हुमायूं की मृत्यु 24 जनवरी, 1556 ई. को पुराने किले में हुई और उसे किलोखड़ी गांव में दफन किया गया, जहां उसका मकबरा है। यह दिल्ली से पांच मील मथुरा रोड पर बाएं हाथ पर बना हुआ है। हाजी बेगम ने, जो हुमायूं की वफादार बीवी और अकबर की मां थी, इसका बुनियाद पत्थर रखा था, जो 1565 ई. में बनकर तैयार हुआ। कुछ का ख्याल है कि यह अकबर के राज्य काल के चौदहवें वर्ष 1569 ई. में बनकर तैयार हुआ। इस पर 15 लाख रुपये खर्च आए, जिसका बड़ा भाग अकबर ने अपने पास से दिया था।

हुमायूं के मकबरे को तैमूर खानदान का कब्रिस्तान समझना चाहिए क्योंकि यद्यपि उसके बाद के तीन बादशाह और जगह दफन किए गए, मगर किसी और मकबरे में इतनी बड़ी संख्या में मुगल खानदान के लोग दफनाए नहीं गए, जितने इसमें हुमायूं की कब्र के साथ उसकी बीवी हाजी बेगम की कब्र है, जो उसके कष्ट के दिनों में उसकी साथिन रही। यहीं दाराशिकोह की बेसिर लाश दफन है, जो शाहजहां का लायक, बहादुर लेकिन बदकिस्मत लड़का था। वह औरंगजेब से पराजित हुआ और इसी मकबरे के पास उसका सिर काटा गया।

यहीं बादशाह. मोहम्मद आजम शाह दफन है, जो औरंगजेब का बहादुर, लेकिन कमअकल लड़का था और जो अपने भाई से लड़ाई में आगरा में पराजित हुआ। यहीं बादशाह जहांदार शाह दफन है, जो औरंगजेब का पोता था। फिर उसका बदनसीब जानशीन फर्रुखसियर भी यहीं दफन हैं, जिसको उसके वजीर आजम ने जहर खिलाया। यहीं नौजवान रफीउद्दीन दरजा और रफीउद्दौला दफन हैं, जो बादशाह बने भी, मगर तीन-तीन महीने बाद तख्त से उतर गए। अंत में यहां आलमगीर सानी दफन किया गया, जो अपने वजीर इमदादुलमुल्क के इशारे से कत्ल किया गया था। इनके अतिरिक्त बहुत-सी शहजादियां और शहजादे इस मकबरे में अपने बुजुर्गो के नजदीक सोए हुए हैं, जिनके नाम इतिहास में दर्ज हैं।

इसी मकबरे में दिल्ली के आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह ने 1857 ई. के गदर के बाद ब्रिटिश हुकूमत का कैदी बनने के लिए अपने को अंग्रेजों के हवाले किया। यहां बहादुर शाह के तीन लड़के- मिर्जा मुगल, मिर्जा खिघा सुलतान और मिर्जा अदुहका और भतीजे गिरफ्तार हुए थे, जिनको इस मकबरे के सामने ही तुरंत मुकदमे का फैसला सुनाकर कत्ल कर दिया गया था।

मकबरा यमुना के किनारे एक बहुत बड़े अहाते में बना हुआ है जिसमें दाखिल होने के दो बहुत आलीशान गुंबददार दरवाजे हैं- एक पश्चिम में और दूसरा दक्षिण में है। पश्चिम द्वार में बहुत अच्छे-अच्छे छोटे मकान बने हुए हैं। दरवाजे से हर मकान में जाने का जुदा-जुदा रास्ता है और सुंदर सीढ़ियां बनी हुई हैं। दक्षिणी द्वार में यद्यपि मकान नहीं हैं, लेकिन चबूतरे हैं। दरवाजे लाल पत्थर के बने हुए हैं।

इस मकबरे की फसील चूने-पत्थर की बनी हुई है। अहाते की पूर्वी दीवार के बीच में एक दालान है, जिसमें आठ दर और एक दरवाजा दरिया की तरफ है। उत्तरी दीवार के बीचोंबीच सात फुट ऊंचे चबूतरे पर छोटी-सी इमारत बनी हुई है, जिसके बीच में एक महराबदार कमरा है। इसमें बड़े-बड़े बुर्जनुमा कुएं हैं, जिनसे दीवार के पीछे पानी लाकर नहरों में दौड़ाया जाता था और बागों में पानी दिया जाता था। यह नहर 1824 ई. तक जारी थी। दो दरवाजे खारे के पत्थर के बने हुए हैं, जिनमें लाल पत्थर के बेल-बूटे और पत्तियां हैं जगह-जगह संगमरमर भी लगा हुआ है। दक्षिण द्वार को आरामगाह बना दिया गया है।

बाग के बीचोंबीच एक पक्का पत्थर का चबूतरा पांच फुट ऊंचा और सौ गज मुरब्बा बना हुआ है, जिनके कोने काटकर गोल कर दिए गए हैं। इस चबूतरे के किनारे से 23 फुट पर एक पटा हुआ चबूतरा, 20 फुट ऊंचा और 85 फुट मुरब्बा है। इसके कोने भी गोल बनाए गए हैं। इस पटे हुए चबूतरे के चारों ओर एक-एक महराबदार दरवाजा है। इन दरवाजों से कोठरियों में जाते हैं, जिनमें कब्रें हैं। इसी चबूतरे के चारों लंबे अजला में सत्रह सत्रह दर हैं। नौवें दर में, जो बीच में है, एक जीना है जो इस चबूतरे पर जाकर निकलता है। पहले और दूसरे चबूतरों पर चौकों का फर्श है। ऊपर के चबूतरे के चारों तरफ लाल पत्थर की जालियों का कटारा था, लेकिन 1857 ई. के गदर में दरिया की ओर के कटघरों को बागियों ने तोड़-फोड़कर बराबर कर दिया। नीचे के जो कमरे हैं, उन सबके दरवाजे महराबदार हैं, जिनमें जगह-जगह संगमरमर की सिलें और पट्टियां लगी हुई हैं।

ऊपर वाले चबूतरे के तहखाने के बीच में हुमायूं बादशाह और उनकी बेगम साहिबा, दूधपीती शहजादी और अन्य राज्य परिवार के लोगों की असल कब्रें हैं और चबूतरे के ऊपर कब्रों के तावीज बनाए गए हैं। सबसे अधिक सुंदर हुमायूँ बादशाह और उनकी बेगम साहिबा की कब्रें हैं। इन कब्रों में से कुछ गुंबद के अंदर हैं, कुछ चबूतरे पर जो कब्रें गुंबद के नीचे हैं, उनके तावीज सर्वोत्तम संगमरमर के बहुत सुंदर और देखने योग्य बेल-बूटों और मीनाकारी से सज्जित हैं। ख्याल है कि अकबर के बाद हुमायूँ की कब्र के पास अर्थात गुंबद के अंदर कोई दफन नहीं किया गया।

असली मकबरा एक ऊंचा मुरब्बा गुंबद है, जिसके ऊपर कलस लगा हुआ है। गुंबद की ऊंचाई 140 फुट है। बीच के कमरे में ऊपर-तले दो सिलसिले खिड़कियों के हैं। ऊपर वाली खिड़कियां नीचे वाली खिड़कियाँ से कुछ छोटी हैं। गुंबद के अंदर तरह-तरह के संगमरमर के पत्थरों का फर्श है। गुंबद के बीचोंबीच एक सुनहरी फुंदना लटक रहा था, जिसका जाटों ने बंदूकों से मार-मारकर उड़ा दिया।

हुमायूँ की कब का तावीज संगमरमर के बहुत साफ चमकदार छह इंच ऊंचे चबूतरे पर है। चबूतरे पर संगमूसा की पट्टियां पास-पास पड़ी हैं। इस तमाम कमरे में संगमरमर का फर्श है। गुंबद की छत पर किसी जमाने में एक बहुत बड़ा विद्यालय था। मकबरे के ऊपरी भाग में भूल-भुलैयां बनी हुई है, जिसमें जाकर आदमी उलझ जाता है और उतरने का रास्ता नहीं मिलता। कहा जाता हैं कि हाजी बेगम ने मक्का से आकर खुद इस मकबरे को अपनी देख-रेख में लिया था और उनकी मृत्यु के बाद उत्तर-पश्चिमी कोने में, जहां उनकी दूधपीती बच्ची दफन की हुई थी, वह स्वयं भी दफन हुई। असल मकबरे में सिर्फ तीन कब्रें हैं और दक्षिण तथा पश्चिम के हुजरों में दो कब्रें हैं। इन सब कब्रों के तावीज संगमरमर के हैं। मकबरे के पश्चिम में चबूतरे पर 11 कब्रें हैं, जिनमें से पांच के तावीज संगमरमर के हैं और बाकी चूने और गच के। चबूतरे के दूसरी ओर केवल एक ही कब्र है, जिस पर संगी बेगम- पत्नी आलमगीर द्वितीय लिखा है। जिन कब्रों पर कुछ नाम नहीं है, उन पर कुरान की आयतें लिखी हैं। मकबरे के उत्तर की ओर सीढ़ियों के पास वाली कब्र लोग आम तौर से दाराशिकोह की बतलाते हैं और उसी ओर मुईउद्दीन जहांदार शाह और आलमगीर सानी की कब्रें भी हैं। मकबरा आठ फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है, जो 76 फुट मुरब्बा है और जिस पर लाल पत्थर जुड़ा हुआ है। खुद मकबरा 50 फुट मुरब्बा है और चबूतरे से करीब 72 फुट ऊंचा है। मकबरे की छत पर जाने का रास्ता नहीं है, चूंकि कोई जीना नहीं। मकबरे के अंदर की माप 24 फुट मुरब्बा है और अंदर की दीवारों पर लाल पत्थर लगा है। मकबरे का एक ही द्वार है, जो दक्षिण में है। मकबरे में संगमरमर की दो कब्रें हैं— एक 7 × 2.5×13 और दूसरी 2.5 x 1.5 । मकबरे में बहुत बड़ा बाग है। इसकी देखभाल अच्छी होती है।

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