्ट ब्वाय, लिली डोंट बी सिली और मोना लूट लो सोना।
ये डॉयलाग पढ़कर अब तक आपको अंदाजा तो हो ही गया होगा कि हम किसकी बात कर रहे है। जी हां, हम बालीवुड के दिग्गज कलाकार अजीत की बात कर रहे हैं। अजीत खान हैदराबाद में पैदा हुए थे। लेकिन अटल जी को सालों तक यह पता था कि अजीत का जन्म सहारनपुर उनकी जन्मस्थली है। क्यों कि यहां बड़ी संख्या में खान रहते हैं। एक बार अटल जी की अपने दोस्त से अजीत के जन्म स्थान को लेकर बहस हुई। अटल जी कहते थे कि जन्म सहारनपुर में हुआ है जबकि दोस्त हैदराबाद पर अड़े थे। अटल जी ने काफी देर तक सोचा और अंत में अपने दोस्त को लेकर चल पड़े पुरानी दिल्ली। स्मिथ कहते हैं कि प्रसिद्ध डायरेक्टर आरके नैय्यर उन दिनों पुरानी दिल्ली में ही रहते थे। आधी रात को अटल अपने दोस्त के साथ इनके घर पहुंचे, दरवाजा खटखटाया। नींद में ही आरके नैय्यर बाहर आए और हैरानी से कहा- अटल जी इतनी रात को। क्या हुआ सब खैरियत। अटल ने पूछा- एक बात बताओ अजीत कहां पैदा हुए है। नैय्यर ने कहा कि अजीत के मां-बाप तो सहारनपुर के ही रहने वाले है लेकिन उनकी पैदाइश से पहले अभिभावक हैदराबाद आ गए थे। इस तरह अजीत का जुड़ाव सहारनपुर से हैं लेकिन पैदाइश हैदराबाद की है। स्मिथ कहते हैं कि अटल जी अजीत के इस कदर दीवाने थे कि चांदनी चौक स्थित कुमार सिनेमा हाल में उनकी हर फिल्म देखने जाते थे।
पाकिस्तान पहुंचाया पुरानी दिल्ली का जायका
सन 1999 में भारत पाकिस्तान लाहौर बस सेवा शुरू हुई थी। खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने अटारी से बाघा तक का सफर तय किया था। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि अटल जी अपने साथ पुरानी दिल्ली का जायका भी लेकर गए थे। आरवी स्मिथ कहते हैं कि अटल जी किनारी बाजार का विश्व प्रसिद्ध खुरचन लेकर गए थे। यहां हजारी लाल जैन की प्रसिद्ध खुरचन की दुकान है जिसका स्वाद चखने देश विदेश से लोग आते हैं। दुकान करीब 95 साल पुरानी है। दुकान पर मौजूद कल्याण सिंह तोमर कहते हैं कि तत्कालीन पुरानी दिल्ली के एक विधायक दुकान पर आए थे। उन्होंने 40 किलो खुरचन लिया था।
ज्ञानपीठ पुरस्कार
5 जून 1998 को नई दिल्ली में अली सरदार जाफरी को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बतौर मुख्य अतिथि अटल जी शामिल हुए। उन्होंने कहा कि अली सरदार जाफरी ने 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हो रहा था तो यह दिल्ली है शीर्षक से कविता लिखी है। जिसके बोल है–
मेरी दिल्ली मेरी महबूब दिल्ली
गालिब और मीर की सरजमीं
अब तू कासिब शहंशाहों की दासना
और खुतकाम जागीरदारों लौंडी नहीं है
गैर मुल्कों के सरमाएदारों की मंडी नहीं है
तू हमारी उम्मीदों का मरकज है
ख्वाओं की ताबीर है, आरजुओं की तसवीर है।।
यह कविता पढ़ने के बाद अटल जी ने कहा कि कवि की आंखों में हमारी दिल्ली को लेकर नमी है। उन्होंने अपनी रचनाओं से भारत के भविष्य की एक तस्वीर पेश की है। बाद में अटल जी ने कहा कि मैं उन्हें आश्वासन देना चाहता हूं कि हम कभी जंग की शुरूआत नहीं करेंगे। हम आत्मरक्षा में विश्वास रखते हैं। इस तरह उन्होंने दिल्लीवालों का दिल जीत लिया।
.मैं भुट्टो की गाली नहीं लेता
श्रीराम कालेज आफ कामर्स के छात्रों को आज भी वो दिन याद है जब 1964 में अटल जी कालेज आए थे। तत्कालीन छात्र संगठन के जनरल सेक्रेटरी आत्मराम अग्रवाल कहते हैं कि अटल जी की हाजिर जवाबी ने सभी का दिल छू लिया था। सभी हंसते हंसते लोट पोट हो गए थे। इसी भाषण में कई बार उन्होंने भावुक भी कर दिया था। भाषण की शुरूआत में ही उन्होंने कहा कि भुट्टो मुझे बहुत गाली देतीं हें, लेकिन मैं लेता ही नहीं। उन्होंने छात्रों के राजनीति में शामिल होने समेत कई महत्वपूर्ण विषयों पर विचार रखें।
.जब कनॉट प्लेस में हुआ हमला
सन 1989 में भारत बंद का आह्वान किया गया था। आपातकाल से लेकर 1989 के भारत बंद तक विपक्षियों पर हमले हुए। इसी कड़ी में कनॉट प्लेस में एक सभा का आयोजन किया था। जिसमें अटल जी शामिल हुए थे। उस सभा के साक्षी रहे वर्तमान शाहदरा जिला के नेता राजकुमार शर्मा ने बताया कि ई ब्लॉक से एंबेसी की तरफ अटल जी जुलूस के साथ जा रहे थे। उधर से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का हुजूम आया। दोनों दलों में भिडंत हो गई। किसी ने चाकू से अटल जी पर हमला कर दिया लेकिन राजकुमार शर्मा ने बचा लिया। राजकुमार के हाथ पर चोट के तीन निशान भी बने। बाद में अटल जी ने किसी पर कार्रवाई नहीं करने की बात कहकर विरोधियों का भी दिल जीत लिया था।
एम्स से था पुराना नाता
फरवरी 1990 का समय था। अचानक अटल जी को पता चला कि बाला साहेब देवरस की तबियत बिगड़ गई है। प्रभात झा अपनी पुस्तक हमारे अटल जी में लिखते हैं कि तबियत खराब होने की सूचना मिलते ही वो बेचैन हो गए थे। अटल बार बार उनका हाल चाल पूछते। किस कदर स्नेह था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अटल जी कानपुर पहुंच गए उनका हाल चाल लेने। वहां उन्हें पता चला कि डॉक्टरों ने कहा है एम्स में भर्ती कराने को। अटल जी खुद उनके साथ कानपुर से दिल्ली आए एवं यहां एम्स में सेकेंड फ्लोर पर वीवीआइपी स्यूट का इंतजाम करवाया। प्रभात झा लिखते हैं कि शाम के समय अटल मिलने आए तो मैंने देखा कि वार्ड का हर बार्ड ब्वाय, नर्स, डॉक्टर एवं अन्य कर्मचारी उनसे मिलने आ रहा है। अटल बड़ी सहजता से सबसे मिल रहे थे। कईयों को तो वो नाम लेकर बुला रहे थे। जब उनसे पूछा गया कि आखिर इन लोगों से मित्रवत व्यवहार कैसे और कब बना तो उन्होने कहा कि वो परामर्शदात्री समिति के सदस्य थे। इस कारण अस्पताल कई बार आना जाना पड़ता है। शायद यही वजह है कि सभी कर्मचारी उन्हें सम्मान एवं प्यार देते हैं।