1650 ई. में शाहजहां की बेगमात में से फतहपुरी बेगम ने इस मस्जिद को चांदनी चौक के पश्चिमी सिरे पर बनवाया और उसी के नाम पर इसका नाम फतहपुरी मस्जिद पड़ा। सारे शहर में बस यही मस्जिद एक गुंबद की है, जिसके दोनों तरफ ऊंची-ऊंची मीनारें हैं।

यह इमारत निहायत खूबसूरत और मजबूत बनी हुई है, जिसका बड़ा भारी गुंबद दूर से प्रभावशाली दिखलाई देता है। यह मस्जिद पहले जमाने में बड़ी पुररौनक थी और जिस स्थान पर यह बनी हुई है, वह भी शहर का केंद्र था। अब भी इसमें काफी संख्या में नमाजी जाते हैं। इसके आगे की ओर दोनों तरफ बाजार हैं, जहां भीड़ लगी रहती है।

पूर्व में चांदनी चौक, दक्षिण में कटरा बड़ियां, उत्तर में खारी बावली और पश्चिम में मस्जिद की पुश्त। मस्जिद के तीन बड़े-बड़े दरवाजे हैं, जिन पर लाल पत्थर का कंगूरा और इधर-उधर बुर्जियां हैं। दरवाजे से दाखिल होकर अस्सी गज मुरब्बा का सहन आता है, जिसमें तमाम लाल पत्थर के चौके विछे हुए हैं।

 उत्तर और पूर्व की तरफ का दरवाजा सत्ताइस फुट मुरब्बा और दस फुट गहरा है। इस दरवाजे की ड्योढ़ी आठ फुट चौड़ी और ग्यारह फुट ऊंची है। पश्चिम की तरफ असल मस्जिद के दोहरे दालान हैं, जिनके दाएं-बाएं बड़े-बड़े कमरे हैं। मस्जिद के तीन तरफ बाजारों में दुकानों का सिलसिला है, जिसमें से पूर्व और उत्तर की तरफ दुकानों के अतिरिक्त दोमंजिले बड़े-बड़े कमरे बने हुए हैं। इनमें व्यापारियों के दफ्तर हैं।

मस्जिद के सहन में एक बहुत बड़ा हौज 16 गज * 14 गज का बना हुआ है। हौज और मस्जिद के दरिमयान का चबूतरा 130 फुट लंबा और 90 फुट चौड़ा है। असल मस्जिद साढ़े तीन फुट ऊंचे चबूतरे पर बनी हुई है, जिसके दालान 120 फुट x 4 फुट के हैं। सदर महराब बहुत ऊंची है और गहराई में यह 16 फुट है। इस पर भी कंगूरा और दोनों तरफ बड़ी-बड़ी बुर्जियां हैं और उसी तरफ मस्जिद को पछील में चार छोटी-छोटी बुर्जियां हैं। महराब और बुर्जियों पर संगमरमर की पट्टियां पड़ी हुई हैं।

मस्जिद का एक ही बड़ा भारी गुंबद है, जिस पर अस्तरकारी की हुई है और स्याह तथा सफेद धारियां पड़ी हुई हैं। गुंबद का बुर्ज चूने गच्ची का है। सदर महराब के दोनों तरफ बारह फुट के अंतर से दो-दो दालान तीन-तीन दरों के बंगड़ीदार महराबों के हैं, जो तीस फुट ऊंचे और दस फुट चौड़े हैं। इनकी छतों पर भी कंगूरा है। मस्जिद की

दोनों मीनारें अस्सी अस्सी फुट ऊंची हैं, जिनकी बुर्जियां चूने गच्ची की बनी हुई हैं। मस्जिद के दरवाजे सिर्फ दस-दस फुट ऊंची हैं, जिन पर कमल बने हुए हैं। कंगूरे के नीचे चौड़ा संगीन छज्जा है। मस्जिद की सदर महराब के तथा दूसरे दरों के सामने तीन-तीन सीढ़ियां हैं। तमाम खंभों के ऊपरी और निचले हिस्से पर नक्शो-निगार खुदे हुए हैं।

मस्जिद का गुंबद फैला हुआ कोठीदार ढंग का है। गुंबद संगखारा का है, जिस पर ऐसी अस्तरकारी की गई है कि दूर से संगमरमर का प्रतीत होता है। मंबर संगमरमर का है, जिसकी चार सीढ़ियां हैं। इस मस्जिद में खालिस संगमरमर की यही एक वस्तु है। इस मस्जिद के दोनों तरफ लाल पत्थर के सुतूनों की कतारें हैं, जिससे मस्जिद के दो तरफ के दो हिस्से अलहदा अलहदा हो गए हैं।

कुछ बहुत समय नहीं हुआ कि छत की हालत खराब होती जा रही थी इसलिए पत्थर के सुतूनों की और दो कतारें बीच में बतौर अड़वाड़ लगाकर मजबूती कर दी गई है। पुराने सुतून लाल पत्थर के हैं। नए संगखारा के हैं। मस्जिद का बीच का हिस्सा, जो गुंबद के नीचे है, चालीस फुट मुरब्बा है और इसके दोनों तरफ के हिस्से कुछ अधिक लंबे हैं। मस्जिद के उत्तर और दक्षिण में दोनों ओर से आने-जाने का एक-एक दरवाजा बाद में निकाला गया है, जो 16 फुट ऊंचा और 10 फुट चौड़ा है।

1857 के गदर में इस मस्जिद में फौजें उतारी गई थीं। बाद में यह मस्जिद जब्त कर ली गई थी और उन्नीस हजार रुपये में नीलाम कर दी गई थी, जिसको लाला छुन्नामल ने खरीद लिया था। 1863 ई. में सरकार ने लाला साहब को एक लाख बीस हजार रुपया देकर मुसलमानों को यह मस्जिद वापस दिलवानी चाही, मगर लाला साहब ने मंजूर नहीं किया। मगर 1876 ई. में जब दिल्ली में मलका का दरबार हुआ तो इसे वापस कर दिया गया।

मस्जिद के सहन में बंद करें हैं, जिनमें हजरत नानूशाह और शाह जलाल के मजार भी हैं। हजरत मीरांशाह नानू थानेसर के रहने वाले थे। वह दिल्ली आकर मस्जिद के एक कमरे में रहने लगे थे। तकरीबन अस्सी साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई और वह इसी मस्जिद के सहन में दफन किए गए। हजरत शाह जलाल नानूशाह खलीफा थे और उन्होंने उसी कमरे में बैठकर सारी उम्र ईश्वर-भक्ति में गुजार दी। वह भी यहां ही दफन किए गए।

मस्जिद में अरबी जुबान का एक मदरसा भी चला करता था, जिसमें धार्मिक शिक्षा दी जाती थी। मस्जिद का सहन बहुत खुला हुआ है, जिसमें पश्चिम को छोड़कर तीन तरफ दालान बने हुए हैं। उत्तर में बाजार की तरफ पंद्रह दर का दोमंजिला दालान है, जिसमें मदरसा है। इसके सामने बड़ियों के कटरे की तरफ दक्षिणी दरवाजा है, जिसके दोनों तरफ आठ-आठ दर के दालान और कमरे हैं। पूर्वी द्वार चांदनी चौक की तरफ है, जिस पर सफेद संगमरमर की तख्ती पर फतहपुरी लिखा हुआ है। इस दरवाजे के दोनों तरफ चौदह-चौदह दर के दालान हैं। सहन के बीच में संगमरमर का आलीशान हौज है, जिसमें पहले नहर का पानी आता था, अब इसमें नल का पानी भरते हैं। हौज के पास नानूशाह और जलाल शाह के एक अहाते के अंदर बने हुए मजार हैं।

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