जब इंदिरा गांधी (Indira gandhi) ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी तो उन्होेंने कहा था कि वो एक समाजवादी समाज के निर्माण के लिए काम करेंगी। लेकिन अपनी पहली ही विदेश यात्रा के लिए उन्होंने पूंजीवादी देश अमेरिका (America) चुना। आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए अपनी वापसी यात्रा में उन्होंने लंदन (London) और मास्को (Moscow) को भी शामिल किया।

इंदिरा गांधी आर्थिक परेशानियों से इतनी ज्यादा घिरी हुई थीं कि कुछ और सोच पाना मुश्किल था। उन्होंने रुपए का अवमूल्यन करने के लिए जैसे ही अपनी रजामंदी जाहिर की, अमरीका के सभी दरवाजे झट से खुल गए। राष्ट्रपति जॉनसन (president johnson) ने अपने-आपको उनका संरक्षक घोषित कर दिया। इतना ही नहीं, इन्दिरा गांधी के साथ बातचीत के बाद उन्होंने भारतीय दूतावास में रुककर उनके साथ खाना भी खाया, जो बहुत दुर्लभ बात थी। www.theyoungistaan.com

रूस ने इस दौरे के बारे में कुछ भी सोचा हो, पर भारतीय कम्युनिस्ट इससे खुश नहीं थे। उन्होंने अब तक इन्दिरा गांधी का विरोध नहीं किया था, लेकिन अब वे उन पर खुलकर छींटाकशी करने लगे और कहने लगे कि जॉनसन ने उन्हें अमरीका आने का ‘हुक्म दिया था।’ खुद कांग्रेस पार्टी में भी तब तक उनका दबदबा स्थापित नहीं हुआ था, इसलिए पार्टी भी ‘अमरीकी धौंस’ की दुहाई देने लगी।

इन्दिरा गांधी को कांग्रेस को एक तरह का भरोसा दिलाना पड़ा। उन्होंने बड़े अजीब शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा था, “हम इसके (अमरीकी मदद के बिना रह सकते हैं और रहेंगे, और हम किसी भी हालत में इसके लिए अपने आपको नीचे नहीं गिराएंगे।” इन्दिरा गांधी ने अवमूल्यन का बचाव करते हुए कहा कि शास्त्री सैद्धान्तिक तौर पर इसके लिए राजी हो चुके थे और विश्व बैंक से मदद और ऋण का पैकेज स्वीकार कर चुके थे। अवमूल्यन के बाद अमरीकी व्यवसायियों के बयानों की बाढ़-सी आ गई।

आम धारणा यह थी कि अमरीका के साथ जुड़ने के लिए भारत को अपनी समाजवादी नीतियां छोड़नी पड़ेंगी। इस तरह की टिप्पणियों से आहत इन्दिरा गांधी ने सफाई दी कि विदेशी मदद से समाजवाद लाने से उसकी अहमियत कम नहीं हो जाती। उनका कहना था कि विदेशी मदद को ठुकराने से आम आदमी को तकलीफ उठानी पड़ सकती थी।

अवमूल्यन के कारण कामराज को मोरारजी देसाई को केबिनेट में लाना पड़ा। हालांकि अवमूल्यन से जुड़े कड़े प्रहारों को सफलतापूर्वक झेलने के बाद इन्दिरा गांधी ने राष्ट्रपति भवन के क्षेत्र में स्थित प्रेजीडेंट एस्टेट में प्रधानमंत्री के लिए एक नया निवास स्थान बनाने का विचार किया। लेकिन बाद में वे इस विचार को त्यागकर तीन मूर्ति भवन में चली गई। तब तक प्रधानमंत्री के लिए नए निवास स्थान का प्रस्ताव केबिनेट के पास पहुंच चुका था। वे खुद केबिनेट मीटिंग में शामिल नहीं हुई। इस बीच उप-प्रधानमंत्री बन चुके मोरारजी देसाई ने कहा था कि इन्दिरा जी के कहने पर ही उन्होंने इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया था। किसी समय नेहरू के मन में भी इसी तरह का विचार आया था। वे अब राजपथ कही जानेवाली सड़क के दोनों तरफ मंत्रियों के लिए फ्लैट निर्मित करना चाहते थे। लेकिन अपने केबिनेट साथियों की सलाह के बाद उन्होंने यह विचार छोड़ दिया था।

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