जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर एन.एन. वोहरा ने कहा कि हमें क्षेत्रीय भाषाओं की पुस्तकों का अनुवाद करके क्षेत्रीय भाषाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहिए, ताकि एक भाषा की पुस्तकें दूसरी भाषा के उन पाठकों तक भी पहुंचाई जा सकें, जो उस भाषा को नहीं जानते। एन.एन. वोहरा शेलिंदर सिंह के डोगरी भाषा में लिखे उपन्यास ‘हाशिए ते’ के पंजाबी अनुवाद ‘बौना रुख’ के विमोचन के अवसर पर दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे। इस अवसर पर उपन्यास के अनुवादक बलजीत सिंह रैना भी मौजूद रहे।

श्री वोहरा ने कहा कि नेशनल बुक ट्रस्टको इस क्षेत्र में अधिक से अधिक काम करना चाहिए, और ज़्यादा से ज़्यादा पुस्तकों को प्रकाशित करके पाठकों को कम कीमत पर उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस उपन्यास को पूरे भारत के गरीब और शोषित लोगों की आवाज़ बनना है। उन्होंने अपने गवर्नर काल में डोगरी भाषा के प्रचार प्रसार के अनुभव भी सांझा किए।

इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. रवि रविंद्र कुमार ने उपरोक्त उपन्यास पर पेपर प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह उपन्यास स्वतंत्रता से लेकर अब तक के समय की तीन पीढ़ियों की कहानी है। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों को सरकारी योजनाओं का कोई फायदा ना मिलने एवं इन लोगों की मानसिक अवस्था को पेश करता है। उपन्यास आर्थिक, सामाजिक, शिक्षिक, प्रशासनिक, आदि साधनों पर कुलीन वर्ग के कब्ज़ा करने एवं ना बराबरी के विषय पेश करता है।

समारोह का मंच संचालन करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. यादविंदर सिंह ने कहा कि लेखक ने गुरू नानक देव जी की विचारधारा ‘नीचा अंदर नीच’ की गवाही की पेशकारी उपन्यास में की है। जम्मू कश्मीर के डी. जी. पी दिलबाग सिंह ने लेखक शेलिंदर सिंह और अनुवादक डॉ. बलजीत सिंह रैना की सोच की गहराई, समाज की समझ, उनकी संवेदना की सराहना की। आई.पी.एस डॉ. मनमोहन ने उपन्यास के बारे में बोलते हुए कहा कि ‘डोगर’ शब्द का इस्तेमाल पंजाबी साहित्य में बाबा शेख़ फरीद जी ने किया था। फ्रेडरिक जेम्सन के सिद्धांत योटोपिया को उपन्यास के माध्यम से समझाते हुए उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति का अपना योटोपिया होता है, इसके कई रूप होते हैं। अंत में लेखक शेलिंदर सिंह ने वहाँ आए सभी अतिथियों एवं पाठक वर्ग का धन्यवाद किया। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के शिक्षक एवं शोधार्थी भी मौजूद रहे।

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