गुरुद्वारा बंगला साहब का इतिहास

दिल्ली में सिखों के नौ पवित्र स्थानों में से दो गुरु नानक देव के माने जाते हैं- गुरु तेगबहादुर के, दो गुरु गोविंद सिंह के दो गुरु हरिकिशन जी के और एक माता सुंदरी का। यह गुरुद्वारा आठवें गुरु हरिकिशन जी का माना जाता है। शीशगंज से यह करीब ढाई मील पड़ता है। कहते हैं, गुरु महाराज यहां आकर ठहरे थे। इसकी रिवायत इस प्रकार है-

ब्रज कृष्ण चांदीवाला अपनी किताब दिल्ली की खोज में लिखते हैं कि जब गुरु महाराज यहां आए तो इस स्थान पर आंबेर के राजा जयसिंह का महल था। गुरु हरराय ने अपने बड़े लड़के रामराय जी से नाखुश होकर, जो औरंगजेब से प्रभावित होकर अपने सही मार्ग से हट गए थे, अपने छोटे लड़के हरिकिशन जी को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था।

इस बात से रामराय जी की तमाम योजनाएं बेकार हो गईं और उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के सामने, जो उन पर मेहरबान था, अपना मुकदमा पेश किया। बादशाह ने दोनों पक्षों को दिल्ली बुलाया। रामराय जी तो दिल्ली चले आए, मगर हरिकिशन जी को दिल्ली बुलाना आसान न था, क्योंकि उनके पिता ने उन्हें सम्राट से मिलने की मनाही कर दी थी।

राजा जयसिंह ने इस कठिनाई को इस प्रकार दूर किया कि उन्होंने गुरु हरिकिशन जी को अपने बंगले पर जो रायसीना में था, निमंत्रित कर लिया। उस वक्त गुरु जी की आयु मुश्किल से आठ वर्ष की थी। बादशाह ने उनकी बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेनी चाही। चुनांचे जयसिंह के महल की महिलाओं ने उन्हें घेर लिया, जिनमें बांदियों को भी रानियों का लिबास पहनाकर बैठा दिया गया। बाल गुरु से कहा गया कि वह महारानी को छांटकर बता दें। गुरु ने उनके चेहरों की ओर देखा और तुरंत ही महारानी को पहचान लिया। बादशाह ने यह देखकर फैसला दे दिया कि गुरु बनने की योग्यता हरिकिशन राय में है, रामराय में नहीं है।

जिन दिनों गुरु महाराज जयसिंह के महल में ठहरे हुए थे, शहर में हैजा फैल उठा। बहुत से लोग गुरु महाराज का आशीर्वाद लेने आ पहुंचे। उनको महल के कुएं से पानी निकालकर दिया गया, जो अब चौबच्चा साहब कहलाता है। श्रद्धालु जन अब भी मानते हैं कि इस कुएं के पानी में बीमारियों को अच्छा करने की शक्ति है।

जुलाई मास में गुरु हरिकिशन जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। उनके यहां पधारने की तारीख विक्रम संवत 1721 दी हुई है। गुरुद्वारा करीब पांच एकड़ भूमि पर बना हुआ है। डेढ़ एकड़ में गुरुद्वारा है और है। बाएं साढ़े तीन एकड़ में स्कूल। यहां भी करीब छह फुट ऊंची कुर्सी दी गई है। सीढ़ी चढ़कर बड़ा सहन आता है। दाएं हाथ कमरे बने हुए हाथ भी इमारतें हैं। आगे जाकर फिर छह सीढ़ियां आती हैं, उन्हें चढ़कर मुख्य द्वार है, जो पचास फुट ऊंचा है। द्वार के दाएं-बाएं दो कमरे बाहर की ओर बने हुए हैं। अंदर जाकर बड़ा हाल है, जो सौ फुट लंबा और पचास फुट चौड़ा है। दालान के दोनों बाजू पर आठ-आठ फुट की बालकनी है, जिस पर ऊपर की मंजिल में कमरे बने हुए हैं। दालान के बीच में एक चबूतरे पर ग्रंथ साहब रखे हैं, जिनके ऊपर काठ की छतरी बनी है। चबूतरे के चारों ओर कटारा लगा है। मौजूदा इमारत 1954 में बनकर तैयार हुई थी।

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