भारत और दक्षिण कोरिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में लगभग दो अरब अट्ठाईस करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च आँकड़े को छू गया है वह भी तब जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। पिछले दस वर्षों में, दोनों देशों के बीच व्यापार में 116% की वृद्धि हुई है। कहने का तात्पर्य यह कि भारत-कोरिया के बीच द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार की अपार संभावनाएँ हैं। द. कोरिया की अर्थव्यवस्था मुख्यतः मानव संसाधन कंदित है जबकि भारत अपने विशाल युवा कार्यबल के लिए रोजगार की संभावनाएँ तलाश रहा है ताकि आर्थिक विकास सुदृढ़ हो सके। ऐसे में दोनों देशों के बीच भाषाई और सांस्कृतिक दूरी को पाटकर पारस्परिक संवाद को प्रगाढ़ किया जाना जरूरी है। उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों की भाषाओं का आपस में सीधा संवाद स्थापित हो इसके लिए संबंधित भाषाओं की लिखित और मौखिक अभिव्यक्तियों का कॉर्पस यानि अभिव्यक्ति-भंडार होना जरूरी है। कोरियाई सरकार (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ कोरियन लैंग्वेज, संस्कृति खेल एवं पर्यटन मंत्रालय) द्वारा वित्तपोषित पैरेलेल कॉर्पस परियोजना” इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में अग्रसर है। जोकि सात अन्य भाषाओं के अतिरिक्त कोरियाई हिंदी का भी अभिव्यक्ति-भंडार विकसित कर रहा है जिसका सकारात्मक प्रभाव दोनों देशों के सांस्कृतिक, राजनयिक, और व्यापार संबंधों पर पड़ेगा।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी की कृत्रिम मेधा (AI) के दौर में मशीनी भाषांतरण और अनुवाद से हम सब परिचित है. लेकिन अधिकांश स्थितियों में अंगरेजी के रास्ते भाषांतर होता है जिससे मौलिकता बाधित होती है। यदि यह काम दो भाषाओं के आपसी डेटा के आदान-प्रदान से हो तो अभिव्यक्ति मूल भाषा और संस्कृति के ज्यादा करीब होगी. परिणामत: सांस्कृतिक दूरी कम हो सकेगी और इसका लाभ खासकर उन्हें मिलेगा जो दोनों देशों के बीच व्यापार, व्यवसाय, प्रशासन, सैन्य सुरक्षा, और शिक्षा आदि क्षेत्रों में कार्यरत है। तात्पर्य यह कि सांस्कृतिक निकटता से पारस्परिक उत्साह पैदा होगा और निश्चय ही उससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। आर्थिक गतिविधियों के बढ़ने से रोजगार सृजन होगा जिससे दोनों देशों की युवा पीढ़ी लाभान्वित हो सकेगी। संक्षेप में कहें तो कोरियाई – हिंदी पैरेलेल कॉर्पस प्रोजेक्ट का डेटा और उसका उपयोग आने वाले समय में भारत-कोरिया के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) के लिए मजबूत आधार का निर्माण कर सकेगा।

कोरियाई-हिंदी द्विभाषी कॉर्पस बनने से मशीन ट्रांसलेशन इंटेलिजेंट अथवा मूल के क़रीब होगा। इसका सबसे ज़्यादा लाभ कोरियाई और भारतीय युवा पीढ़ी को होगा क्योंकि कोरियाई पढ़नेवाले भारतीय छात्रों और हिंदी पढ़नेवाले कोरियाई छात्रों के लिए भाषिक समस्याएँ बहुत हद तक सरल हो सकेंगी और लैंग्वेज़ प्रोफ़िसिएंसी उनके लिए रोज़गार-कौशल को बढ़ाएगी। भारतीय युवा आजकल के-पॉप के प्रति आकर्षित हो रहा है और चाहता है कि भाषिक सीमाओं को लाँघकर वह के-पॉप की मस्ती में सराबोर हो जाए। निस्संदेह, इंटेलिजेंट मशीन ट्रांसलेशन उनके लिए ज़िगरी दोस्त बन जाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि इस परियोजना का लाभ दोनों देशों की युवा पीढ़ी को मिलने वाला है।

उक्त “कोरियाई-हिंदी पैरलेल कॉर्पस प्रोजेक्ट” पर अकादेमिक चर्चा के लिए कोरियाई शिष्टमंडल इसी 3 से 6 फरवरी तक भारत में था। शिष्टमंडल के सदस्यों प्रो. ली जङ् ही (निदेशक), प्रो. सृजन कुमार (टीम लीडर, हिंदी), जी ह्वा सुक (शोध सहायक), प्रो. डी. ए. पी. शर्मा (स्थानीय संयोजक) ने आईसीसीआर के महानिदेशक राजदूत श्री कुमार तुहिन, केंद्रीय हिंदी संस्थान की निदेशक प्रो. बीना शर्मा एवं कोरियाई विभाग,जेएनयू के अध्यापकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कॉर्पस परियोजना को बेहतर बनाने के लिए हिंदी जगत से सहयोग मिलने की आशा प्रकट की।

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