कलकत्ता विश्वविद्यालय से की स्नातक की पढ़ाई

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

babu Jagjivan ram biography: जगजीवन राम, जिन्हें सब प्यार से बाबूजी कहते थे, एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी तथा सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक थे। वह सार्वजनिक जीवन में एक ऐसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय कद्दावर राजनेता के रूप में उभरे जिसने अपना संपूर्ण जीवन देश और देशवासियों के कल्याण हेतु समर्पित कर दिया।

एक राष्ट्रीय नेता, विशिष्ट सांसद, कुशल प्रशासक, केन्द्रीय मंत्री तथा दलित वर्ग के प्रबल पक्षधर के रूप में उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था और उन्होंने पूर्ण प्रतिबद्धता, समर्पण और निष्कपट भाव से भारतीय राजनीति में आधी सदी से अधिक समय की लंबी पारी खेली।

बिहार में हुआ जन्म

5 अप्रैल 1908 को बिहार में जिला शाहाबाद जो अब भोजपुर जिले के नाम से जाना जाता है, के एक छोटे से गांव, चंदवा में जन्मे जगजीवन राम ने आरा शहर के विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करते हुए जगजीवन राम ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से विज्ञान में इन्टर की परीक्षा पास की और बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग

छात्र जीवन के दौरान जगजीवन राम ने कई रविदास सम्मेलनों का सफलतापूर्वक आयोजन किया तथा कलकत्ता के विभिन्न जिलों में गुरु रविदास जयन्ती मनाई। वर्ष 1934 में उन्होंने कलकत्ता में अखिल भारतीय रविदास महासभा की स्थापना की।

समाज सुधार लाने के लिए उन्होंने अन्य संगठनों की स्थापना भी की जिनमें कृषि मजदूरों के लिए खेतिहर मजदूर सभा तथा आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेज लीग शामिल थे। अपने संगठनों के माध्यम से उन्होंने दलित वर्ग के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया। उनका मत था कि दलित नेताओं को केवल समाज सुधार के लिए ही संघर्ष नहीं करना चाहिए, अपितु राजनीतिक प्रतिनिधित्व की भी मांग करनी चाहिए।

स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका

जगजीवन राम ने स्वतंत्रता संग्राम में बहुत सक्रिय भूमिका निभाई। गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन से प्रेरित होकर बाबूजी ने 10 दिसम्बर 1940 को गिरफ्तारी दी। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा सत्याग्रह में भाग लिया।

भारत छोड़ो आंदोलन,

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए ‘भारत छोड़ो आंदोलन” में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए बाबूजी को 19 अगस्त 1942 को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

बाबूजी का राजनीतिक जीवन विशिष्ट, एवं पांच दशक लंबा रहा। एक छात्र कार्यकर्ता तथा स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन आरम्भ कर वह 28 वर्ष की आयु में ही बिहार लेजिस्लेटिव कौंसिल के नामनिर्देशित सदस्य के तौर पर राज्य के विधायक बने।

1937 में वह डिप्रेस्ड क्लासेज लीग के उम्मीदवार के रूप में चुनाव में खड़े हुए और पूर्व मध्य शाहाबाद (ग्रामीण) निर्वाचन क्षेत्र से बिहार लेजिस्लेटिव असेम्बली के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए। जब कांग्रेस सरकार बनी तो बाबूजी को कृषि, सहकारिता उद्योग तथा ग्राम विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। तथापि, 1939 में उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने की ब्रिटिश नीति के मुद्दे पर संपूर्ण मंत्रिमण्डल के साथ त्यागपत्र दे दिया।

33 वर्ष केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहे

जगजीवन राम इसी निर्वाचन क्षेत्र से 1946 के केन्द्रीय चुनाव में पुनः निर्विरोध निर्वाचित हुए तथा 30 अगस्त 1946 को श्रम मंत्री के रूप में अन्तरिम सरकार में शामिल हुए। तत्पश्चात् वह लगभग 33 वर्ष तक केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के सदस्य रहे।

उन्होंने 1937 से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रमुख भूमिका निभाई। स्वतंत्रतापूर्व काल में बाबूजी कांग्रेस में राज्य स्तर पर महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तो उन्हें दल के लिए अहम तथा दल के कार्यकलापों और देश की शासन व्यवस्था के लिए अनिवार्य माना जाने लगा। वह 1940 से 1977 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य तथा 1948 से 1977 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य रहे।

इकलौते 40 साल विधानमंडल के सदस्य

बाबू जगजीवन राम ऐसे एकमात्र राजनेता थे जिन्हें 40 साल के लंबे अरसे तक केन्द्रीय विधानमंडल के सदस्य के रूप में निरन्तर सेवा करने का अद्वितीय सम्मान प्राप्त है। वह अपनी अंतिम सांस तक लोक सभा के सदस्य रहे। पहले आम चुनाव से निरन्तर यह उनका आठवां कार्यकाल था। बाबूजी को भारतीय संसद के इतिहास में सबसे लबे समय तक मंत्री रहने का गौरव प्राप्त है। वह संसदीय कार्य के कुशल संचालन के लिए सुविख्यात थे। उनकी वक्तृत्वकला की संसद में भूरि भूरि प्रशंसा की जाती थी। केन्द्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने लोक सभा में अनेक विधेयक पुरःस्थापित किए तथा संसद में उन्हें पारित करवाया।

स्वातंत्र्योत्तर भारत के निर्माण में बाबूजी का योगदान अविस्मरणीय रहा। वह 1946-52 के दौरान श्रम मंत्री रहे और यही पद उन्होंने 1966-67 में पुनः धारण किया। श्रम मंत्रालय के अतिरिक्त उनके पास संचार (1952-56), रेल (1952-56), परिवहन और संचार (1962-63), खाद्य और कृषि (1967-70), रक्षा (1970-74) तथा कृषि और सिंचाई (1974-77) मंत्रालय रहे। 1977 में श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनने पर बाबू जगजीवन राम कैबिनेट मंत्री के रूप में इसमें शामिल हुए और रक्षा मंत्री का पद धारण किया। वह उप प्रधानमंत्री भी बने और 24 जनवरी 1979 से 28 जुलाई 1979 तक उन्होंने रक्षा मंत्री का पद संभाला।

श्रम मंत्री के रूप में उन्होंने श्रमिकों के कल्याण के लिए उपयुक्त नीतियां और कानून लागू किए। उन्होंने श्रमिकों के लिए कुछ महत्वपूर्ण कानून यथा-न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1946; औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947; भारतीय व्यवसाय संघ (संशोधन) अधिनियम, 1960; बोनस संदाय अधिनियम, 1965 इत्यादि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 और भविष्य निधि अधिनियम, 1952 नामक दो प्रमुख अधिनियम अधिनियमित करके सामाजिक सुरक्षा की नींव रखी।

डाक सुविधाओं को गांवों तक पहुंचाया

जगजीवन राम ने मई 1952 से दिसंबर 1956 तक संचार मंत्रालय का पदभार संभाला। उन्होंने 1962 से अगस्त 1963 तक संचार मंत्रालय और परिवहन मंत्रालय दोनों का पदभार संभाला। हवाई परिवहन का राष्ट्रीयकरण उनके कार्यकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। संचार मंत्री के रूप में उन्होंने डाक सुविधाओं को दूर दराज के गांवों तक पहुंचाया।

बाबूजी ने वायु निगम अधिनियम, 1953 को भी सफलतापूर्वक अधिनियमित कराया जिससे नागरिक विमानन क्षेत्र को बहुत मजबूती मिली और परिणामस्वरूप, उनके परिवहन और संचार मंत्री के पद पर रहते हुए राष्ट्रीय विमान सेवाओं के रूप में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का उद्भव हुआ। जहाजरानी क्षेत्र की भारी संभावनाओं को महसूस करते हुए जगजीवन राम ने इसके बेड़े के विस्तार पर बल दिया और विश्व के सभी महत्वपूर्ण व्यापारिक मागों को इसमें शामिल किया, जिसके परिणामस्वरूप अंततोगत्वा कुल कारगो परिवहन में भारी वृद्धि हुई। तदुपरांत इससे विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला और विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई।

रेलवे का आधुनिकीकरण

रेल मंत्री के रूप में उन्होंने रेलवे का आधुनिकीकरण किया और रेल कर्मचारियों के लिए अनेक कल्याणकारी कदम उठाये तथा पांच वर्ष तक यात्री किराये में कोई बढ़ोत्तरी न करके एक रिकार्ड स्थापित किया।

खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में उन्होंने भीषण सूखे का मुकाबला किया, हरित क्रांति के अग्रदूत बने और भारत को खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बनाया। उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरुस्त कर जनता को खाद्य पदार्थ उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की।

रक्षा मंत्री के रूप में बाबू जगजीवन राम के कुशल और प्रेरणादायी नेतृत्व ने सारे देश और सशस्त्र बलों को पूर्वी पाकिस्तान के गंभीर संकट से निपटने के लिए प्रोत्साहित किया जिसके परिणामस्वरूप एक नया देश बांग्लादेश बना। दिसंबर 1971 में आए भीषण राष्ट्रीय संकट का समय बाबूजी के विश्वास, धैर्य और अपरिमित साहस का परिचायक है। रक्षा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान ही भारत और रूस ने ऐतिहासिक शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे।

दलितों के मसीहा

बाबू जगजीवन राम ने एक ऐसे नए युग का सूत्रपात किया जो वंचितों और दलितों के दृढ़ निश्चय, समानता और सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण का प्रतीक था। संविधान सभा के सदस्य के रूप में, उन्होंने वंचित वर्ग के हितों की रक्षा करने वाले उपबंधों के नियमन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। सरकारी नौकरियों में आरक्षण द्वारा सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के समग्र विकास हेतु राज्य के हस्तक्षेप और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विधानमंडलों में सीटों के आरक्षण के प्रावधान की सफलता का श्रेय बाबू जगजीवन राम जैसे नेताओं को जाता है। सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 के निर्माण का श्रेय उन्हीं को जाता है। दबे कुचले लोगों के कल्याणार्थ उनके दृढ़ समर्थन और निरन्तर संघर्षरत रहने की वजह से उन्हें ठीक ही ‘दलितों का मसीहा’ कहा गया है।

बाबूजी ने मानव गरिमा और समानता का संदेश देते हुए 6 जुलाई 1986 को अन्तिम सांस ली। वह एक ऐसे राष्ट्रीय नेता थे जिन्होंने महात्मा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक कई पीढ़ियों के साथ राजनीतिक जीवन बिताया और एक सत्यनिष्ठ और समर्पित राजनेता, प्रतिबद्ध जन सेवक, वीर स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, क्रांतिकारी और महान मानवतावादी की विरासत छोड़ा।

उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कहा था, “श्री जगजीवन राम सभी पिछड़े वर्गों और समाज के अब तक उपेक्षित रहे वर्गों की आशा और आकांक्षाओं के प्रतीक बने रहेंगे। गरीबों और दलितों का उत्थान ही जगजीवन रामजी का जुनून था। वह महान लोकतंत्रवादी और धर्मनिरपेक्षवादी थे और अनुभवी प्रशासक के रूप में उन्होंने लंबे समय तक अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखी तथा देश के प्रति समर्पित सेवा का प्रतिमान प्रस्तुत किया”।

भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन ने कहा था “जगजीवन राम’ के निधन से देश ने एक साहसी स्वतंत्रता सेनानी, कुशल प्रशासक और उत्कृष्ट राजनेता खो दिया है”।

भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने कहा था “वह पहले एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में और फिर आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में अपनी पीढ़ी के महानतम लोगों में एक थे। उनके व्यक्तित्व, उनकी अभिव्यक्ति निपुणता, उनके दुर्जेय राजनीतिक और संसदीय कौशल तथा उनकी प्रशासनिक क्षमता के बल पर ही हम भारत के निर्माण, गठन, समाज के विभिन्न तबकों को साथ साथ लाने और देश को एक सूत्र में पिरोने तथा सुदृढ़ बनाने का कार्य कर सके “

पुरस्कार और सम्मान

1971 के युद्ध में बाबू जगजीवन राम के अमूल्य योगदान के लिए उन्हें बांग्लादेश सरकार ने वर्ष 2012 में मरणोपरांत ‘फ्रेंड्स ऑफ लिबरेशन वार ऑनर’ पुरस्कार से सम्मानित किया।

Q&A

Q1: बाबू जगजीवन राम कौन थे, और उनका भारतीय राजनीति में क्या योगदान था?

A1: बाबू जगजीवन राम भारतीय राजनीति के महान नेता थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। वे दलित अधिकारों के प्रबल समर्थक थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे। बाद में, वे भारत के उप प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे। बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक न्याय और दलित समुदाय की स्थिति सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण कानूनों की नींव रखी, जिनसे समाज में समानता बढ़ी।

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Q2: बाबू जगजीवन राम ने दलित अधिकारों के लिए क्या काम किया?

A2: बाबू जगजीवन राम ने दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और समाज में उनके हक के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। वे भारतीय संविधान में दलितों को शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के समर्थक थे। उनके प्रयासों के कारण कई सुधारों का कार्यान्वयन हुआ, जिससे दलित समुदाय को समान अवसर मिल सके। वे देश में सामाजिक समानता लाने के लिए प्रतिबद्ध थे।

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Q3: बाबू जगजीवन राम के संघर्ष और राजनीतिक जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य बताएं?

A3: बाबू जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन भारतीय राजनीति में एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में देखा जाता है। वे 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। बाद में, उन्होंने भारतीय राजनीति में दलित समुदाय के लिए विशेष अधिकारों की मांग की और कई बार केंद्रीय मंत्री पद पर कार्य किया। उनका उद्देश्य भारतीय समाज में जातिवाद और भेदभाव को समाप्त करना था, और इसके लिए उन्होंने कई सुधारात्मक उपाय किए।

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Q4: बाबू जगजीवन राम की विरासत आज भी क्यों महत्वपूर्ण है?

A4: बाबू जगजीवन राम की विरासत आज भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय, समानता और दलित अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद की। उनके द्वारा किए गए कार्यों का प्रभाव आज भी देखा जाता है, जैसे कि दलितों के लिए आरक्षण, शिक्षा में समान अवसर और सामाजिक व्यवस्था में सुधार। उनका योगदान भारतीय समाज को एक नए दिशा देने में सहायक रहा है।

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Q5: बाबू जगजीवन राम के जीवन और संघर्ष पर कोई किताब या दस्तावेज़ है?

A5: हां, बाबू जगजीवन राम के जीवन और संघर्ष पर कई किताबें और दस्तावेज़ उपलब्ध हैं। इन पुस्तकों में उनकी राजनीति, उनके संघर्ष और उनके द्वारा किए गए सुधारों का विस्तृत विवरण मिलता है। उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए इन किताबों का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये उनकी सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को और स्पष्ट करती हैं।

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