दिल्ली (Delhi) और महाराष्ट्र (Maharastra) के इतिहास के कई पन्ने एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। दिल्ली में महाराष्ट्र की कला-संस्कृति के संरक्षण के लिए कई संस्थाएं तत्पर हैं। इन्हीं में से एक है महाराष्ट्रीय स्नेह संवर्धक समाज। 2019 में इस संस्था ने अपनी स्थापना के सौ साल पूरे किए। समाज से जुड़े विलास कनकूटे कहते हैं कि 23 दिसंबर 1919 में इसकी स्थापना हुई थी। जीआईपी रेलवे का आफिस उसी समय मुंबई से दिल्ली स्थानांतरित हुआ था। चूंकि आफिस नया बाजार में ही था इसलिए इसमें काम करने वाले महाराष्टि्रयन भी यहां आए। कुछ समय के अंतराल में 10-15 लोगों ने मिलकर महाराष्ट्रीयन स्नेह संवर्धक समाज की स्थापना की। ये सभी किनारी बाजार (kinari bazaar), खारी बावली (khari baoli), लाहौरी गेट (lahori gate), चांदनी चौक (chandani chowk) में ही रहते थे। इस तरह समाज के लोगों के बीच प्रगाढ़ता बढ़ती चली गई।
चूंकि अधिकतर लोग एक ही प्रोफेशन में थे तो मिलना, जुलना भी आसान था। हालांकि अब लोग अलग अलग जगहों पर जाकर शिफ्ट हो गए हैं लेकिन कार्यक्रम या फिर मासिक बैठक के बहाने मुलाकात हो ही जाती है। उस समय नया बाजार वाले आफिस में महाराष्ट्र से आने वाले गेस्ट वगैरह भी ठहरते थे। समाज की स्थापना के समय का मोटो हम सब एक साथ आगे बढ़े था। जो आज भी सबको साथ लेकर ही चलने की बात करता है। आजादी के बाद सन 1951 में समाज का कार्यक्षेत्र पहाड़गंज स्थानांतरित हुआ। www.theyoungistaan.com की यह खास पेशकश है।
लोकमान्य तिलक भी ठहरे
बताते हैं कि एक दफा लोकमान्य तिलक (lokmanya tilak) जब दिल्ली आए थे तो यहीं रूके थे। उन्हें सुनने तब समाज के सभी सदस्य आए थे। उन्होंने कहा था कि हम दिल्ली को महाराष्ट्र नहीं ले जा सकते। इसलिए महाराष्ट्र को ही दिल्ली लाते हैं। महाराष्ट्र की कला, संस्कृति तभी से दिल्ली को सुशोभित कर रही है। पदाधिकारी बताते हैं कि लोकमान्य के शब्दों पर आज तक अमल कर रहे हैं।
महिला विंग
समाज की एक महिला विंग भी है, जिसका नाम शारदा संघ है। महिला विंग में कभी 17 से ज्यादा सदस्य थी। एक समय महिला विंग बहहुत ही सक्रिय थी। उन दिनों यूनिक प्रोग्राम उद्योग मंदिर प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। महिलाएं स्नैक्स, पापड़, अचार समेत अन्य महाराष्ट्रीयन खाद्य उत्पाद बनाती थी। इन उत्पादों को डोर टू डोर बेचा जाता था। कहा जाता है कि उन दिनों महाराष्ट्र सरकार के जो भी सांस्कृतिक कार्यक्रम या बैठक दिल्ली में होते थे उसमें खाना यहीं से जाता था। वर्तमान में दोबारा महिला विंग सक्रिय हो चुकी है। ये सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की कमान सम्हालती है। गुडी पहवा, चैत्र माह, गणेश उत्सव, शरद पूर्णिमा धूमधाम से मनाया जाता है।
शिक्षा एवं कला को बढ़ावा
समाज के 100 साल के सफर में पहाड़गंज बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है। आश्रम बाग इलाके में स्थित यह स्कूल 1952 में खुला था। शुरूआत में समाज नूतन पाठशाला चलाता था जो आगे चलकर सीनियर सेकेंडरी स्कूल में तब्दील हो गया। मुख्य भवन से चंद कदम की दूरी पर ही यह शिक्षण संस्थान है। शुरूआत में इसमें 15 से 20 छात्र पढ़ते थे। वर्तमान में 1500 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण भी इसी स्कूल से पढ़े हैं। सन 1972 में महाराष्ट्रीयन कल्चर की डिमांड के चलते एजुकेशन के साथ साथ एक आडिटोरियम भी बनाया गया। यह महाराष्ट्र रंगायन थियेटर ग्रुप चलाता है। यह आडिटोरियम सिरीफोर्ट आडिटोरियम के बाद दिल्ली का दूसरा सबसे बड़ा आडिटोरियम है। इसमें 748 लोगों के बैठने की क्षमता है।
42 से अधिक महाराष्ट्र संगठन
पदाधिकारियों की मानें तो स्नेह संवर्धक समाज की शुरूआत 15-20 लोगों ने मिलकर की थी। लेकिन समय के साथ लोग अलग अलग हिस्से में बस गए। सदस्य गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा में जाकर बस गए। वहां उन्होंने महाराष्ट्र की कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए समाज बनाया। दिल्ली-एनसीआर में इस समय 42 से अधिक समाज स्थापित हो चुके हैं।