swami shailendra saraswati
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साधकों के सवाल के जवाब के कम्र में स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने जिंदगी की उलझन सुलझाने का तरीका बताया

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली। 

स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती से एक साधक से सवाल पूछा। मन को शांत कैसे करें? जवाब में स्वामी जी ने बताया कि यह सवाल हर उस इंसान का है जो बेचैन मन में विचारों के शोरगुल और भावनाओं की उथल-पुथल से जूझ रहा है। हम लगातार अपने चंचल मन को स्थिर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या यह कोशिश करना ही गलत है?

आप बिल्कुल सही सोचते हैं: मन का स्वभाव ही चंचल है। जैसे सूरज का स्वभाव गर्म होना है और बादलों का स्वभाव बरसना है, वैसे ही मन का स्वभाव कभी यहाँ, कभी वहाँ भागना है। आप सूरज को ठंडा नहीं कर सकते, न ही बारिश को रोक सकते हैं; लेकिन आप धूप से छाया में आ सकते हैं और बारिश से बचने के लिए छाता खोल सकते हैं।

यही सिद्धांत आपके मन पर लागू होता है। मन को स्थिर करने की ज़िद छोड़ें, और इसकी जगह उस स्थान से हटना (Shift) सीखें जहाँ बेचैनी है। हम सिर्फ मन नहीं हैं। हमारे पास चार आयाम हैं, और अगर हम अपनी ऊर्जा को मन (जो चंचल है) से हटाकर दूसरे स्थिर आयामों पर ले जाते हैं, तो मन अपने आप शांत हो जाता है।

हमारे अस्तित्व के चार आयाम (The Four Dimensions of Being)

हमारे होने के चार अलग-अलग पहलू हैं, जिन्हें समझना मन की शांति के लिए जरूरी है:

आयाम (Dimension)प्रकृति (Nature)उदाहरण (Example)
1. तन (Physical Body)स्थिरहमारी ज्ञानेंद्रियां और कर्मेंद्रियां।
2. मन (Mind)चंचलविचारों का अंतहीन प्रवाह, शोरगुल।
3. हृदय (Heart)चंचलभावनाओं का उतार-चढ़ाव (प्रेम, क्रोध, घृणा)।
4. चेतना/आत्मा (Consciousness)स्थिरभीतर का साक्षी भाव, जो सब देखता है।

मन और हृदय (विचार और भावनाएं) हमेशा बदलते रहते हैं। आप आज जिन्हें मित्र कहते हैं, वे कल शत्रु बन सकते हैं, क्योंकि भावनाएं आपके नियंत्रण में नहीं हैं। इसलिए, हमें अपनी जीवन ऊर्जा को चंचल आयामों (मन और हृदय) से हटाकर स्थिर आयामों (तन या चेतना) पर केंद्रित करना होगा। ऊर्जा की दिशा बदलते ही मन अपने आप शांत हो जाएगा।

मन को शांत करने के दो अचूक उपाय (Two Ways to Achieve Mental Peace)

चंचल मन को शांत करने का अर्थ है अपनी ऊर्जा (Life Energy) को विचारों और भावनाओं के टकराव से बाहर निकालना। यहाँ दो मुख्य दिशाएं हैं जहाँ आप अपनी ऊर्जा को डाइवर्ट कर सकते हैं:

उपाय 1: तन के तल पर आना – इंद्रियों की संवेदनशीलता बढ़ाना (Shifting to the Body)

ध्यान का यह उपाय सबसे सरल है, जहाँ आप अपनी सारी ऊर्जा वर्तमान क्षण और शारीरिक अनुभवों पर केंद्रित करते हैं। जब ऊर्जा विचारों से हटकर तन पर केंद्रित हो जाती है, तो विचारों को चलाने के लिए शक्ति नहीं बचती।

1. वर्तमान में जिएँ: अपनी कर्मेंद्रियों पर होश लाएँ

  • सजग होकर चलना (Mindful Walking): जब आप चल रहे हों, तो अपने पैरों की गतिविधि पर ध्यान दें। महसूस करें कि पैर उठा, हवा में आया, नीचे गया और जमीन को छुआ। आगे-पीछे का सब भूल जाएं और बस चलने की क्रिया में सजग हों।
  • स्नान और स्पर्श: स्नान करते समय पानी की बूंदों को शरीर पर महसूस करें। तौलिये से बदन पोंछते समय स्पर्श पर ध्यान दें।

2. ज्ञानेंद्रियों के प्रति संवेदनशील बनें

  • स्वाद और सुगंध: जब आप भोजन या चाय पी रहे हों, तो जल्दबाज़ी न करें। धीमी, गहरी साँस लें। चाय की खुशबू और स्वाद को महसूस करें। जब तक आप स्वाद का आनंद ले रहे हैं, आप मन से दूर हट गए हैं।
  • दृष्टि और श्रवण (Sight and Sound): सुबह की गुनगुनी धूप को चेहरे पर पड़ते हुए महसूस करें। पंछियों की आवाज़ या अन्य ध्वनियों को केवल गौर से सुनें, बिना किसी निर्णय के।

विज्ञान: यह क्रिया आपके होश (Awareness) को सीधे शारीरिक क्रिया पर केंद्रित करती है। जिस क्षण आपकी सारी ऊर्जा आपके होश में लग जाती है, मन की चंचलता के लिए शक्ति कम हो जाती है, और चित्त शांत हो जाता है।

उपाय 2: चेतना के भीतर रमना – साक्षी भाव में विश्राम (Shifting to Consciousness)

यह अभ्यास आपकी अंतरंग और गहरी यात्रा है। यह मन और हृदय की उठापटक से एकदम दूर, आपके अस्तित्व के केंद्र में ले जाता है।

1. दृष्टा या साक्षी बनें

  • विचारों या भावनाओं को देखें, लेकिन उनसे जुड़ें नहीं। वे आते-जाते रहेंगे, जैसे बादलों का आना-जाना। आप बस एक शांत दर्शक (Witness) या साक्षी बनें। विचार आपके हैं, आप विचार नहीं हैं। यह दूरी बनाना ही परम शांति की ओर पहला कदम है।
  • यह ठीक वैसे ही है जैसे आप नदी के किनारे बैठकर उसके प्रवाह को देखते हैं। आप पानी को छूते नहीं हैं, बस देखते हैं।

2. भीतर के चैतन्य में प्रवेश

  • जिन लोगों को ध्यान का अनुभव है, वे भीतर की चेतना में जाएं। कुछ ध्यान पद्धतियों में यह ओंकार की ध्वनि या आंतरिक प्रकाश (आलोक) का अनुभव होता है।
  • जब आप भीतर के इस परम शांत और स्थिर केंद्र पर केंद्रित होते हैं, तो बाहरी दुनिया के विचार और भावनाओं का शोर আপনা आप थम जाता है। ऊर्जा का प्रवाह विचारों से हटकर चेतना में लग जाता है, जिससे समाधि जैसी शांति छा जाती है।

याद रखें: आप मन से लड़कर कभी नहीं जीत सकते, आपको बस वहाँ से हटना है। ठीक वैसे ही, जैसे नदी के किनारे से हटकर ऊंचे स्थान पर जाने पर बाढ़ आपको परेशान नहीं कर सकती। जगह बदलें, और आपका जीवन परम आनंद से भर जाएगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q1. मन चंचल क्यों होता है? क्या इसे स्थिर करना संभव नहीं है?

A: मन का मूल स्वभाव ही चंचल होना है, यह लगातार चलता रहता है। इसे जबरदस्ती स्थिर करना असंभव है, क्योंकि यह इसकी प्राकृतिक ऊर्जा है। प्रयास मन को स्थिर करने के बजाय ऊर्जा को डाइवर्ट करने पर होना चाहिए।

Q2. ‘शिफ्टकरने का मतलब क्या है?

A: शिफ्ट करने का मतलब है अपनी जीवन ऊर्जा (Vital Force) को विचारों और भावनाओं के केंद्र (मन और हृदय) से हटाकर अधिक स्थिर आयामों (तन या चेतना) पर केंद्रित करना। उदाहरण के लिए, जब विचार परेशान करें, तो चाय के स्वाद पर ध्यान केंद्रित करना एक ‘शिफ्ट’ है।

Q3. अगर मुझे ध्यान या चैतन्य का ज्ञान न हो तो मैं क्या करूँ?

A: यदि आपको चैतन्य का ज्ञान नहीं है, तो आप पहले उपाय पर ध्यान दें: तन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाएँ। चलते समय सिर्फ चलें, खाते समय सिर्फ खाएँ, और अपने इंद्रिय अनुभवों को पूरी जागरूकता से महसूस करें। यहीं से मन शांत होना शुरू हो जाएगा।

Q4. क्या विचारों को दबाना (Suppress) सही है?

A: नहीं। विचारों को दबाना उन्हें और अधिक शक्ति देता है। दबाने के बजाय, उन्हें देखें (साक्षी बनें) या अपनी ऊर्जा को उनसे हटाकर (शिफ्ट करके) किसी अन्य क्रिया पर लगा दें।

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